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This Article is From Apr 17, 2018

न्यायपालिका में रिज़र्वेशन की मांग पर अड़े बीजेपी के सहयोगी

आरक्षण की राजनीति फिर गरमा रही है. एससी एसटी कानून में बदलाव के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब एनडीए के घटकों ने मांग शुरू कर दी है कि उच्च न्यायपालिका में जजों की भर्ती में आरक्षण हो.

न्यायपालिका में रिज़र्वेशन की मांग पर अड़े बीजेपी के सहयोगी
उपेंद्र कुशवाहा ने जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं.
नई दिल्ली: आरक्षण की राजनीति फिर गरमा रही है. एससी एसटी कानून में बदलाव के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब एनडीए के घटकों ने मांग शुरू कर दी है कि उच्च न्यायपालिका में जजों की भर्ती में आरक्षण हो. मोदी सरकार में मंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा अब "हल्ला बोल, दरवाज़ा खोल" की बात कर रहे हैं. कुशवाहा ने दलित और पिछड़ों के लिये उच्च न्यायपालिका में आरक्षण की मांग की है. 

उपेन्द्र कुशवाहा ने एनडीटीवी इंडिया से कहा, "अभी सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट में जजों की जो स्थिति है एससी एसटी और
ओबीसी के लोग आज़ादी के बाद से अपवाद के रुप में एक दो जज हुए हैं अन्यथा नगण्य हैं. इसका कारण यह है कि जज की बहाली की प्रक्रिया ऐसी है कि एससी एसटी की बात तो छोड़ दीजिये सवर्ण जाति का गरीब नौजवान भी अगर अपनी मैरिट के दम पर अगर जज बनना चाहता है तो उसके लिये भी रास्ता बन्द है." कुशवाहा का कहना है कि उनकी पार्टी चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट जजों की नियुक्ति की जो भी प्रक्रिया तय करे लेकिन सबके लिए दरवाज़े खोलने होंगे इसलिये उनकी पार्टी ने हल्ला बोल दरवाजा खोल अभियान शुरू किया है. 

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अगले साल होने वाले चुनावों से पहले जातिगत ध्रुवीकरण अहम है. खासतौर से यूपी और बिहार जैसे राज्य में. बिहार में  
नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता चुनाव से पहले अपने राजनीतिक आधार को मज़बूत करने की कोशिश में लग गये हैं. यही ताकत तय करेगी कि अगले चुनावों में बीजेपी बिहार में अपने सहयोगियों को कितनी सीटें देगी. इसीलिए पासवान ने अब जजों की नियुक्ति आईएस और आईपीएस के तर्ज पर करने के लिये ज्यूडिशियल कमीशन बनाने की मांग की है और साथ में नौकरियों में प्रमोशन में रिजर्वेशन का मुद्दा भी उठा दिया है और कहा कि इन सब मुद्दों पर बात नहीं बनती तो सरकार को अध्यादेश का रास्ता अपनाना चाहिये. 

केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के रामविलास पासवान ने कहा, "हम लोग जो बात कर रहे हैं वह संविधान की बात कर रहे हैं. जैसे आईएएस और आईपीएस की नियुक्ति होती है वैसे ही देश में जजों की नियुक्ति के लिये इंडियन ज्यूडिशियल सर्विस का गठन किया जा सकता है और जब इस सर्विस का गठन होगा तो फिर कम्पटीशन के आधार पर तय किया जायेगा और हर वर्ग के लोगों को संविधानिक के नियमों से आरक्षण मिलेगा." 

इन सांसदों की मांग जहां उच्च न्यायापालिका में आरक्षण का रास्ता खोलने वाली है वहीं कोलिजियम सिस्टम भी इससे खत्म हो जायेगा, लेकिन इस बारे में फैसला सरकार को करना है. सारा विवाद एससी एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा आदेश के बाद शुरू हुआ, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी एक्ट के तहत किसी सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले उसकी नियुक्ति करने वाले व्यक्ति की इजाजत लेना अनिवार्य कर दिया था. साथ ही कोर्ट ने कहा था कि किसी सामान्य व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले एसएसपी स्तर के अधिकारी मामले की जांच करेगें. 

वीडियो : न्यायपालिका में आरक्षण की मांग


विपक्ष के साथ साथ एनडीए के घटक दलों ने भी कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ आवाज़ उठाई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस पर अपना रुख बदलने से इन्कार कर दिया है. राजनीतिक रूप से ये हालात बीजेपी के लिये मुफीद नहीं हैं क्योंकि केंद्र सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि उसने एससी एसटी एक्ट में मज़बूती से पैरवी नहीं की. यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के संभावित गठबंधन के बाद तो बीजेपी के लिये जातिगत समीकरण बहुत महत्वपूर्ण हो गये हैं. उधर राम विलास पासवान ने अपनी ही सरकार पर दबाव बढ़ाते हुये एससी एसटी एक्ट और जजों की नियुक्ति के साथ सरकारी नौकरियों में तरक्की में आरक्षण की बात भी कही और कहा कि उनकी पार्टी दलितों को प्रमोशन में रिज़र्वेशन दिला कर रहेगी. 

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