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This Article is From Sep 24, 2018

अब SC की संविधान पीठ तय करेगी, क्या दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं का खतना संवैधानिक है?

दाऊदी बोहरा समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा के खिलाफ दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों के संविधान पीठ के पास भेज दिया गया है. तीन जजों की पीठ ने यह मामला संविधान पीठ को भेजा है.

अब SC की संविधान पीठ तय करेगी, क्या दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं का खतना संवैधानिक है?
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: दाऊदी बोहरा समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा के खिलाफ दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों के संविधान पीठ के पास भेज दिया गया है. तीन जजों की पीठ ने यह मामला संविधान पीठ को भेजा है. अब पांच जजों की संविधान पीठ तय करेगा कि क्या समुदाय में महिलाओं का खतना संवैधानिक है? इस मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि इस मामले को संविधान पीठ को भेजा जाना चाहिए क्योंकि मामला संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा है. 

वहीं दाऊदी बोहरा समुदाय की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये गंभीर मामला है, सुप्रीम कोर्ट को इसकी सुनवाई करनी चाहिए.  दाऊदी बोहरा समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि किसी भी धर्म के नाम पर कोई भी किसी लड़की के यौन अंग को कैसे छू सकता है और यौन अंगों से छेड़छाड़ लड़कियों की गरिमा और उनके सम्मान के खिलाफ है. 

पिछली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि खतना से जो बच्चों को नुकसान पहुंचता है उसकी भरपाई नहीं हो सकती. सती और देवदासी प्रथा भी खत्म की जा चुकी है. दुनिया के 42 देश खतना को प्रतिबंधित कर चुके हैं. इनकी आस्था ख़तने में हो सकती है लेकिन इन्हें संविधान के तहत ही प्रक्रिया को अपनाना होगा. ये प्रथा संवैधानिक प्रावधानों का उल्‍लंघन है. केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा कि सती और देवदासी की तरह ख़तना प्रथा को खत्म किया जाना चाहिए.

दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की तरफ से कहा गया कि वो कोशिश करेंगे कि इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए डॉक्टर की सहायता लें. हम चाहते हैं कि अदालत इस बात को रिकॉर्ड पर ले कि भविष्य में हम इसे प्रशिक्षित डॉक्टर से ही कराएंगे. इसे वैक्सिनेशन या मुंडन की तरह प्रथा ही समझा जाय. दाऊदी बोहरा मुस्लिम संगठनों के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'प्रक्रिया उतनी क्रूर नहीं है, जैसा याचिकाकर्ता बता रहे हैं. प्रथा सदियों से चलन में है. ये बोहरा समुदाय का अनिवार्य धार्मिक नियम है. इस मामले पर विस्तृत सुनवाई ज़रूरी है. मामला संविधान पीठ को भेजा जाए. बोहरा 100 फीसदी साक्षरता वाला प्रगतिशील समाज है. याचिकाकर्ता ने अफ्रीका के क्रूर रिवाजों के आधार पर यहां याचिका दाखिल कर दी. हमारा तरीका क्रूर नहीं. आइंदा सिर्फ डॉक्टरों से इसे करवाया जाएगा.'

 

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