राजस्थान उच्च न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लेते हुए कि एक पत्नी की शादीशुदा जिंदगी से संबंधित यौन और भावनात्मक जरूरतों की रक्षा होनी चाहिए, आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक व्यक्ति को 15 दिनों की पैरोल दी है. ताकि वे एक बच्चे का पिता बन सके. न्यायमूर्ति फरजंद अली और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ ने विभिन्न धार्मिक ग्रंथों और सामाजिक मानवीय पक्षों तथा एक दंपती को संतान होने के अधिकार का हवाला देते हुए नंद लाल नामक व्यक्ति को पैरोल की अनुमति दी. दरअसल 34 वर्षीय नंद लाल की पत्नी रेखा की याचिका पर जस्टिस संदीप मेहता और फरजंद अली की पीठ ने ये आदेश दिया है. इस याचिका में रेखा ने पति की "संतान के अधिकार" पर रिहा करने की मांग की थी.
अदालत ने कहा कि बच्चा जनने के लिए बंदी की पत्नी द्वारा दायर याचिका पर, राजस्थान पैरोल नियमावली 2021 के तहत बंदी को पैरोल पर छोड़ने का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन “पत्नी की शादीशुदा जिंदगी से संबंधित यौन और भावनात्मक जरूरतों की रक्षा” के लिए बंदी को उसके साथ रहने की इजाजत दी जा सकती है.
अदालत ने ऋग्वेद सहित हिंदू धर्मग्रंथों का हवाला दिया, साथ ही यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और कुछ अन्य अब्राहमिक धर्मों के सिद्धांतों का भी उल्लेख फैसले के दौरान किया. अपने आदेश में कोर्ट की ओर से कहा गया कि “अगर हम मामले को धार्मिक पहलू से देखें तो हिंदू दर्शन के अनुसार, गर्भधान यानी गर्भ का धन प्राप्त करना 16 संस्कारों में से पहला है.
कानूनी पहलू पेश करते हुए अदालत ने संतान के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीशुदा जीवन के मौलिक अधिकार से जोड़ा. न्यायाधीशों ने कहा कि "संविधान गारंटी देता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा. इसके दायरे में कैदी भी शामिल हैं.
नंद लाल को 2019 में राजस्थान की भीलवाड़ा अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा दी गई थी और इस समय ये अजमेर सेंट्रल जेल में बंद है. उन्हें साल 2021 में 20 दिन की पैरोल दी गई थी. अदालत ने कहा कि जेल परिसर में नंद लाल का आचरण बहुत अच्छा रहा है.
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