पूर्व सांसद रामसेवक सिंह ने दिल्ली आकर किरीट सोमैया से मुलाकात की...
नई दिल्ली:
संसद परिसर का वीडियो बनाने और उसे फेसबुक पर पोस्ट करने के मामले में आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान की जांच अभी चल ही रही है. इस बीच मध्य प्रदेश के एक पूर्व सांसद रामसेवक सिंह ने जांच समिति के अध्यक्ष किरीट सोमैया से मिलकर अपना दर्द बयान किया है. ग्वालियर से 2004 में लोकसभा सांसद बने राम सेवक सिंह कहते हैं कि वह उन सवालों को लेकर किरीट सोमैया के पास आए, जिनका जवाब वह पिछले 10 साल से मांग रहे हैं. अगस्त 2005 में रामसेवक सिंह के फर्जी दस्तखत कर किसी ने अलग-अलग मंत्रालयों से 31 सवाल पूछे। लोकसभा सचिवालय ने फर्जी दस्तखत तो पकड़े, लेकिन फर्जीवाड़ा करने वालों का अब तक कुछ पता नहीं चला है.
12 अगस्त 2005 को लोकसभा सचिवालय ने रामसेवक सिंह को चिट्ठी भेजकर बताया कि उनके नाम पर 6 मंत्रालयों से 31 सवाल पूछे गए हैं, लेकिन उनके दस्तखत मेल नहीं खा रहे, इसलिए सवाल उन्हें वापस भेजे जाते हैं. रामसेवक सिंह का कहना है कि उस वक्त अपने पिता की बीमारी (और फिर उनके निधन) की वजह से वह लोकसभा की इस चिट्ठी पर अधिक ध्यान नहीं दे पाए.
महत्वपूर्ण है कि उसके बाद दिसंबर 2005 में एक स्टिंग ऑपरेशन में जो 10 सांसद पैसा लेकर सवाल पूछने के दोषी पाए गए, उनमें कांग्रेस सांसद रामसेवक सिंह का नाम भी आ गया. तब संसद की जांच कमेटी की सिफारिश के चलते रामसेवक सिंह की सदस्यता बर्खास्त हुई. रामसेवक सिंह कहते हैं कि जिस दिन (12 दिसंबर 2005) उनके खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन एक निजी चैनल पर प्रसारित हुआ, उसके अगले ही दिन उन्होंने लोकसभा स्पीकर को इन फर्ज़ी सवालों के बारे में बता दिया था. तब से वो इस बात का पता लगाने को कह रहे हैं कि उनके नाम पर ये फर्जी सवाल किसने लगाए.
रामसेवक सिंह के बेटे धरमवीर ने NDTV इंडिया को दस्तावेज़ दिखाकर कहा कि उन्होंने एक अलग आरटीआई लगाकर जब लोकसभा सचिवालय से ये पूछा कि 2004 से 2014 तक कितने फर्ज़ी सवाल लगाने के मामले सामने आए तो सचिवालय की ओर से उन्हें बताया गया कि ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया, जबकि खुद रामसेवक सिंह को 2005 में चिट्ठी भेजकर सचिवालय ने ही कहा था कि उनके नाम पर किसी ने फर्जी दस्तखत कर सवाल लगाए हैं.
धरमवीर कहते हैं, 'मेरे पिता और मैं इस बात से हैरान रह गए कि लोकसभा सचिवालय ये जवाब भेज सकता है. हमें पता था कि मेरे पिता के नाम से किसी ने जाली दस्तखत कर सवाल लगाने की कोशिश की. मेरे पिता हिंदी में साइन नहीं करते, जबकि उन सवालों के साथ किए गए दस्तखत हिंदी में थे. हम ये मांग कर रहे हैं कि अब तक फर्ज़ी साइन करने वाले उस व्यक्ति को पकड़ा क्यों नहीं गया.'
रामसेवक सिंह को सूचना के अधिकार से पता चला कि लोकसभा सचिवालय ने खुद अलग से इस बात की जांच नहीं की कि फर्ज़ी सवाल किसने पूछे, लेकिन इस साल एक अगस्त में दिए जवाब में लोकसभा सचिवालय ने कहा कि इस मामले में जांच के लिए पुलिस के पास जाना रामसेवक सिंह की जिम्मेदारी थी.
भगवंत मान मामले की जांच कर रही किरीट सोमैया समिति के सामने संसद की सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर ऐसे मामले महत्वपूर्ण हैं. अपने बचाव में जांच समिति के सामने भगवंत मान संसद में पहले हुई सुरक्षा चूक और कुछ सांसदों की गलतियों का ज़िक्र कर चुके हैं. सीपीएम सांसद मोहम्मद सलीम ने कहा है कि इस पूरे मामले को व्यापक परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए. सलीम कहते हैं, 'कुछ मामलों में संसद त्वरित कार्रवाई करती है, लेकिन कई मामलों में तेजी से कार्रवाई नहीं हो पाती. ये दोहरा पैमाना नहीं होना चाहिए. संसद में सुरक्षा से चूक, कार में जाली स्टिकर लगाकर संसद के भीतर आना और जाली तरीके से सवाल पूछे जाने की कोशिश होने की खबरें सबको पता हैं. इस पर एक्शन होना चाहिए.'
