Rajasthan Crisis: राजस्थान में जारी सियासी खींचतान के बीच अदालत में मामला के 24 जुलाई तक अटकने की हालत में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) अब एक अलग रणनीति पर काम कर रहे हैं. मुख्यमंत्री अब राजस्थान विधानसभा का सत्र बुलाने पर विचार कर रहे हैं. गहलोत कैंप को लगता है कि मौजूदा राजनैतिक संकट से निबटने का सबसे बेहतर तरीका होगा कि अब बहुमत (Majority) विधानसभा में ही सिद्ध कर दिया जाए. मगर अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) सीधे विधानसभा में विश्वास मत लेने के बजाए एक विशेष सत्र बुला कर कोई भी एक महत्वपूर्ण बिल पास करवा लेंगे. ऐसे में उन्हें विश्वास मत हासिल नहीं करना पड़ेगा और नियम के तहत विधानसभा में कोई भी बिल बहुमत से पास कराने को बहुमत प्राप्त करना ही माना जाएगा.
अशोक गहलोत कैंप की रणनीति है कि विधानसभा में बिल पास कराने के बहाने विह्प जारी किया जाए जिससे विधायकों को बिल के पक्ष में वोट करना पड़ेगा. जाहिर है यदि सरकार बिल पास कराने में सफल रहती है तो यह सरकार की जीत मानी जा सकेगी और इसके बाद विश्वास मत लेने का दबाब गहलोत सरकार पर से हट जाएगा. राजस्थान के मौजूदा संकट में यह रणनीति भी कारगर हो सकती है.
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कांग्रेस अपने बागी विधायकों को भी एक आसान रास्ता देना चाहती है जहां उन्हें सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिए विवश ना करके एक बिल के पक्ष में वोट डालने का मौका दिया जाए. इससे कई विधायक सरकार से सीधे टकराव से भी बच जाएंगें और उनकी घर वापसी भी मुमकिन हो पाएगी.
मगर सबसे बड़ी बात है कि राज्यपाल विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए तैयार होते हैं या नहीं क्योंकि कोरोना को देखते हुए कहीं भी यानी देश भर में कहीं भी विधानसभा का सत्र नहीं बुलाया जा रहा है. ऐसे में राजस्थान विधानसभा का विशेष सत्र कितनी जल्दी बुलाया जा सकेगा उस पर भी सवालिया निशान लगा हुआ है.
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