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This Article is From Sep 30, 2019

सुस्त अर्थव्यवस्था से लड़ रही सरकार के सामने नई चुनौती, आर्थिक सुधार का कामगार कर रहे विरोध

बीस करोड़ से ज्यादा कामगारों के 10 बड़े मजदूर संगठनों ने सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ आठ जनवरी को देश व्यापी हड़ताल करने का ऐलान किया

सुस्त अर्थव्यवस्था से लड़ रही सरकार के सामने नई चुनौती, आर्थिक सुधार का कामगार कर रहे विरोध
प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:

अर्थव्यवस्था में सुस्ती से जूझ रही मोदी सरकार के सामने चुनौतियां कई मोर्चों पर हैं. सरकार का राजस्व घट रहा है. जीएसटी से उम्मीद के मुताबिक पैसा नहीं जुट रहा है. ऊपर से तमाम योजनाओं को अमली जामा पहनाना है और साथ में वित्तीय घाटे को भी सीमा के अंदर रखना है. ऐसे में अब कई बड़ी कंपनियों में विनिवेश की तैयारी हैं. सरकार पब्लिक सेक्टर कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर एक लाख पांच हजार करोड़ रुपये उगाहने की कोशिश में है. अब तक साढ़े बारह हजार करोड़ ही वो विनिवेश से जमा कर पाई है. लेकिन सरकार की इन आर्थिक नीतियों का विरोध तेज होने लगा है. बीस करोड़ से ज़्यादा कामगारों की नुमाइंदगी करने वाले 10 बड़े मजदूर संगठनों ने ऐलान किया है कि वे सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ आठ जनवरी को देश व्यापी हड़ताल करेंगे. इस सबके बीच यह खबर आई है कि अर्थव्यवस्था में आठ कोर सेक्टरों का उत्पादन पिछले साल अगस्त के मुकाबले इस साल अगस्त में गिर गया है.

आर्थिक मंदी की आशंका से जूझ रही सरकार के लिए सोमवार को एक बुरी खबर और आई. अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले आठ उद्योगों में बीते साल के मुकाबले गिरावट दर्ज की गई. वाणिज्य मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा कि इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन गिर गया है. आठ मुख्य उद्योगों का उत्पादन पिछले साल अगस्त के मुकाबले इस साल अगस्त में 0.5 फीसदी गिर गया है. अगस्त 2018 के मुकाबले इस साल अगस्त में कोयला उत्पादन 8.6 प्रतिशत गिरा है. इस दौरान सीमेंट 4.9 फीसदी गिरा, बिजली का उत्पादन 2.9 प्रतिशत और प्राकृतिक गैस का उत्पादन 3.9 प्रतिशत घट गया. हालांकि खाद और स्टील के बेहतर उत्पादन ने आंकड़ा कुछ सुधारा.

अर्थव्यवस्था में सुस्ती का सामना कर रही सरकार को उधर उद्योगों में काम कर रहे कर्मचारियों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ रहा है. सरकार की आर्थिक नीतियों के खिलाफ सोमवार को देश के 10 बड़े ट्रेड यूनियनों के हजारों कामगार दिल्ली में संसद मार्ग पर जमा हुए और विरोध प्रदर्शन किया. देश के अलग-अलग राज्यों से दिल्ली पहुंचे हजारों कामगारों की नाराजगी मोदी सरकार की आर्थिक सुधार की नीतियों से है. उनका दावा है कि निजीकरण, विनिवेश और एफडीआई की नीतियों को बढ़ावा देने से उनका भविष्य असुरक्षित होता जा रहा है. आर्थिक मंदी ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं. सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए बीएसएनएल के कई कर्मचारी भी पहुंचे, जिनके भविष्य को लेकर पिछले कई महीनों से सवाल उठ रहे हैं.

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सवाल पेंशन फंड के इस्तेमाल की नीति में बदलाव और श्रम सुधार के कानूनों में बदलाव को लेकर भी उठाए गए. कन्वेंशन में तय किया गया कि सरकार को आर्थिक सुधार की मौजूदा नीतियों पर आगे बढ़ने से रोकने के लिए अब आठ जनवरी को सरकार के खिलाफ देश व्यापी हड़ताल की जाएगी. सीटू महासचिव तपन सेन ने दावा किया कि इस हड़ताल में 20 करोड़ से ज्यादा मजदूर भाग लेंगे.  तपन सेन ने कहा कि 'हम सरकार को एंटी-वर्कर आर्थिक सुधार की नीति वापस लेने के लिए मजबूर करेंगे.'

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ट्रेड यूनियन के नेताओं का दावा है कि आर्थिक मंदी के इस दौर में सरकार की आर्थिक सुधार की नीतियों से वर्करों की असुरक्षा बढ़ी है. मज़दूरों और कामगारों से जुड़ी नीतियों के मुद्दे पर संघ परिवार में मतभेद भी खुलकर सामने आ गए हैं.आरएसएस से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ भले ही आठ जनवरी की राष्ट्र व्यापी हड़ताल का हिस्सा नहीं होगा लेकिन वह मोदी सरकार की विनिवेश और निजीकरण की नीतियों के खिलाफ 15 नवंबर को दिल्ली में अलग से एक आयोजन कर रहा है.

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भारतीय मज़दूर संघ (BMS) के वरिष्ठ नेता गिरीश आर्य ने एनडीटीवी से कहा कि हम इस मसले के राजनीतिकरण के खिलाफ हैं. बीएमएस आठ जनवरी को 10 केद्रीय  ट्रेड यूनियनों के ऑल इंडिया वर्कर्स स्ट्राइक में भाग नहीं लेगी, लेकिन हम प्राफिट मेकिंग पीएसयू के विनिवेश के खिलाफ हैं और इस बारे में हम अपनी रणनीति तय करेंगे.

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निजीकरण और विनिवेश को लेकर कामगारों में सख्त नाराजगी है और इस वजह से अपनी नौकरियों को लेकर उनके मन में असुरक्षा घर कर गई है. इस सबके बीच घटते उत्पादन की खबर बता रही है कि सरकार को आर्थिक मंदी के इस दौर में एक साथ कई मोर्चों पर निपटना होगा.

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