प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) की तरफ से 17 मई को यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (UPSC) को एक पत्र लिखकर फाउंडेशन कोर्स के नंबरों के आधार पर चयनित आवेदकों को कैडर देने का सुझाव दिया गया है. अभी तक UPSC की परीक्षा में अंको के आधार पर सफल आवेदकों को IAS, IPS, IFS,IRS या दूसरे कैडर आवंटित होते थे. उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री अकादमी में उनका फाउंडेशन कोर्स होता था.अब प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना है कि फाउंडेशन कोर्स के नंबरों के आधार पर चयनित आवेदकों को कैडर मिले.यानि UPSC की परीक्षा में ज्यादा नंबर पाने या टॉप करने के बावजूद ये निश्चित नहीं होगा कि आप IAS या IPS बनेंगे, बल्कि फाउंडेशन कोर्स में मिले नंबर से कैडर अलॉट होगा.
इसके पीछे प्रधानमंत्री कार्यालय की सोच यह है कि एक बार UPSC की परीक्षा में सफल होने के बाद सफल परीक्षार्थी फाउंडेशन कोर्स यानि ट्रेनिंग को गंभीरता से नहीं लेता है.अगर फाउंडेशन कोर्स में परीक्षार्थी फेल भी हो जाए तो उसे दोबारा मौका मिलता है. कई बार परीक्षार्थी अपनी रैंक सुधारने के लिए फाउंडेशन कोर्स में शामिल ही नहीं होते हैं. इससे प्रधानमंत्री कार्यालय को लगता है कि नौकरशाहों की बौद्धिक और कार्यशीलता की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
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हालांकि कई दूसरे पहलुओं को प्रधानमंत्री कार्यालय या तो नंजर-अंदाज कर रहा है या फिर उसे समझना नहीं चाहता है.मसलन नौकरशाहों की सारी ट्रेनिंग अंग्रेजी भाषा में होती है. जिससे दूर-दराज और क्षेत्रीय भाषा से चयनित आवेदकों के पीछे रह जाने की संभावना है.उनके लिए IAS या IPS कैडर मिलना मुश्किल होगा, क्योंकि वो UPSC की परीक्षा अपने-अपने क्षेत्रीय भाषाओं में देकर सफल होते हैं.ध्येय IAS के संस्थापक विनय सिंह बताते हैं कि ट्रेनिंग के अंक जोड़ने से उन सफल आवेदकों को इस मायने में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है जो साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं, क्योंकि ट्रेनिंग वरिष्ठ नौकरशाहों की देखरेख में चलती है. ऐसे में प्रभावशाली और प्रशासनिक परिवार के पृष्ठिभूमि के सफल आवेदकों के साथ भाई-भतीजावाद की गुंजाइंश बची रह जाएगी जो फिलहाल अभी नहीं हो पाती है. कई सामान्य परिवार से आए वरिष्ठ नौकरशाह बताते हैं कि प्रशिक्षण संस्थान के डायरेक्टर पद पर बैठे लोगों के पास प्रैक्टिकल के नाम पर 150 नंबर तक देने का अधिकार होता है.
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UPSC में जब एक एक नंबर के लिए मारामारी हो तो प्रैक्टिकल के नाम पर इतने नंबर एक शख्स के पास होना कहीं न कहीं पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है.दलित संगठनों को भी इस बात का डर है कि कहीं जातिवाद के नाम पर दलित और सामान्य परिवारों के सफल आवेदकों से भेदभाव न हो. ध्येय IAS के संस्थापक बताते हैं कि ट्रेनिंग की गुणवत्ता रातोरात निकले फरमान से नहीं सुधरने वाली है, बल्कि पहले ट्रेनिंग में पढ़ाई जाने वाली अध्ययन सामग्री का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद हो.सामान्य और दलित परिवारों से आने वाले सफल आवेदकों से भेदभाव न होने पाए इसके लिए भी पर्याप्त उपाय होनें चाहिये.
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इसके पीछे प्रधानमंत्री कार्यालय की सोच यह है कि एक बार UPSC की परीक्षा में सफल होने के बाद सफल परीक्षार्थी फाउंडेशन कोर्स यानि ट्रेनिंग को गंभीरता से नहीं लेता है.अगर फाउंडेशन कोर्स में परीक्षार्थी फेल भी हो जाए तो उसे दोबारा मौका मिलता है. कई बार परीक्षार्थी अपनी रैंक सुधारने के लिए फाउंडेशन कोर्स में शामिल ही नहीं होते हैं. इससे प्रधानमंत्री कार्यालय को लगता है कि नौकरशाहों की बौद्धिक और कार्यशीलता की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
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हालांकि कई दूसरे पहलुओं को प्रधानमंत्री कार्यालय या तो नंजर-अंदाज कर रहा है या फिर उसे समझना नहीं चाहता है.मसलन नौकरशाहों की सारी ट्रेनिंग अंग्रेजी भाषा में होती है. जिससे दूर-दराज और क्षेत्रीय भाषा से चयनित आवेदकों के पीछे रह जाने की संभावना है.उनके लिए IAS या IPS कैडर मिलना मुश्किल होगा, क्योंकि वो UPSC की परीक्षा अपने-अपने क्षेत्रीय भाषाओं में देकर सफल होते हैं.ध्येय IAS के संस्थापक विनय सिंह बताते हैं कि ट्रेनिंग के अंक जोड़ने से उन सफल आवेदकों को इस मायने में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है जो साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं, क्योंकि ट्रेनिंग वरिष्ठ नौकरशाहों की देखरेख में चलती है. ऐसे में प्रभावशाली और प्रशासनिक परिवार के पृष्ठिभूमि के सफल आवेदकों के साथ भाई-भतीजावाद की गुंजाइंश बची रह जाएगी जो फिलहाल अभी नहीं हो पाती है. कई सामान्य परिवार से आए वरिष्ठ नौकरशाह बताते हैं कि प्रशिक्षण संस्थान के डायरेक्टर पद पर बैठे लोगों के पास प्रैक्टिकल के नाम पर 150 नंबर तक देने का अधिकार होता है.
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