New Farm Bill: सड़क से लेकर संसद तक इसका विरोध जारी है
नई दिल्ली:
New Farm Bill: रविवार को राज्यसभा में जोरदार हंगामे के बीच कृषि से संबंधित दो विवादित बिलों को मंजूरी दे दी गई. जिसके बाद देश के कई किसान संगठन और राजनीतिक दल विरोध में सड़कों पर उतर आए. मोदी सरकार जहां इन विधेयकों (New Farm Bill) को किसानों को सशक्त बनाने का माध्यम बता रही है तो वहीं विपक्ष और लाखों की संख्या में किसान यह मानकर विरोध कर रहे हैं कि इस विधेयक के बाद किसान कॉरपोरेट घरानों के आगे मजबूर हो जाएंगे. वहीं कुछ किसान ऐसे भी जो इस पूरे मामले के राजनीतिकरण से कंफ्यूज हैं, उनकी मांग है कि सरकार आगे आए और किसानों की आशंकाओं को दूर करे और बताए कि किसानों को इस बिल से क्या फायदा.
क्या है बिल और क्यों हो रहा है विरोध:
- कृषि संबंधी दो विधेयको को रविवार को राज्यसभा में मंजूरी दे दी गई है, इस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर होने के साथ ही यह कानून का रूप ले लेगा. जिन विधेयरों को मंजूरी मिली है उसमें कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 शामिल है.
- कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 के तहत किसान या फिर व्यापारी अपनी उपज को मंडी के बाहर भी अन्य माध्यम से आसानी से व्यापार कर सकेंगे.
- इस बिल के अनुसार राज्य की सीमा के अंदर या फिर राज्य से बाहर, देश के किसी भी हिस्से पर किसान अपनी उपज का व्यापार कर सकेंगे. इसके लिए व्यवस्थाएं की जाएंगी. मंडियों के अलावा व्यापार क्षेत्र में फार्मगेट, वेयर हाउस, कोल्डस्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिटों पर भी बिजनेस करने की आजादी होगी. बिचौलिये दूर हों इसके लिए किसानों से प्रोसेसर्स, निर्यातकों, संगठित रिटेलरों का सीधा संबंध स्थापित किया जाएगा.
- भारत में छोटे किसानों की संख्या ज्यादा है, करीब 85 फीसदी किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है, ऐसे में उन्हें बड़े खरीददारों से बात करने में परेशानी आती थी. इसके लिए वह या तो बड़े किसान या फिर बिचौलियों पर निर्भर होते थे. फसल के सही दाम, सही वक्त पर मिलना संभव नहीं होता था. इन विधेयकों के बाद वह आसानी से अपना व्यापार कर सकेंगे.
- कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक किसानों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ता है. यह कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उपज के दाम निर्धारित करने और बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन देता है. किसान को अनुबंध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी, वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेचेगा. देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह निर्मित किए जा रहे हैं. ये एफपीओ छोटे किसानों को जोड़कर उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे.
- नए बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP को नहीं हटाया गया है (पीएम नरेंद्र मोदी देकर यह बात कह चुके हैं कि एमएसपी को खत्म नहीं किया जा रहा है) लेकिन 'बाहर की मंडियों'को फसल की कीमत तय करने की इजाजत देने को लेकर किसान आशंकित हैं.
- किसानों की इन चिंताओं के बीच राज्य सरकारों-खासकर पंजाब और हरियाणा- को इस बात का डर सता रहा है कि अगर निजी खरीदार सीधे किसानों से अनाज खरीदेंगे तो उन्हें मंडियों में मिलने वाले टेक्स का नुकसान होगा.
- कृषि सुधार के विधेयकों को लेकर मचे घमासान के बीच सरकार ने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान कर दिया है. बिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने यह मंजूरी दी है. किसानों की चिंता को देखते हुए एक महीने पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य मंजूरी दे दी गई है. सरकार ने एमएसपी में 50 रुपये से 300 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की है.किसानों से उनके अनाज की खरीदी FCI व अन्य सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर करेंगी.
- कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार, रबी मौसम के लिए चने की एमएसपी में 225 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है और यह बढ़कर 5100 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है. मसूर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 300 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया गया है और यह 5100 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. उन्होंने बताया कि सरसों के एमएसपी में 225 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है और यह बढ़कर 4650 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है. जौ के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 75 रुपये की वृद्धि के बाद यह 1600 रुपये प्रति क्विंटल और कुसुम के एमएसपी में 112 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि के साथ यह 5327 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है.
- कृषि बिलों की तारीफ करते हुए 'पीएम ने कहा कि 'हमारे देश में अब तक उपज बिक्री की जो व्यवस्था चली आ रही थी, जो कानून थे, उसने किसानों के हाथ-पांव बांधे हुए थे. इन कानूनों की आड़ में देश में ऐसे ताकतवर गिरोह पैदा हो गए थे, जो किसानों की मजबूरी का फायदा उठा रहे थे.