प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुहिम के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रईस लोगों द्वारा किसी और के नाम से ज़मीन-जायदाद खरीदे जाने पर नज़र रखकर कानून की उस कमज़ोर कड़ी को दूर कर दिया है, जो कर चोरी के लिए इस्तेमाल की जाती थी. यह बात एक वरिष्ठ कर अधिकारी ने सोमवार को कही.
हालांकि प्रधानमंत्री की प्रशासनिक टीम का सारा ध्यान पिछले महीने अचानक की गई नोटबंदी से निपटने में लगा हुआ था, लेकिन इस कर अधिकारी ने रॉयटर को बताया कि कर विभाग द्वारा संदिग्ध नामों के तहत दर्ज ज़मीन-जायदाद की जांच तेज़ की जाएगी.
अधिकारी के मुताबिक, उम्मीद है कि कर अधिकारी इसी साल जुलाई में फाइल की गई आयकर रिटर्नों, तथा छापों व बैंक लेनदेन से मिले डाटा जैसे अन्य साधनों का इस्तेमाल करेंगे, ताकि ज़मीन-जायदाद के संदिग्ध सौदों की सूचनाएं एकत्र की जा सकें.
मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं होने की वजह से नाम न छापे जाने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, "अगले साल यही हमारी प्राथमिकता रहेगी..."
भारत में ज़मीन-जायदाद के घपलों से भरे बाज़ार को साफ करने की कोई भी कोशिश बेहद बड़ा और दुरूह काम साबित होगा. खासतौर से ऐसे वक्त में, जब नरेंद्र मोदी सरकार की नोटबंदी के बाद पैदा हुए नकदी संकट से निपटने में विफल रहने को लेकर ज़ोरदार आलोचना हो रही है.
भारत में ज़मीनों के रिकॉर्ड काफी गड़बड़भरे और असलियत को छिपाने वाले माने जाते रहे हैं. विश्लेषकों का कहना है कि राजनेता, व्यापारी तथा अप्रवासी भारतीय अक्सर ज़मीनें खरीदने के लिए उस नकदी का इस्तेमाल करते हैं, जिस पर उन्होंने टैक्स नहीं दिया है, और अक्सर ऐसी ज़मीन-जायदाद वे किसी रिश्तेदार या विश्वस्त कर्मचारी के नाम पर खरीदते हैं. इसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी वे ज़मीनें या मकान स्थानांतरित होते रहते हैं, लेकिन काग़ज़ों में मालिक का नाम कभी बदलवाया ही नहीं जाता.
इस तरह की करतूतें किस स्तर तक की जाती हैं, इसे लेकर कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उद्योग का अनुमान है कि बहुत-से शहरों में ज़मीन-जायदाद के लगभग पांच से 10 फीसदी सौदे ऐसे लोगों द्वारा ही किए जाते हैं, जिन्होंने कर चोरी की है.
रविवार को अपने मासिक रेडियो संबोधन 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी को भ्रष्टाचार से लड़ाई बताते हुए उसका बचाव किया था, और कहा था कि उनकी सरकार आने वाले दिनों में ज़मीन-जायदाद के धंधे की सफाई के लिए कानून को लागू करेगी. उन्होंने कहा था, "अब पीछे लौटने का सवाल ही नहीं उठता..."
प्रोहिबिशन ऑफ बेनामी प्रॉपर्टी ट्रांज़ैक्शन्स एक्ट कहलाने वाला कानून 1 नवंबर को लागू हो गया था, और इसमें कहा गया है कि जिन लोगों के पास ऐसी संपत्ति है, जो उनके नाम में नहीं है, उन लोगों को जायदाद की जब्ती के अलावा सात साल तक की कैद की सज़ा हो सकती है.
सरकार को फिलहाल यह तय करना बाकी है कि वह ज़मीन-जायदाद के रिकॉर्डों तथा उनकी रजिस्ट्रियों को किस तरह अपडेट करेगी.
