नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत नेशनल स्किल डेवपलमेंट काउंसिल को नोडल एजेंसी बनाया गया है. यह एजेंसी ऐसे सेंटर को मान्यता देती है जो उसके बताए हुए पैमाने पर स्थापित किए जाते हैं. इन सेंटर्स को तैयार करने में कई लाख रुपये की लागत लग जाती है. इन्हें फ्रेंचाइज़ी सेंटर कहा जाता है. अब एनएसडीसी ने फैसला किया है कि फ्रेंचाइज़ी सेंटर को ट्रेनिंग देने के बदले पैसे नहीं दिए जाएंगे और न ही यहां ट्रेनिंग लेने वालों को प्रमाण पत्र दिया जाएगा. बुधवार को कई राज्यों से आए फ्रेंचाइज़ी सेंटर के मालिकों ने मंत्रालय में घुसकर नारेबाज़ी की. इसी संदर्भ में NDTV ने कुछ फ्रेंचाइज़ी सेंटरों का हाल पता किया तो तरह-तरह की तस्वीर सामने आने लगी.
कौशल विकास मंत्रालय के बाहर उन लोगों ने प्रदर्शन किया, जिनके सेंटर्स को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए NSDC यानी नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल ने मंज़ूरी दी थी. सरकारी मंज़ूरी के बाद इन लोगों ने अपने सेंटर्स में काफ़ी पैसा खर्च कर ज़रूरी इंतज़ाम भी किए, लेकिन युवाओं को ट्रेनिंग देने का काम इन्हें फिर भी नहीं मिला. उनकी शिकायतें भी किसी ने नहीं सुनीं. अब ठगा सा महसूस कर रहे इन लोगों के पास प्रदर्शन कर विरोध जताने के अलावा कोई चारा नहीं.
दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले हरदेव अरोड़ा ने इसी साल जनवरी में इस योजना का हिस्सा बनने के लिए अपनी सारी पूंजी लगा दी. पत्नी के गहने तक गिरवी रख दिए और 16 लाख रुपये की लागत से ब्यूटीशियन का कोर्स कराने के लिए सेंटर बनाया. NSDC के अधिकारियों ने उनके सेंटर को पास भी कर दिया, लेकिन नए नियमों के मुताबिक फ्रेंचाइज़ी सेंटर्स को अब काम नहीं मिलेगा. हरदेव अरोड़ा परेशान हैं कि वो क्या करें, कहां जाएं. हरदेव अरोड़ा का कहना है कि 'हर महीने 45 हज़ार रुपए किराया लग रहा है, अब मैं क्या करूं... सब लगा दिया है, ऐसे ही चलता रहा तो मैं आत्महत्या कर लूंगा'.
इसी विरोध-प्रदर्शन में शामिल राजुल अग्रवाल एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफ़ेसर थे. प्रधानमंत्री का आह्वान सुनकर युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए पत्नी सहित नौकरी छोड़ी और अपनी सारी पूंजी इस सेंटर में लगा दी. सिलाई सिखाने के लिए यहां सिलाई मशीन हैं और दूसरी ज़रूरी चीज़ें भी. इसी साल मार्च में NSDC के अधिकारियों ने इनके सेंटर को मंज़ूरी भी दे दी, लेकिन नए नियम इनके भी आड़े आ गए हैं. उन्हें भी काम नहीं मिलेगा. राजुल अग्रवाल कहते हैं कि 'हर महीने किराया और वेतन लगाकर डेढ़ लाख रुपये हर महीने लगा रहे हैं, लेकिन आमदनी कुछ भी नहीं'. राजुल और हरदेव जैसी ही कहानी इस प्रदर्शन में मौजूद अधिकतर लोगों की है.
अब इस कहानी का दूसरा पहलू कि काम जब इनको नहीं मिला तो किसे मिला और किस तरह गाइडलाइंस का पालन नहीं हुआ.
ग्रेटर नोएडा का SPEJ सेंटर... NSDC की वेबसाइट में इस सेंटर को 480 बच्चों की ट्रेनिंग का काम दिया गया है, लेकिन जब हम यहां पहुंचे तो पता चला कि SPEJ सेंटर का तो यहां नामो-निशान भी नहीं है.
सेंटर्स जिन्हें मंज़ूरी तो मिली है, लेकिन वो असल में ग़ायब हैं या नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, उन्हें हमने घोस्ट सेंटर का नाम दे दिया. ऐसे घोस्ट सेंटर्स की कमी नहीं. NSDC की लिस्ट के मुताबिक, इटावा में जिस एक जगह पर फुटवियर डिज़ाइन का सेंटर होना चाहिए, लेकिन वहां शादियां होती हैं. यहां हमें एक मैरिज हॉल मिला.
