फाइल फोटो
चार साल पहले 16 दिसंबर, 2012 को दक्षिण दिल्ली के मुनीरका इलाके में एक लड़की अपने दोस्त के साथ बस स्टैंड पर सवारी का इंतजार कर रही थी. एक बस आकर रुकी. वे सवारी बस समझकर उस पर चढ़ गए. उसके बाद अगले कुछ घंटों में जो कुछ हुआ उससे दुनिया भर में हमारी छवि केवल दागदार ही नहीं हुई बल्कि इसे महिलाओं के खिलाफ हिंसा के लिहाज से असुरक्षित मुल्कों की श्रेणी में प्रमुखता से शुमार किया गया.
(पढ़ें - निर्भया फंड : योजनाओं के धीमे क्रियान्वयन पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को फटकार)
देश की राजधानी में घटे इस निर्भया कांड के बाद दिल्ली की सियासत में भूचाल आ गया. लड़कियों के लिहाज से हादसे दर हादसे झेल रही दिल्ली के लोगों का धैर्य जवाब दे गया. लड़कियों की हिफाजत के लिहाज से असुरक्षित होती जा रही दिल्ली के आक्रोशित लोग इंडिया गेट पर उतर आए. न्याय की गुहार और सख्त कानूनों की मांग के साथ धरना-प्रदर्शन करने लगे.
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निर्भया कांड - तीन माह में कानून में बदलाव पर अदालत चार साल में नहीं बदली
निर्भया कांड की बरसी पर याद आते सवाल...
निर्भया के बाद कानून में बहुत कुछ बदला होगा, लेकिन समाज कतई नहीं बदला...
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राज्य की सियासत में भूचाल आ गया. प्रदर्शनकारियों से मिलने जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पहुंची तो लोगों के आक्रोश के आगे उनको अपनी कार में बैरंग लौटना पड़ा. राज्य से लेकर केंद्र की सत्ता तक उस आक्रोश के आगे दहल गए. उसके अगले साल चुनावों में शीला दीक्षित को इसकी कीमत चुकानी पड़ी और उसके अगले राज्य में कांग्रेस की पराजय के प्रमुख कारणों में से इसे भी गिना जाता है. दिल्ली के साथ-साथ देश के कई शहरों में भी विरोध-प्रदर्शन हुए.
दर्दनाक
16 दिसंबर की उस सर्द रात 23 साल की फिजियोथेरेपी की छात्रा निर्भया (मीडिया का दिया हुआ नाम) और उसके मित्र अवींद्र प्रताप पांडे मुनीरका में जब एक प्राइवेट बस में घर जाने के लिए चढ़े तो कुछ दूर जाने के बाद ही ड्राइवर राम सिंह और उसके पांच साथियों ने उसके साथ गैंगरेप करने के साथ ही दोनों को बुरी तरह पीटा और घायलावस्था में मरा हुआ समझकर निर्जन स्थान पर छोड़कर भाग गए. होश में आने के बाद अवींद्र ने किसी तरह मदद ली और गंभीर अवस्था में दोनों को अस्पताल पहुंचाया गया.
उसके बाद 11 दिनों तक निर्भया जिंदगी और मौत के बीच झूलती रही. हालत बिगड़ने पर इमरजेंसी ट्रीटमेंट के लिए उसे सिंगापुर ले जाया गया लेकिन वहां पहुंचने के दो दिन उसकी मौत हो गई.
दोषी
घटना के बाद सभी छह आरोपियों को पुलिस ने पकड़ लिया. जांच में पता चला कि उनमें से एक नाबालिग था. उनके खिलाफ बलात्कार, अपहरण और हत्या का मामला दर्ज हुआ. 2013 में बस के ड्राइवर राम सिंह ने तिहाड़ में खुदकुशी कर ली. बाकियों के खिलाफ फास्ट ट्रैक में मामला चला. 13 सितंबर, 2013 को चार को फांसी की सजा सुनाई गई और नाबालिग को तीन साल की अधिकतम सजा के साथ सुधार केंद्र में भेज दिया गया. 13 मार्च, 2014 को दिल्ली हाई कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा. फिलहाल मामला सुप्रीम कोर्ट में है.
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