राफेल मामला : लीक दस्तावेज़ की जांच पर SC ने फ़ैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने आज साफ कर दिया कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे के तथ्यों पर गौर करने से पहले वह केन्द्र सरकार द्वारा उठाई गयी प्रारंभिक आपत्तियों पर फैसला करेगा.

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने आज साफ कर दिया कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे के तथ्यों पर गौर करने से पहले वह केन्द्र सरकार द्वारा उठाई गयी प्रारंभिक आपत्तियों पर फैसला करेगा. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच ने केन्द्र की इन प्रारंभिक आपत्तियों पर सुनवाई पूरी की कि राफेल विमान सौदा मामले में पुनर्विचार याचिका दायर करने वाले गैरकानूनी तरीके से हासिल किये गए विशिष्ट गोपनीय दस्तावेजों को आधार नहीं बना सकते है. यह बाद में पता चलेगा कि इस मुद्दे पर कोर्ट अपना आदेश कब सुनाएगा.  

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं से बेंच ने कहा कि वे सबसे पहले लीक हुए दस्तावेजों की स्वीकार्यता के बारे में प्रारंभिक आपत्तियों पर ध्यान दें. पीठ ने कहा, ‘‘केन्द्र द्वारा उठाई गयी प्रारंभिक आपत्तियों पर फैसला करने के बाद ही हम मामले के तथ्यों पर गौर करेंगे. इससे पहले, मामले की सुनवाई शुरू होते ही केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने फ्रांस के साथ हुये राफेल लड़ाकू विमानों के सौदे से संबंधित दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा किया और कोर्ट से कहा कि संबंधित विभाग की अनुमति के बगैर कोई भी इन्हें अदालत में पेश नहीं कर सकता है. वेणुगोपाल ने अपने दावे के समर्थन में साक्ष्य कानून की धारा 123 और सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का हवाला दिया. 

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उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित कोई भी दस्तावेज कोई प्रकाशित नहीं कर सकता क्योंकि राष्ट्र की सुरक्षा सबसे पहले है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक, अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि राफेल सौदे के दस्तावेज, जिन पर अटार्नी जनरल विशेषाधिकार का दावा कर रहे हैं, प्रकाशित हो चुके हैं और यह पहले से सार्वजनिक दायरे में हैं. एक अन्य याचिकाकर्ता पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण शौरी ने कहा कि वह केन्द्र और अटार्नी जनरल का यह कहने के लिये आभार व्यक्त करते हैं कि ये फोटोप्रतियां हैं जो इन दस्तवेजों का सही होना साबित करता है. 

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भूषण ने कहा कि सूचना के अधिकार कानून के प्रावधान कहते हैं कि जनहित अन्य बातों से सर्वोपरि है और गुप्तचर एजेन्सियों से संबंधित दस्तावेजों के अलावा किसी भी अन्य दस्तावेज पर विशेषाधिकार का दावा नहीं किया जा सकता. भूषण ने कहा कि राफेल विमानों की खरीद के लिये दो सरकारों के बीच कोई करार नहीं है क्योंकि फ्रांस सरकार ने 58,000 करोड़ रूपए के इस सौदे में भारत को कोई संप्रभु गारंटी नहीं दी है. उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय प्रेस परिषद कानून में पत्रकारों के स्रोत को संरक्षण प्रदान करने का प्रावधान है. 

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एक अन्य याचिकाकर्ता विनीत ढांडा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह से कहा कि सरकार इन दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 14 दिसंबर को राफेल विमान सौदे में कथित अनियमितताओं की वजह से इसे निरस्त करने और अनियमितताओं की जांच के लिये दायर याचिकाएं यह कहते हुये खारिज कर दी थीं कि राफेल सौदे के लिये फैसले लेने की प्रक्रिया पर वास्तव में किसी प्रकार का संदेह करने की कोई वजह नहीं है. इस फैसलों के बाद यशवंत सिन्हा, अरूण शौरी और प्रशांत भूषण के अलावा अधिवक्ता विनीत ढांडा ने पुनर्विचार याचिकायें दायर की हैं. 
 

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