कानपुर में भी एक इमारत में सबसे ऊपर टिन की शेड के नीचे एक सेंटर है. नियमों का सरासर उल्लंघन... एक स्किल सेंटर की न्यूनतम शर्तें भी यहां पूरी नहीं की गई हैं.
नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल की गाइडलाइन में साफ़तौर पर लिखा हुआ है कि बिना निरीक्षण किसी सेंटर को काम नहीं दिया जाएगा, लेकिन NSDC ने बिना जांच सिर्फ़ अंडरटेकिंग लेकर कई सेंटर्स को काम दे दिया. गाइडलाइन में ये भी है कि 1 और 2 स्टार वाले सेंटर्स को काम नहीं दिया जाएगा, लेकिन NDTV के पास मौजूद लिस्ट में एक या दो स्टार वाले सेंटर्स को काम दिया गया है, जबकि 4 और 5 स्टार्स वाले कई सेंटर खाली पड़े हैं.
हमें कई सेंटर ऐसे भी मिले जहां काम सिखाया जा रहा है... जैसे दरभंगा में एक स्किल डेवलपमेंट सेंटर, जहां ब्यूटीशियन का कोर्स सिखाया जा रहा है.
युवाओं का कौशल विकास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है, लेकिन इस प्रोजेक्ट में इतनी खामियां दिखीं तो हमने केंद्रीय कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रूडी और उनके अफ़सरों के सामने ये मुद्दा उठाया. उनके अफ़सरों ने आश्वासन दिया कि वो इस पर जल्द ही जवाब देंगे, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.
2 अक्टूबर 2016 को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना भाग-2 को शुरू किया गया. इसका मक़सद 2016 से 2020 तक देशभर के लगभग 40 लाख बच्चों के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण देना है. इस पूरी स्कीम का बजट 12 हज़ार करोड़ रुपए है. नियम ये है कि पहले ऑनलाइन ट्रेनिंग पार्टनर बनाए जाएंगे और फिर ट्रेनिंग पार्टनर के ज़रिए फ्रेंचाइज़ी ट्रेनिंग सेंटर्स.
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के तहत 2 अक्टूबर 2016 से अबतक एक लाख 70 हज़ार बच्चों को सर्टिफिकेट दिये जा चुके हैं, जिनमें से सिर्फ़ 30 हज़ार बच्चों को ही नौकरी मिल पाई.
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना- भाग 2
कौशल विकास मंत्रालय के बाहर उन लोगों ने प्रदर्शन किया, जिनके सेंटर्स को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए NSDC यानी नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल ने मंज़ूरी दी थी. सरकारी मंज़ूरी के बाद इन लोगों ने अपने सेंटर्स में काफ़ी पैसा खर्च कर ज़रूरी इंतज़ाम भी किए, लेकिन युवाओं को ट्रेनिंग देने का काम इन्हें फिर भी नहीं मिला. उनकी शिकायतें भी किसी ने नहीं सुनीं. अब ठगा सा महसूस कर रहे इन लोगों के पास प्रदर्शन कर विरोध जताने के अलावा कोई चारा नहीं.
दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले हरदेव अरोड़ा ने इसी साल जनवरी में इस योजना का हिस्सा बनने के लिए अपनी सारी पूंजी लगा दी. पत्नी के गहने तक गिरवी रख दिए और 16 लाख रुपये की लागत से ब्यूटीशियन का कोर्स कराने के लिए सेंटर बनाया. NSDC के अधिकारियों ने उनके सेंटर को पास भी कर दिया, लेकिन नए नियमों के मुताबिक फ्रेंचाइज़ी सेंटर्स को अब काम नहीं मिलेगा. हरदेव अरोड़ा परेशान हैं कि वो क्या करें, कहां जाएं. हरदेव अरोड़ा का कहना है कि 'हर महीने 45 हज़ार रुपए किराया लग रहा है, अब मैं क्या करूं... सब लगा दिया है, ऐसे ही चलता रहा तो मैं आत्महत्या कर लूंगा'.
