पीएम नरेंद्र मोदी के 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' के प्रस्ताव पर सरकार तेजी से आगे बढ़ने को उत्सुक दिख रही है.
नई दिल्ली:
लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने के सरकार के प्रस्ताव में कुछ और तेज़ी दिख रही है. सोमवार को राष्ट्रपति के अभिभाषण में इसका ज़िक्र हुआ और एनडीए की बैठक में प्रधानमंत्री ने भी ये मुद्दा पेश किया.
संसद के बजट सत्र के अभिभाषण में जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' का ज़िक्र किया तो साफ़ हो गया कि सरकार इस मसले को बहुत तेज़ी से बढ़ाना चाहती है. राष्ट्रपति ने कहा कि एक चुनाव की प्रक्रिया पर विचार होना चाहिए और सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाई जानी चाहिए.
यह भी पढ़ें : क्या राष्ट्रपति कोविंद के अभिभाषण ने तय कर दिया है मोदी सरकार के 2019 के लोकसभा चुनाव का एजेंडा? 8 बड़ी बातें
राष्ट्रपति के अभिभाषण के कुछ ही घंटे बाद प्रधानमंत्री ने ये मुद्दा एनडीए की बैठक में उठा दिया और कहा कि इस प्रस्ताव पर सभी राजनीतिक दलों को गंभीरता से विचार करना चाहिए. हालांकि प्रधानमंत्री की इस पहल के सामने कई सवाल भी हैं. 22 जनवरी को कानून और न्याय मामलों की संसदीय समिति की बैठक में विपक्ष इस सुझाव का विरोध कर चुका है. इसके लिए संविधान में कई अहम संशोधन करने होंगे. साथ चुनाव कराने के सामने संसाधनों का भी सवाल है- वीवीपैट, ईवीएम मशीनों और सुरक्षा बलों की तैनाती का मसला है.
दिल्ली में कुछ विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक के बाद प्रफुल्ल पटेल ने कहा, "इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को एक होना चाहिए. इसके लिए संविधान में परिवर्तन लाने की बात आएगी. ये कोई ऐसा विषय नहीं है कि एक दिन में कोई फैसला किया जा सके. इस मुद्दे पर जब विपक्षी दलों की संयुक्त बैठक होगी तभी हम आपको इस पर कुछ ज़्यादा बता पाएंगे."
VIDEO : मुद्दे पर विचार के लिए सेमिनार
इसके अलावा विपक्ष इसे देश के संघीय ढांचे पर चोट की तरह देख रहा है. कई राज्यों के मुख्यमंत्री ये प्रस्ताव शायद आसानी से कबूल न करें. एक सवाल ये भी है कि अगर किसी राज्य की सरकार गिर गई तो वहां क्या होगा? क्या अगले लोकसभा चुनाव तक राष्ट्रपति शासन लगा रहेगा? इससे फिर संघीय ढांचे पर सवाल उठेंगे. आने वाले दिनों में ऐसे कई सवालों के जवाब प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को देने होंगे.
संसद के बजट सत्र के अभिभाषण में जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 'एक राष्ट्र-एक चुनाव' का ज़िक्र किया तो साफ़ हो गया कि सरकार इस मसले को बहुत तेज़ी से बढ़ाना चाहती है. राष्ट्रपति ने कहा कि एक चुनाव की प्रक्रिया पर विचार होना चाहिए और सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाई जानी चाहिए.
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राष्ट्रपति के अभिभाषण के कुछ ही घंटे बाद प्रधानमंत्री ने ये मुद्दा एनडीए की बैठक में उठा दिया और कहा कि इस प्रस्ताव पर सभी राजनीतिक दलों को गंभीरता से विचार करना चाहिए. हालांकि प्रधानमंत्री की इस पहल के सामने कई सवाल भी हैं. 22 जनवरी को कानून और न्याय मामलों की संसदीय समिति की बैठक में विपक्ष इस सुझाव का विरोध कर चुका है. इसके लिए संविधान में कई अहम संशोधन करने होंगे. साथ चुनाव कराने के सामने संसाधनों का भी सवाल है- वीवीपैट, ईवीएम मशीनों और सुरक्षा बलों की तैनाती का मसला है.
दिल्ली में कुछ विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक के बाद प्रफुल्ल पटेल ने कहा, "इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को एक होना चाहिए. इसके लिए संविधान में परिवर्तन लाने की बात आएगी. ये कोई ऐसा विषय नहीं है कि एक दिन में कोई फैसला किया जा सके. इस मुद्दे पर जब विपक्षी दलों की संयुक्त बैठक होगी तभी हम आपको इस पर कुछ ज़्यादा बता पाएंगे."
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इसके अलावा विपक्ष इसे देश के संघीय ढांचे पर चोट की तरह देख रहा है. कई राज्यों के मुख्यमंत्री ये प्रस्ताव शायद आसानी से कबूल न करें. एक सवाल ये भी है कि अगर किसी राज्य की सरकार गिर गई तो वहां क्या होगा? क्या अगले लोकसभा चुनाव तक राष्ट्रपति शासन लगा रहेगा? इससे फिर संघीय ढांचे पर सवाल उठेंगे. आने वाले दिनों में ऐसे कई सवालों के जवाब प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को देने होंगे.
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