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दोनों राज्यों की निचली अदालतें मामलों में 12 और 51 के बीच स्थगन देती हैं
अक्षम और अवैज्ञानिक जांच की वजह से मामलों के निस्तारण में विलंब
मंत्रालय ने कहा, पुलिस स्टेशनों पर अमूमन अपर्याप्त प्रशिक्षित लोग रहते है
मंत्रालय ने पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों द्वारा की जाने वाली 'अक्षम और अवैज्ञानिक' जांच को भी मामलों के निस्तारण में विलंब के लिए जिम्मेदार ठहराया है. मंत्रालय ने कहा कि दीवानी प्रक्रिया संहिता के अनुसार दीवानी मामलों के मुकदमे के दौरान अधिकतम तीन स्थगन दिए जा सकते हैं.
विधि मंत्रालय द्वारा एडवाइजरी काउंसिल ऑफ द नेशनल मिशन फॉर जस्टिस डिलीवरी एंड लीगल रिफॉर्म्स की 18 अक्तूबर को होने वाली बैठक के लिए तैयार नोट में कहा गया है, 'हालांकि, जैसा सर्वज्ञात है कि इस मानदंड का विरले ही पालन किया जाता है. मिसाल के तौर पर राजस्थान में दीवानी मामलों में जिला एवं निचली अदालतों में औसत स्थगनादेशों की संख्या 12 से 42 के बीच होती है, जबकि फौजदारी मामलों में यह 4 से 34 के बीच होती है'. मंत्रालय ने कहा, 'इसी तरह, ओडिशा में दीवानी मामलों में स्थगनादेशों की औसत संख्या 51 और फौजदारी मामलों में औसत संख्या 33 है'.
अदालत में मामले के पहुंचने से पहले का उल्लेख करते हुए इसमें कहा गया है कि 'पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों द्वारा की जाने वाली अक्षम और अवैज्ञानिक जांच की वजह से मामलों के निस्तारण में विलंब होता है'. मंत्रालय ने कहा 'पुलिस स्टेशनों पर अमूमन अपर्याप्त प्रशिक्षित लोग रहते हैं जो जांच प्रक्रिया को बाधित करता है. यह पुलिस और अभियोजन तंत्र के बीच समन्वय की वजह से और बिगड़ जाता है'.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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