इसी विरोध-प्रदर्शन में शामिल राजुल अग्रवाल एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफ़ेसर थे. प्रधानमंत्री का आह्वान सुनकर युवाओं को ट्रेनिंग देने के लिए पत्नी सहित नौकरी छोड़ी और अपनी सारी पूंजी इस सेंटर में लगा दी. सिलाई सिखाने के लिए यहां सिलाई मशीन हैं और दूसरी ज़रूरी चीज़ें भी. इसी साल मार्च में NSDC के अधिकारियों ने इनके सेंटर को मंज़ूरी भी दे दी, लेकिन नए नियम इनके भी आड़े आ गए हैं. उन्हें भी काम नहीं मिलेगा. राजुल अग्रवाल कहते हैं कि 'हर महीने किराया और वेतन लगाकर डेढ़ लाख रुपये हर महीने लगा रहे हैं, लेकिन आमदनी कुछ भी नहीं'. राजुल और हरदेव जैसी ही कहानी इस प्रदर्शन में मौजूद अधिकतर लोगों की है.
अब इस कहानी का दूसरा पहलू कि काम जब इनको नहीं मिला तो किसे मिला और किस तरह गाइडलाइंस का पालन नहीं हुआ.
ग्रेटर नोएडा का SPEJ सेंटर... NSDC की वेबसाइट में इस सेंटर को 480 बच्चों की ट्रेनिंग का काम दिया गया है, लेकिन जब हम यहां पहुंचे तो पता चला कि SPEJ सेंटर का तो यहां नामो-निशान भी नहीं है.
सेंटर्स जिन्हें मंज़ूरी तो मिली है, लेकिन वो असल में ग़ायब हैं या नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं, उन्हें हमने घोस्ट सेंटर का नाम दे दिया. ऐसे घोस्ट सेंटर्स की कमी नहीं. NSDC की लिस्ट के मुताबिक, इटावा में जिस एक जगह पर फुटवियर डिज़ाइन का सेंटर होना चाहिए, लेकिन वहां शादियां होती हैं. यहां हमें एक मैरिज हॉल मिला.
कानपुर में भी एक इमारत में सबसे ऊपर टिन की शेड के नीचे एक सेंटर है. नियमों का सरासर उल्लंघन... एक स्किल सेंटर की न्यूनतम शर्तें भी यहां पूरी नहीं की गई हैं.
नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल की गाइडलाइन में साफ़तौर पर लिखा हुआ है कि बिना निरीक्षण किसी सेंटर को काम नहीं दिया जाएगा, लेकिन NSDC ने बिना जांच सिर्फ़ अंडरटेकिंग लेकर कई सेंटर्स को काम दे दिया. गाइडलाइन में ये भी है कि 1 और 2 स्टार वाले सेंटर्स को काम नहीं दिया जाएगा, लेकिन NDTV के पास मौजूद लिस्ट में एक या दो स्टार वाले सेंटर्स को काम दिया गया है, जबकि 4 और 5 स्टार्स वाले कई सेंटर खाली पड़े हैं.
हमें कई सेंटर ऐसे भी मिले जहां काम सिखाया जा रहा है... जैसे दरभंगा में एक स्किल डेवलपमेंट सेंटर, जहां ब्यूटीशियन का कोर्स सिखाया जा रहा है.
युवाओं का कौशल विकास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है, लेकिन इस प्रोजेक्ट में इतनी खामियां दिखीं तो हमने केंद्रीय कौशल विकास मंत्री राजीव प्रताप रूडी और उनके अफ़सरों के सामने ये मुद्दा उठाया. उनके अफ़सरों ने आश्वासन दिया कि वो इस पर जल्द ही जवाब देंगे, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.
2 अक्टूबर 2016 को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना भाग-2 को शुरू किया गया. इसका मक़सद 2016 से 2020 तक देशभर के लगभग 40 लाख बच्चों के विभिन्न क्षेत्रों में प्रशिक्षण देना है. इस पूरी स्कीम का बजट 12 हज़ार करोड़ रुपए है. नियम ये है कि पहले ऑनलाइन ट्रेनिंग पार्टनर बनाए जाएंगे और फिर ट्रेनिंग पार्टनर के ज़रिए फ्रेंचाइज़ी ट्रेनिंग सेंटर्स.
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के तहत 2 अक्टूबर 2016 से अबतक एक लाख 70 हज़ार बच्चों को सर्टिफिकेट दिये जा चुके हैं, जिनमें से सिर्फ़ 30 हज़ार बच्चों को ही नौकरी मिल पाई.
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना- भाग 2
- 2 अक्टूबर, 2016 से शुरू
- 2016 से 2020 तक 40 लाख युवाओं को प्रशिक्षण
- योजना का बजट 12 हज़ार करोड़ रुपये
- पहले ऑनलाइन ट्रेनिंग पार्टनर
- ट्रेनिंग पार्टनर के ज़रिए फ्रेंचाइज़ी ट्रेनिंग सेंटर
- अब तक 1.70 लाख युवाओं को सर्टिफिकेट
- 30 हज़ार युवाओं को ही नौकरी मिली
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