
दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर में बढ़ती मौतों की तादाद से श्मशान घाट के कर्मी (Delhi Crematorium Workers) भी जूझ रहे हैं. पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर शवदाह गृह में 19 साल का श्मशान घाट कर्मी ने दोपहर में 7वीं चिता के लिए सारे प्रबंध कर रहा था. यह लंच के पहले का वक्त था. उसे कोविड मरीजों (Covid Patients Body) के शवों को लेने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. वह केवल मास्क पहनता है. पीपीई किट तो उसे कभी भी मयस्सर नहीं हुई. वह कोरोना मरीजों की चिंताओं के इतने नजदीक खड़े होना पड़ता है कि प्लास्टिक की पीपीई किट (PPE suit) वह पहन ही नहीं सकता.
एक शख्स ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, रोजाना रात 12.30 बजे तक कोई वक्त नहीं मिलता. उसके बाद ही हम खाते और सोते हैं. और सुबह 5 बजे उठना पड़ता है, ताकि राख को हटाया जा सके और पीड़ित परिवारों को दे सकें. फिर सुबह 10 बजे फिर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया शुरू की जाती है. यूपी के अयोध्या का रहने वाला ये शख्स रोजाना 12 घंटे से ज्यादा काम करता है और शवदाह गृह में ही सोता है.
पिछले साल कोरोना की पहली लहर के दौरान गाजीपुर श्मशानघाट (Ghazipur crematorium) के 15 में से 5 कर्मी भाग खड़े हुए थे. 19 साल के उस व्यक्ति ने बताया, वो ये जिम्मेदारी छोड़कर अचानक नहीं जा सकता. अगर वो गया तो शव लेकर यहां आने वाले लोगों को परेशानी होगी. वह पिछले दो माह में तीन बार ही शवदाह गृह छोड़कर कहीं गया है. उसे कोरोना से रिकॉर्ड मौतों के बीच 24 घंटे शवदाह गृह में ही मौजूद रहना पड़ता है. उत्तर प्रदेश से भी तमाम लाशें यहां आती हैं.
श्मशान घाटों में बढ़ती लाशों और परिजनों की चीख-पुकार के बीच काम को लेकर सवाल पर उसने कहा कि ज्यादा सोचने से आदमी कमजोर हो जाता है. हम बस अपनी जिम्मेदारी निभा रहे है. इन वर्करों को हर महीने 10 से 15 हजार रुपये मिलते है. लेकिन हर कोई ये बताने में हिचकिचाता है कि आखिरी बार उन्हें कब वेतन मिला था. उनका कहना है कि वे बस अपनी धार्मिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं.
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