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This Article is From Dec 16, 2016

क्‍या राहुल गांधी विपक्ष की राजनीति की केंद्रीय भूमिका में आते जा रहे हैं?

क्‍या राहुल गांधी विपक्ष की राजनीति की केंद्रीय भूमिका में आते जा रहे हैं?
राहुल गांधी (फाइल फोटो)
शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने गए. पीएम से मुलाकात के दौरान उन्‍हें कर्ज माफी सहित किसानों की मांग और नोटबंदी के कारण हो रही समस्‍याओं को लेकर ज्ञापन सौंपा. पीएम मोदी ने भी कहा कि इसी तरह की मुलाकात होती रहनी चाहिए. उनकी मुलाकात से विपक्ष के बाकी नेता नाराज हो गए. उन्‍होंने कांग्रेस के अकेले पीएम मोदी से मिलने पर आपत्ति उठाई.

दरअसल पूरे शीतकालीन सत्र के दौरान यदि नजर डाली जाए तो नोटबंदी के मसले पर सरकार को घेरने के मामले में विपक्ष की तरफ से सबसे ज्‍यादा सुर्खियां राहुल गांधी के खाते में ही आई हैं. सरकार की आठ नवंबर की नोटबंदी की घोषणा के बाद राहुल गांधी ही सबसे ज्‍यादा हमलावर रुख अपनाते हुए देखे गए हैं.

नोटबंदी की घोषणा के बाद वह चाहें राहुल गांधी के बैंक की कतार में लगने का मामला हो या शीतका‍लीन सत्र में नियमित रूप से संसद परिसर में पत्रकारों के समक्ष नोटबंदी के मसले पर पीएम मोदी को घेरने की बात हो, सबसे ज्‍यादा राहुल ही चर्चा में रहे. अब कांग्रेस शिष्‍टमंडल के साथ उनकी पीएम मोदी के साथ मुलाकात के बाद बाकी विपक्षी दलों की नाराजगी यह बता रही है कि वह प्रतिपक्ष की राजनीति की केंद्रीय भूमिका में आते जा रहे हैं. हालांकि नोटबंदी की मुखालफ़त के मामले में शुरुआत में अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी ने शुरुआत में सरकार के खिलाफ मुखर मोर्चा खोला लेकिन बाद में ही राहुल ही इस मुद्दे पर लगातार बोलते हुए दिखे.

राहुल ने इस बीच पीएम मोदी पर सीधे वार भी किए हैं और उन पर निजी भ्रष्‍टाचार का आरोप भी लगाया है. राहुल गांधी ने बुधवार को दावा किया था कि उनके पास पीएम नरेंद्र मोदी से जुड़ी ऐसी जानकारी है जिससे उनके 'नोटबंदी के फैसले का गुब्‍बारा' फूट जाएगा, लेकिन उन्‍हें संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राहुल ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के अंदाज़ में पत्रकारों से 'उनके होंठों की भाषा पढ़ने' के लिए कहा, और घोषणा की कि उनके पास ऐसी जानकारी है, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'निजी भ्रष्टाचार' की पोल खुल जाएगी.

राहुल के इस अंदाज ने हालांकि ये साबित कर दिया है कि अब वह राजनीति में अपनी बात को खुलकर कहने की कला को सीख गए हैं. उनमें अब उस तरह की झिझक नहीं दिखती जो तकरीबन 12 साल पहले अपने राजनीति करियर के शुरुआती दिनों में दिखती थी. अब अपने विरोधियों के खिलाफ जमकर बोलते हैं.

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