पेट्रोलियम पदार्थों की लगातार बढ़ती कीमतों ने लोगों की परेशानियां बढ़ाने का काम किया है. इस मामले में सरकार को भी विपक्ष के हमलों का सामना करना पड़ रहा है. पेट्रोलियम उत्पादों (Petroleum product) पर टैक्स कम करने को लेकर पेट्रोलियम मंत्रालय लगातार वित्त मंत्रालय के संपर्क में है. सरकार के सूत्रों ने बताया, हम टैक्स के मुद्दे पर सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं ताकि आम लोगों को राहत दी जा सके. हालांकि इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय वित्त मंत्रालय को ही करना है. सूत्रों ने बताया कि नोडल मंत्रालय होने के नाते पेट्रोलियम मंत्रालय चाहता है कि पेट्रोल- डीजल की कीमतें कम हों. दूसरी ओर, सरकार चाहती है कि एलपीजी की सब्सिडी केवल जरुरतमंदों को ही दी जाए. सरकार एलपीजी पर सब्सिडी की समीक्षा कर रही है.
सूत्रों ने कहा कि केंद्र और राज्यों, दोनों को मिलकर ईंधन (पेट्रोल-डीजल) की कीमतों में कमी करनी चाहिए. उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम मंत्रालय, सऊदी अरब से रूस तक पहुंचकर तेल उत्पादक देशों के साथ कीमत कम करने की दिशा में काफी गंभीरता से काम कर रहा है. उन्होंने कहा कि वैश्विक तेल कीमतें अगले तीन माह में 70 डॉलर प्रति बैरल की सीमा में रहनी चाहिए, इस दिशा में सतर्कता से उपाय करने की जरूरत है.
We are a country of dead people. Nowhere else would people have tolerated the daily and unjustified rise in petrol, diesel and lpg prices. If the govt collected Rs 75,000 cr in taxes in 2014, it is today collecting 3.50 lakh cr. Isn't it daylight robbery?
— Yashwant Sinha (@YashwantSinha) October 17, 2021
दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता भारत ने सऊदी अरब और ओपेक (तेल निर्यातक देशों के संगठन) के अन्य सदस्य देशों से कहा कि तेल की ऊंची कीमतें दुनिया में आर्थिक पुनरुद्धार को नुकसान पहुंचाएंगी. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ओपेक को तेल की कीमतें वाजिब स्तर पर रखनी चाहिए. गौरतलब है कि इस साल मई से कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी शुरू होने के बाद देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं. अधिकारी ने कहा कि भारत ने पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन और अन्य तेल उत्पादकों से कहा कि तेल की ऊंची कीमत के कारण वैकल्पिक ईंधन को अपनाने की गति बढ़ेगी और इससे तेल उत्पादकों को नुकसान पहुंच सकता है.भारत पश्चिम एशिया से अपनी तेल जरूरतों का लगभग दो-तिहाई आयात करता है.
अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘तेल की कीमतों को लेकर उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच हितों का संतुलन बनाना पड़ता है. अभी ये वास्तव में बहुत ज्यादा हैं, क्योंकि आपूर्ति की तुलना में मांग अधिक है.'कोविड-19 महामारी पर काबू पाने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें पिछले साल अप्रैल में 19 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक गिर गई थीं. हालांकि, अर्थव्यवस्थाओं के खुलने के साथ ही मांग में तेजी से सुधार हुआ और अंतरराष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड तब से बढ़कर 85.67 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है. (भाषा से भी इनपुट)
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