विश्लेषकों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असली परीक्षा इस कानून का पालन करवाना तथा दोषियों को इस तरह दंडित करना होगी, जिससे दूसरों को परेशानियों का सामना न करना पड़े.
© Thomson Reuters 2016
हालांकि प्रधानमंत्री की प्रशासनिक टीम का सारा ध्यान पिछले महीने अचानक की गई नोटबंदी से निपटने में लगा हुआ था, लेकिन इस कर अधिकारी ने रॉयटर को बताया कि कर विभाग द्वारा संदिग्ध नामों के तहत दर्ज ज़मीन-जायदाद की जांच तेज़ की जाएगी.
अधिकारी के मुताबिक, उम्मीद है कि कर अधिकारी इसी साल जुलाई में फाइल की गई आयकर रिटर्नों, तथा छापों व बैंक लेनदेन से मिले डाटा जैसे अन्य साधनों का इस्तेमाल करेंगे, ताकि ज़मीन-जायदाद के संदिग्ध सौदों की सूचनाएं एकत्र की जा सकें.
मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं होने की वजह से नाम न छापे जाने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, "अगले साल यही हमारी प्राथमिकता रहेगी..."
भारत में ज़मीन-जायदाद के घपलों से भरे बाज़ार को साफ करने की कोई भी कोशिश बेहद बड़ा और दुरूह काम साबित होगा. खासतौर से ऐसे वक्त में, जब नरेंद्र मोदी सरकार की नोटबंदी के बाद पैदा हुए नकदी संकट से निपटने में विफल रहने को लेकर ज़ोरदार आलोचना हो रही है.
भारत में ज़मीनों के रिकॉर्ड काफी गड़बड़भरे और असलियत को छिपाने वाले माने जाते रहे हैं. विश्लेषकों का कहना है कि राजनेता, व्यापारी तथा अप्रवासी भारतीय अक्सर ज़मीनें खरीदने के लिए उस नकदी का इस्तेमाल करते हैं, जिस पर उन्होंने टैक्स नहीं दिया है, और अक्सर ऐसी ज़मीन-जायदाद वे किसी रिश्तेदार या विश्वस्त कर्मचारी के नाम पर खरीदते हैं. इसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी वे ज़मीनें या मकान स्थानांतरित होते रहते हैं, लेकिन काग़ज़ों में मालिक का नाम कभी बदलवाया ही नहीं जाता.
इस तरह की करतूतें किस स्तर तक की जाती हैं, इसे लेकर कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन उद्योग का अनुमान है कि बहुत-से शहरों में ज़मीन-जायदाद के लगभग पांच से 10 फीसदी सौदे ऐसे लोगों द्वारा ही किए जाते हैं, जिन्होंने कर चोरी की है.
रविवार को अपने मासिक रेडियो संबोधन 'मन की बात' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी को भ्रष्टाचार से लड़ाई बताते हुए उसका बचाव किया था, और कहा था कि उनकी सरकार आने वाले दिनों में ज़मीन-जायदाद के धंधे की सफाई के लिए कानून को लागू करेगी. उन्होंने कहा था, "अब पीछे लौटने का सवाल ही नहीं उठता..."
प्रोहिबिशन ऑफ बेनामी प्रॉपर्टी ट्रांज़ैक्शन्स एक्ट कहलाने वाला कानून 1 नवंबर को लागू हो गया था, और इसमें कहा गया है कि जिन लोगों के पास ऐसी संपत्ति है, जो उनके नाम में नहीं है, उन लोगों को जायदाद की जब्ती के अलावा सात साल तक की कैद की सज़ा हो सकती है.
सरकार को फिलहाल यह तय करना बाकी है कि वह ज़मीन-जायदाद के रिकॉर्डों तथा उनकी रजिस्ट्रियों को किस तरह अपडेट करेगी.
विश्लेषकों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की असली परीक्षा इस कानून का पालन करवाना तथा दोषियों को इस तरह दंडित करना होगी, जिससे दूसरों को परेशानियों का सामना न करना पड़े.
© Thomson Reuters 2016
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