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This Article is From Jun 24, 2016

पॉकेट युद्धपोत: भारतीय नौसेना की नई पीढ़ी की युद्ध क्षमताओं में होगा अहम कड़ी

पॉकेट युद्धपोत: भारतीय नौसेना की नई पीढ़ी की युद्ध क्षमताओं में होगा अहम कड़ी
फाइल फोटो
नई दिल्‍ली: जिस दिन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने सशस्‍त्र सेनाओं के कमांडरों को 'लुक ईस्‍ट पॉलिसी' पर फोकस करते हुए दक्षिण एशियाई मित्र देशों के साथ संयुक्‍त युद्धाभ्‍यास करने के लिए कहा तभी नौसेना की युद्ध क्षमताओं को विशेष रूप से विस्‍तार देने वाली योजना का विस्‍तृत ब्‍योरा भी उभर कर आया।

इसी कड़ी में शनिवार को रक्षा मंत्रालय की रक्षा अधिग्रहण कमेटी द्वारा नई पीढ़ी युद्धपोतों की खरीद और नौसेना की लड़ाकू क्षमता तंत्र के स्‍तर को अपग्रेड करने से संबंधित 29 हजार करोड़ रुपये के प्रस्‍तावों की समीक्षा करने के साथ प्रस्‍तावों को मंजूरी दिए जाने की संभावना है।

इनमें से सबसे महत्‍वपूर्ण प्रस्‍ताव नई क्‍लास की छह नई पीढ़ी की मिसाइल बोटों के निर्माण से संबंधित है। इनके निर्माण के बाद ये अपनी क्‍लास के दुनिया के सबसे शक्तिशाली पोत होंगे। 1,250 टन के ये 'पॉकेट युद्धपोत' ब्रम्‍होस (पोत रोधी मिसाइलों) से लैस होंगे जोकि जमीन और सागर में 300 किमी दूरी तक के लक्ष्‍य को निशाना बनाना में सक्षम है।

ये बोट नौसेना की पुरानी प्रबल क्‍लास मिसाइल बोट का स्‍थान लेंगे। इसके साथ ही ये सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों, शत्रु मिसाइलों की पहचान करने में सक्षम सुरक्षा कवच एवं छोटी तेज नौकाओं के जरिये हमला करने वाले आतंकवादियों से निपटने के लिए एक मुख्‍य गन और प्‍वांइट रक्षा गनों से लैस होगी। 13 हजार करोड़ रुपये की लागत से देश में ही इनका निर्माण किया जाएगा।

दुनिया की आधुनिक नौसेनाओं में इस तरह की नई पीढ़ी के छोटे सशस्‍त्र मिसाइल बोट का नया चलन दिख रहा है। उसी कड़ी में अपनी साइज के हिसाब से भरपूर हथियारों से सुसज्जित इन मिसाइल बोटों के विकास को जोड़कर देखा जा रहा है। पिछले साल अक्‍टूबर में रूस की नौसेना ने चार छोटे युद्धपोतों और लड़ाकू जलपोतों से कैस्पियन सागर से 1500 किमी दूर आईएसआईस पर हमला किया।

भारतीय नौसेना लंबे समय से इस तरह की छोटी मिसाइल बोटों को तरजीह देती रही हैं। 1971 में पाकिस्‍तान के खिलाफ युद्ध में रूसी डिजाइन वाली ओसा क्‍लास की मिसाइल बोटों ने कराची बंदरगाह के आस-पास बड़े पैमाने पर कहर बरपाया था। इसके माध्‍यम से इस क्षेत्र में पोत-रोधी मिसाइलों का युद्ध के दौरान इस्‍तेमाल किया गया। युद्ध के दौरान नौसैनिक पोत द्वारा इस तरह के पोत-रोधी मिसाइलों का सफलतापूर्वक इस्‍तेमाल की यह दूसरी घटना थी। ऑपरेशन ट्राईडेंट के नाम से मशहूर वह अभियान इतना सफल रहा कि हर साल उस दिन का जश्‍न मनाने के लिए चार दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस मनाया जाता है।

मिसाइल बोटों के अतिरिक्‍त नौसेना अपने दिल्‍ली क्‍लास विध्‍वंसक और अपेक्षाकृत नए तलवार क्‍लास युद्धपोतों के स्‍तर को अपग्रेड करते हुए इन्‍हें ब्रम्‍होस मिसाइल से लैस करेगी। अभी इन पर मौजूद क्‍लब पोत रोधी मिसाइलों को पुराने पोतों पर हस्‍तांतरित किया जाएगा। हालांकि इन योजनाओं को अभी अंतिम रूप दिया जाना शेष है। इन युद्धपोतों को अपग्रेड करने में कुल मिलाकर 2700 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

इसके साथ ही नेवी अपने मेरीन कमांडोज के ऑपरेशन क्षमता को भी अपग्रेड करने की इच्‍छुक है। ये अब स्‍पेशल ऑपरेशंस व्‍हीकल्‍स (एसओवी) से लैस होंगे जोकि एक किस्‍म की मिनी-सबमेरीन (छोटी पनडुब्‍बी) होंगी। इनका निर्माण विशाखापत्‍तनम की हिंदुस्‍तान शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा किया जाएगा। इसके साथ ही कमांडो ऑपरेशन में विशेषज्ञ गोताखोरों के इस्‍तेमाल के लिए प्रत्‍येक एसओवी पर तीन गोताखोर डिलीवरी वाहन (एसडीवी) होंगे। इस प्रोजेक्‍ट की अनुमानित लागत 2000 करोड़ रुपये है।

इसके अतिरिक्‍त नौसेना कुल मिलाकर सागर में अपने दमखम को बढ़ाने के लिए एवं भारतीय तटों से दूर अपने ऑपरेशन के लिए जरूरी नौसेनिक बेड़े के लिए सहायक पोतों के निर्माण पर भी ध्‍यान दे रही है। इसके तहत 9000 करोड़ रुपये की लागत से पांच ऐसे सहायक जहाजों के निर्माण के लिए हिंदुस्‍तान शिपयार्ड्स लिमिटेड और दक्षिण कोरिया की हुंडई हेवी इंडस्‍ट्रीज के बीच बात चल रही है। अभी यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि इसमें दोनों देशों की सरकारों के साथ सीधे समझौता होगा या इसमें शामिल दोनों कंपनियों के बीच बातचीत होगी।

इसके साथ ही पुराने पोतों की जगह 150 करोड़ रुपये की लागत के साथ नेवी, मेक इन इंडिया प्रस्‍ताव के तहत गोताखोरी में मदद के लिए पांच नई पोत खरीदेगी। नौसेना जहाज निर्माण मौजूदा सरकार के मेक इन इंडिया अभियान के तहत रक्षा क्षेत्र में सफलता की गाथा है। दशकों से भारत अपनी जरूरत के लिहाज से एयरक्राफ्ट करियर से लेकर परमाणु पनडुब्‍बी ले जाने जहाजों को डिजाइन और निर्माण कर रहा है।

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