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दिल्ली आईआईटी इस दवा पर शोध कर रहा है
शोध के बाद यह दवा मात्र 50 से 60 रुपये में बाजारों में मिलेगी
इस दवाई को कुछ और क्लीनिकल ट्रायल से गुजरना है
पाउडर के तौर ये दवा जल्द ही बाज़ार में मिलने लगेगी. इस peptite का नाम है lithal toxin nutralising factor फिलहाल ऐसी दवाओं की कीमत 500 रु है. जो इस कामयाबी के बाद बमुश्किल 50-60 रु की होगी.
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इस संबंध में IIT दिल्ली केमिकल इंजीनियरिंग के प्रो. अनुराग सिंह राठौर ने कहा, “जो हमलोग प्रोपोज कर रहे हैं उसको सालों तक कोई भी अपने घर में रूम टेम्परेचर पर रख सकता है. दूसरा ये है कि जो एग्जिस्टिंग ट्रीटमेंट है उसका कॉस्ट हज़ारों रुपये में जाता है, जबकि जो हमलोग प्रोपोज़ कर रहे हैं उसका कॉस्ट तक़रीबन 50-100 रु के बीच होगा. हमलोगों ने ई कोलैई करके एक छोटा ऑर्गनिस्म होता है, उसमें जेनेटिक मैनीपुलेशन करके हमने ये पेप्टाइड बनाया है. बसिकॉली जब ecolie ग्रो करता है तो खुद से ही इस पेप्टाइड को बनाकर release करता है.”

बैक्टीरिया से तैयार किये जा रहे इस पाउडर को बायो सेपेरेशन एन्ड बायो प्रोसेसिंग लैब में करीब 20 घंटे का वक़्त लगता है, जिसमें 10-12 घण्टे सिर्फ बैक्टीरिया को ग्रो करने बीतता है. करीब तीन साल की मेहनत के बाद ये सफलता मिली है. इस दवाई के बारे में लैब में उपस्थित phed स्टूडेंट प्रियंका दलाल का कहना है, “हमारी पांच लोगों की टीम है. 20 घंटे में हम अराउंड हम 50 वायल बना सकते हैं. तो एक मरीज को ट्रीट करने के लिए 5 से 35 वायल लगता है. बहुत purified प्रोटीन है हमारा प्रोडक्ट. 10 गुना सस्ता है जो मार्किट में अवेलेबल है उससे.”
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सांप को लेकर काम करने वाला इंडियन स्नेक आर्गेनाईजेशन का मानना है कि भारत में हर साल 45-50 हज़ार लोगों की मौत सांप के काटने से होती है. बाज़ार में जो दवाई है, वो पूरे देश में सर्प दंश को लेकर एक साथ एक जैसी कारगर नहीं. इस संबंध में शालीन आत्रेय, कोफाउंडर, इंडियन स्नेक आर्गेनाईजेशन ने कहा, “भारत में कम से कम 300 प्रजातियों के सांप पाये जाते हैं, जिसमे 10% में ही ज़हर होता है. उसमें से भी 4 ऐसी प्रजातियां हैं जिनको हम बिग फोर बोलते हैं. जिनके वजह से सबसे ज़्यादा डेथ होती है. अगर हम एन्टी विनोम सिर्फ चेन्नई के कोबरा से बना रहे हैं तो वो किसी नॉर्थ इंडिया के स्टेट्स में कई बार एफिशिएंसी हाई नहीं हो पाती.”
VIDEO: सांप काटे के इलाज के लिए नई दवा का ईजाद
अब ऐसी सूरत में इस दवाई को कुछ और क्लीनिकल ट्रायल से गुजरना है. सब ठीक रहा तो मेडिकल साइंस की ये एक बड़ी उपलब्धि होगी.
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