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This Article is From Apr 08, 2021

रोहिंग्‍या शरणार्थियों पर SC का फैसला-कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक नहीं करें डिपोर्ट, रिहा करने से किया इनकार

रोहिंग्या शरणार्थियों को डिपोर्ट करने से रोकते हुए रिहा करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है.

रोहिंग्‍या शरणार्थियों पर SC का फैसला-कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक नहीं करें डिपोर्ट, रिहा करने से किया इनकार
26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था
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डिपोर्ट की प्रक्रिया में भी दखल देने से किया इनकार
26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा था सुरक्षित
जम्मू में हिरासत में लिए गए करीब 150 रोहिंग्या का है मामला
नई दिल्ली:

जम्मू में हिरासत में लिए गए करीब 150 रोहिंग्या (Rohingyas) शरणार्थियों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि जब तक कानून के मुताबिक तय प्रकिया पूरी न हो, रोहिंग्या को डिपोर्ट नहीं किया जाएगा. हालांकि अदालत ने रोहिंग्या शरणार्थियों को रिहा करने करने से इनकार किया. सुप्रीम कोर्ट ने डिपोर्ट करने की प्रक्रिया में भी दखल देने से इनकार किया है. रोहिंग्या शरणार्थियों को डिपोर्ट करने से रोकते हुए रिहा करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है.26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था.

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इससे पहले, वकील प्रशांत भूषण ने अदालत से मांग की कि म्यांमार से आए रोहिंग्या को हिरासत से रिहा किया जाए.इस पर SG तुषार मेहता ने कहा कि भूषण, म्यंमार की समस्या जो कि दूसरे देश की है उसको बता रहे है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही ऐसे मामले में असम से रोहिंग्या को वापस भेजने से रोकने की याचिका खारिज कर चुका है. ये याचिका भी इसी याचिकाकर्ता और वकील की थी. CJI ने भूषण से पूछा आपका मसला इससे कैसे जुड़ा है, म्यांमार और वहां की रोहिंग्या समस्या से क्योंकि वो तो विदेशी हैं जबकि जिस नियम का आप हवाला दे रहे हैं वो तो देश के नागरिकों के लिए है. SG ने कहा कि याचिकाकर्ता ने पहले भी असम में रोहिंग्या की अर्जी डाली और अब ये जम्मू कश्मीर के लिए डाल रहे हैं इस पर SC ने सवाल किया कि आप आर्टिकल 32 के तहत कोर्ट का रुख कर रहे है. इसके तहत सिर्फ़ देश के निवासी ही मूल धिकारों के हनन पर राहत के लिए कोर्ट का रुख कर सकते हैं. आप रोहिंग्या के लिए कोर्ट का रुख कर रहे हैं जो इस देश के नागरिक नहीं हैं, क्या ये संभव है? प्रशांत भूषण ने आर्टिकल 32 में देश के निवासी के लिए ही क़ानूनी राहत होने की बात नहीं लिखी है, कोई भी कोर्ट आ सकता है. हमने रोहिंग्या मुसलमानों को म्यामांर वापस भेजने से रोकने के लिए कोर्ट का रुख किया है.उन्हें यहीं शरणार्थी के रूप में रहने दिया जाए.

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SG तुषार मेहता ने कहा कि हम म्यांमार सरकार के संपर्क में हैं. उनको बताया है कि ये आपके नागरिक हैं. इन्हें अपने यहां वापस लीजिए. CJI ने कहा कि आपने अपने हलफनामे में ये कहां लिखा है कि आप इनको वापस भेज रहे हैं और म्यांमार सरकार ये मान रही है कि ये उनके नागरिक हैं.CJI ने पूछा कि आपके मुताबिक तो हमें विदेशी नागरिक अधिनियम के तहत हिरासत की वैधता की जांच करनी होगी? भूषण ने कहा-नहीं, ये रिफ्यूजी हैं! जान बचा कर हमारे यहां आए हैं.वही SG तुषार मेहता ने कहा कि यह दूसरी बार है. दरअसल म्यांमार में अशांति और हिंसा है. लोग पलायन कर रहे हैं. SG ने कहा कि असम से भी ऐसा ही मामला था जिसके लिए आवेदन किया गया था, जिसे खारिज कर दिया गया था. इस बार मामला जम्मू से है. वही याचिकाकर्ता और वही आधार वही दलीलें! CJI ने कहा तो पहले आवेदन खारिज कर दिया गया था? SG ने कहा- हां! सुप्रीम कोर्ट ने उस अर्जी को खारिज कर दिया था. तुषार मेहता ने कहा कि भारत घुसपैठियों की राजधानी नहीं है. 

कोर्ट ने जम्मू कश्मीर सरकार की तरफ से हस्तक्षेप याचिका पर हरीश साल्वे को पक्ष रखने को कहा, लेकिन प्रशांत भूषण ने बहस को आगे बढ़ाते हुए कोर्ट के पुराने आदेश का हवाला दिया. पहले भी पकड़े गए सात लोगों ने कोर्ट में स्वीकार किया था कि वो म्यांमार के निवासी हैं, लेकिन फिलहाल वो स्टेटलेस हैं. क्या ये देश जीवन के अधिकार की रक्षा के आदर्श मानदंडों का पालन नहीं करता? अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी ये साबित हो गया की म्यांमार की सरकार अवैध है. ये लोग वहां जाएंगे तो वहां की सेना उनको मार डालेगी. CJI ने कहा कि हम अब ये देखेंगे कि आपकी दलीलें इसी तरह के एक मामले में हमारे पिछले फैसले से कितना अलग है. दरअसल याचिका में केंद्र सरकार को निर्देश देने का आग्रह किया गया है कि वह अनौपचारिक शिविरों में रह रहे रोहिंग्याओं के लिए विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRRO) के माध्यम से शरणार्थी पहचान पत्र जारी करे. रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्लाह ने वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में जम्मू की जेल में बंद रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित करने के किसी भी आदेश को लागू करने से रोकने के लिए आदेश जारी करने की मांग की है. इसमें कहा गया है कि शरणार्थियों को सरकारी सर्कुलर को लेकर एक खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें संबंधित अधिकारियों को अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान करने और तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं. याचिका में कहा गया है कि इसे जनहित में दायर किया गया है ताकि भारत में रह रहे शरणार्थियों को प्रत्यर्पित किए जाने से बचाया जा सके.ये समानता और जीने के अधिकार का उल्लंघन है. 

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