(फोटो- अगस्त 2005 में लोकसभा सचिवालय ने रामसेवक को उनके फर्जी दस्तखत कर लगाए गएसवालों की लिस्ट भेजी)
12 अगस्त 2005 को लोकसभा सचिवालय ने रामसेवक सिंह को चिट्ठी भेजकर बताया कि उनके नाम पर 6 मंत्रालयों से 31 सवाल पूछे गए हैं, लेकिन उनके दस्तखत मेल नहीं खा रहे, इसलिए सवाल उन्हें वापस भेजे जाते हैं. रामसेवक सिंह का कहना है कि उस वक्त अपने पिता की बीमारी (और फिर उनके निधन) की वजह से वह लोकसभा की इस चिट्ठी पर अधिक ध्यान नहीं दे पाए.
(फोटो- फर्जी दस्तखत, लेकिन ये काम किसने किया इसका अब तक पता नहीं चला है)
महत्वपूर्ण है कि उसके बाद दिसंबर 2005 में एक स्टिंग ऑपरेशन में जो 10 सांसद पैसा लेकर सवाल पूछने के दोषी पाए गए, उनमें कांग्रेस सांसद रामसेवक सिंह का नाम भी आ गया. तब संसद की जांच कमेटी की सिफारिश के चलते रामसेवक सिंह की सदस्यता बर्खास्त हुई. रामसेवक सिंह कहते हैं कि जिस दिन (12 दिसंबर 2005) उनके खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन एक निजी चैनल पर प्रसारित हुआ, उसके अगले ही दिन उन्होंने लोकसभा स्पीकर को इन फर्ज़ी सवालों के बारे में बता दिया था. तब से वो इस बात का पता लगाने को कह रहे हैं कि उनके नाम पर ये फर्जी सवाल किसने लगाए.
रामसेवक सिंह के बेटे धरमवीर ने NDTV इंडिया को दस्तावेज़ दिखाकर कहा कि उन्होंने एक अलग आरटीआई लगाकर जब लोकसभा सचिवालय से ये पूछा कि 2004 से 2014 तक कितने फर्ज़ी सवाल लगाने के मामले सामने आए तो सचिवालय की ओर से उन्हें बताया गया कि ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया, जबकि खुद रामसेवक सिंह को 2005 में चिट्ठी भेजकर सचिवालय ने ही कहा था कि उनके नाम पर किसी ने फर्जी दस्तखत कर सवाल लगाए हैं.
धरमवीर कहते हैं, 'मेरे पिता और मैं इस बात से हैरान रह गए कि लोकसभा सचिवालय ये जवाब भेज सकता है. हमें पता था कि मेरे पिता के नाम से किसी ने जाली दस्तखत कर सवाल लगाने की कोशिश की. मेरे पिता हिंदी में साइन नहीं करते, जबकि उन सवालों के साथ किए गए दस्तखत हिंदी में थे. हम ये मांग कर रहे हैं कि अब तक फर्ज़ी साइन करने वाले उस व्यक्ति को पकड़ा क्यों नहीं गया.'
(फोटो- रामसेवक सिंह के बेटे धरमवीर सिंह की ओर से लगाई गई आरटीआई का जवाब)
रामसेवक सिंह को सूचना के अधिकार से पता चला कि लोकसभा सचिवालय ने खुद अलग से इस बात की जांच नहीं की कि फर्ज़ी सवाल किसने पूछे, लेकिन इस साल एक अगस्त में दिए जवाब में लोकसभा सचिवालय ने कहा कि इस मामले में जांच के लिए पुलिस के पास जाना रामसेवक सिंह की जिम्मेदारी थी.
(फोटो- इस साल 1 अगस्त को दिए अपने जवाब में लोकसभा सचिवालय ने कहा कि इस मामले में जांच के लिए पुलिस के पास जाना रामसेवक सिंह की जिम्मेदारी है)
भगवंत मान मामले की जांच कर रही किरीट सोमैया समिति के सामने संसद की सुरक्षा और गोपनीयता को लेकर ऐसे मामले महत्वपूर्ण हैं. अपने बचाव में जांच समिति के सामने भगवंत मान संसद में पहले हुई सुरक्षा चूक और कुछ सांसदों की गलतियों का ज़िक्र कर चुके हैं. सीपीएम सांसद मोहम्मद सलीम ने कहा है कि इस पूरे मामले को व्यापक परिपेक्ष्य में देखा जाना चाहिए. सलीम कहते हैं, 'कुछ मामलों में संसद त्वरित कार्रवाई करती है, लेकिन कई मामलों में तेजी से कार्रवाई नहीं हो पाती. ये दोहरा पैमाना नहीं होना चाहिए. संसद में सुरक्षा से चूक, कार में जाली स्टिकर लगाकर संसद के भीतर आना और जाली तरीके से सवाल पूछे जाने की कोशिश होने की खबरें सबको पता हैं. इस पर एक्शन होना चाहिए.'
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