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This Article is From Aug 05, 2013

हरित मंजूरी के बगैर नदीतल से बालू उत्खनन नहीं

केंद्र सरकार की संस्था राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने देशभर में पर्यावरणीय मंजूरी के बिना रेत खनन पर रोक लगा दी है।
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नई दिल्ली: राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने सोमवार को देशभर में पर्यावरणीय मंजूरी के बगैर नदियों की पेटी से बालू खनन पर हस्तक्षेप करते हुए कहा कि बालू के गैर कानूनी उत्खनन से भारी राजस्व और पर्यावरणीय क्षति हो रही है।

उत्तर प्रदेश की भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की अधिकारी दुर्गा शक्ति नागपाल को निलंबित किए जाने की प्रतिक्रिया में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिवक्ता संघ की ओर से दायर अर्जी पर न्यायाधिकरण ने आदेश पारित किया।

न्यायाधिकरण ने कहा, "कानून का उल्लंघन कर बड़े पैमाने पर खनन गतिविधि हो रही है जिससे राज्य को लाखों-करोड़ों रुपये के राजस्व की क्षति हो रही है।"

न्यायाधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने राज्यों से 14 अगस्त तक जवाब मांगा है।

पीठ ने कहा कि मुद्दा यह है कि नदी की पेटी से जो खनिज निकाल रहे हैं उनमें से अधिकांश के पास बालू उत्खनन का लाइसेंस नहीं है।

आदेश में कहा गया है, "पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी और सक्षम प्राधिकृत से लाइसेंस हासिल किए बगैर देश भर की नदियों की पेटी से हम किसी भी व्यक्ति, कंपनी या प्राधिकार को किसी भी प्रकार की खनन गतिविधि या बालू निकालने पर प्रतिबंध लगा रहे हैं।"

2009 बैच की आईएएस अधिकारी नागपाल (28) को उत्तर प्रदेश सरकार ने 29 जुलाई को निलंबित कर दिया।

राज्य सरकार ने कहा है कि उन्हें एक मस्जिद की दीवार ढहाने का विवादित आदेश देने के कारण निलंबित किया गया है। राज्य सरकार का दावा है कि अधिकारी के इस कदम से सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकता था। नागपाल ने आरोपों से इंकार किया है।

निलंबन पर आलोचना बढ़ने को देखते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद परिसर में कहा कि तय नियमों का पालन किया जाएगा।

हरित न्यायाधिकरण ने कहा है कि यह आरोप लगाया गया है कि यमुना, गंगा, चंबल, गोमती और रावी सहित देश की कई नदियों के किनारे से बड़े पैमाने पर प्रभावी खनन किया जा रहा है।

न्यायाधिकरण ने कहा है, "नदियों की पेटी से खनिज निकालने से उनके प्रवाह, नदियों के किनारे वनों और उन इलाकों के पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ रहा है।"

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का जिक्र करते हुए न्यायाधिकरण ने कहा, "पांच हेक्टेयर से कम क्षेत्र में उत्खनन करने वालों से पर्यावरणीय मंजूरी लेने की उम्मीद की जाती है।"

न्यायाधिकरण ने सभी राज्यों के उपायुक्तों, पुलिस अधीक्षकों तथा खनन अधिकारियों को आदेश का अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए कहा है।

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