नई दिल्ली:
नेट न्यूट्रलिटी के पक्ष में हो-हल्ला जारी रहने के बीच ट्राई चेयरमैन राहुल खुल्लर ने रविवार को कहा, ‘‘चिल्लाने वाले लोग’’ बहस में नहीं जीतेंगे और यह अवधारणा अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में भी ‘सख्ती से लागू’ है।
इंटरनेट सापेक्षता का सिद्धांत सभी इंटरनेट यातायात के लिए समान व्यवहार की वकालत करता है जिसमें किसी भी व्यक्ति, इकाई या कंपनी के साथ भेदभाव नहीं है।
यद्यपि दूरसंचार नियामक ट्राई ने इस विषय पर एक परिचर्चा परिपत्र जारी किया है, 'एयरटेल जीरो' और 'इंटरनेट डॉट ओआरजी' जैसे प्लेटफार्म शुरू किए जाने के बाद से देश में नेट न्यूट्रलिटी को लेकर बहस छिड़ गई है।
खुल्लर ने कहा, ‘‘बहस लोकतांत्रित तरीके से होनी चाहिए। तेज आवाज से बहस नहीं जीती जाती। दोनों पक्षों की ओर से तर्कपूर्ण जवाब समय की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न देशों में अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। ब्रिटेन और यूरोप के कुछ देशों में सख्त नेट न्यूट्रलिटी की व्यवस्था नहीं है। यहां तक कि अमेरिका में जीरो रेटिंग प्लान की अनुमति है।’’
ट्राई के परिचर्चा परिपत्र के जवाब में ‘नेट न्यूट्रलिटी’ अवधारणा का गला घोटने के किसी भी प्रयास के खिलाफ ट्राई के पास पहले से ही 8 लाख से अधिक याचिकाएं आ चुकी हैं। दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज एयरटेल द्वारा दिसंबर में इंटरनेट आधारित फोन कॉल्स के लिए अलग से शुल्क लेने का निर्णय करने के बाद यह बहस शुरू हुई। हालांकि, बाद में एयरटेल ने इसे वापस ले लिया।
इंटरनेट सापेक्षता का सिद्धांत सभी इंटरनेट यातायात के लिए समान व्यवहार की वकालत करता है जिसमें किसी भी व्यक्ति, इकाई या कंपनी के साथ भेदभाव नहीं है।
यद्यपि दूरसंचार नियामक ट्राई ने इस विषय पर एक परिचर्चा परिपत्र जारी किया है, 'एयरटेल जीरो' और 'इंटरनेट डॉट ओआरजी' जैसे प्लेटफार्म शुरू किए जाने के बाद से देश में नेट न्यूट्रलिटी को लेकर बहस छिड़ गई है।
खुल्लर ने कहा, ‘‘बहस लोकतांत्रित तरीके से होनी चाहिए। तेज आवाज से बहस नहीं जीती जाती। दोनों पक्षों की ओर से तर्कपूर्ण जवाब समय की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न देशों में अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। ब्रिटेन और यूरोप के कुछ देशों में सख्त नेट न्यूट्रलिटी की व्यवस्था नहीं है। यहां तक कि अमेरिका में जीरो रेटिंग प्लान की अनुमति है।’’
ट्राई के परिचर्चा परिपत्र के जवाब में ‘नेट न्यूट्रलिटी’ अवधारणा का गला घोटने के किसी भी प्रयास के खिलाफ ट्राई के पास पहले से ही 8 लाख से अधिक याचिकाएं आ चुकी हैं। दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज एयरटेल द्वारा दिसंबर में इंटरनेट आधारित फोन कॉल्स के लिए अलग से शुल्क लेने का निर्णय करने के बाद यह बहस शुरू हुई। हालांकि, बाद में एयरटेल ने इसे वापस ले लिया।
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