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This Article is From Jun 25, 2015

खाद्य मामलों की समिति के अध्‍यक्ष बोले, संसद की कैंटीन से सब्सिडी हटाना 'पेट पर लात मारने जैसा'

खाद्य मामलों की समिति के अध्‍यक्ष बोले, संसद की कैंटीन से सब्सिडी हटाना 'पेट पर लात मारने जैसा'
फाइल फोटो : संसद भवन
नई दिल्‍ली: संसद की कैंटीन में सब्सिडी वाला सस्‍ता खाना मिलने के मुद्दे के गर्माने के बाद संसद की खाद्य मामलों की समिति के अध्‍यक्ष ने यह कहकर बात पर पर्दा डालने की कोशिश की है कि सब्सिडी हटाना पेट पर लात मारने की तरह है। दरअसल, इस मामले के मीडिया में उठने के बाद सरकार ने बुधवार को कहा कि इस पर फैसला संसद की खाद्य मामलों की समिति करेगी। इसके बाद इस समिति के अध्यक्ष जीतेंद्र रेड्डी ने सब्सिडी हटाने की भावना ही खारिज कर दिया।

दैनिक भास्‍कर में प्रकाशित खबर के अनुसार, टीआरएस के सांसद रेड्डी ने उन्‍हें जबाब दिया कि 'उनकी नानी कहती थीं कि किसी के पेट पर लात नहीं मारनी चाहिए।'

इससे पहले इसके बाद संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने इस बहस को अच्‍छी बताते हुए कहा कि सरकार अकेले फैसला नहीं कर सकती। रेड्डी से कहा कि दो-चार सांसदों की बात नहीं है। संसद में काम करने वाले चार हजार कर्मचारी भी कैंटीन में ही खाना खाते हैं। मामला सरकार के पास आया तो मानवीय भावना से विचार करेंगे। सांसदों के भोजन की सब्सिडी नहीं हटानी चाहिए।

उल्‍लेखनीय है कि मंगलवार को एक आरटीआई अर्जी के जरिए इस बात का खुलासा हुआ था कि संसद परिसर में स्थित कैंटीनों को पिछले पांच साल के दौरान 60.7 करोड़ रुपए की कुल सब्सिडी दी गई। यहां पूड़ी-सब्जी जैसी चीजें 88 प्रतिशत सब्सिडी पर बेची जा रही हैं।

इसके अलावा जवाब में बताया गया कि प्रतिमाह 1.4 लाख रुपए से भी ज्‍यादा कमाने वाले सांसदों के लिए स्वादिष्ट फाइड फिश और चिप्स 25 रुपए में, मटन कटलेट 18 रुपए रुपए, सब्जियां पांच रुपए, मटन करी 20 रुपए और मसाला डोसा छह रुपए में उपलब्ध हैं। यानि इनकी कीमतों में क्रमश: 63 प्रतिशत, 65 प्रतिशत, 83 प्रतिशत, 67 प्रतिशत और 75 प्रतिशत की सब्सिडी है।
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