प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर सरकारी और प्राइवेट कालेजों में एमबीबीएस, बीडीएस और मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए कॉमन टेस्ट यानी एनईईटी को हरी झंडी दिखा दी है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों के 2013 के फैसले को वापस ले लिया गया है। अब गेंद केंद्र सरकार के पाले में है कि वह यह टेस्ट कब कराए। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ के इस फैसले से देश भर के करीब 600 कालेज प्रभावित होंगे।
सन 2013 का फैसला वापस लिया
सोमवार को सुनाए गए अपने फैसले में पीठ ने कहा कि जुलाई 2013 में तीन जजों की बेंच का एनईईटी को रद्द करने का फैसला वापस लिया जाता है, क्योंकि बेंच ने यह फैसला बिना विचार विमर्श के किया था। इसके साथ ही संविधान पीठ इस टेस्ट को लेकर फिर से इस मामले पर सुनवाई करेगा। लेकिन कोर्ट ने प्राइवेट कालेजों को फिलहाल किसी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया।
मेडिकल काउंसिल के नोटिफिकेशन को दी थी चुनौती
दरअसल 2011 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने एनईईटी के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था। इसमें सभी सरकारी और प्राइवेट कालेजों में एमबीबीएस, बीडीएस और मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएशन पाठ्यक्रमों के लिए कॉमन टेस्ट का प्रावधान किया गया। प्राइवेट कालेजों और अल्पसंख्यक कालेजों ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी और इसे अपने अधिकारों का हनन बताया। सन 2013 में तत्कालीन चीफ जस्टिस अल्तमश कबीर की बेंच ने एनईईटी को रद्द कर दिया और कहा कि प्राइवेट कालेज अपना टेस्ट ले सकते हैं।
एमसीआई के रिव्यू पर सुनवाई में आदेश वापस
एमसीआई और केंद्र ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू दाखिल किया और कहा कि देश के नागरिकों को यह अधिकार है कि उन्हें सही इलाज मिले, इसलिए यह कदम उठाया गया है। अगर मेरिट से डाक्टरी के लिए छात्र चुने जाएंगे तो बेहतर लोग इस क्षेत्र में आएंगे। इसी मामले में पांच जजों के संविधान पीठ ने 2013 के उस आदेश को वापस ले लिया। पीठ ने कहा कि वह इस मामले की फिर से सुनवाई करेगी और यह तय करेगी कि एनईईटी का नोटिफिकेशन कानूनी रूप से वैध है या नहीं। हालांकि प्राइवेट कालेजों की मांग थी कि फिलहाल एनईईटी पर स्टे लगाया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्टे देने से इनकार कर दिया।
अंतरिम राहत मांग सकते हैं कालेज
इस आदेश के बाद एनईईटी दोबारा प्रभावी हो गया है और यह एमसीआई पर निर्भर है कि वह इसे कब से लागू करे। अगर इस बार से लागू होता है तो प्राइवेट कालेज खुद टेस्ट नहीं ले पाएंगे। माना जा रहा है कि एनईईटी की वैधता को लेकर जब संविधान पीठ में सुनवाई होगी तब कालेज अंतरिम राहत मांग सकते हैं। खास बात यह है कि 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द किया था तब जस्टिस एआर दवे शामिल थे और इस बार वे संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे हैं। उस समय भी उन्होंने अपने आदेश में एनईईटी को सही ठहराया था। उधर एमसीआई के अफसरों का कहना है कि कोर्ट का आदेश मिलने के बाद ही वे फैसला करेंगे कि आगे क्या करना है।
सन 2013 का फैसला वापस लिया
सोमवार को सुनाए गए अपने फैसले में पीठ ने कहा कि जुलाई 2013 में तीन जजों की बेंच का एनईईटी को रद्द करने का फैसला वापस लिया जाता है, क्योंकि बेंच ने यह फैसला बिना विचार विमर्श के किया था। इसके साथ ही संविधान पीठ इस टेस्ट को लेकर फिर से इस मामले पर सुनवाई करेगा। लेकिन कोर्ट ने प्राइवेट कालेजों को फिलहाल किसी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया।
मेडिकल काउंसिल के नोटिफिकेशन को दी थी चुनौती
दरअसल 2011 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने एनईईटी के लिए नोटिफिकेशन जारी किया था। इसमें सभी सरकारी और प्राइवेट कालेजों में एमबीबीएस, बीडीएस और मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएशन पाठ्यक्रमों के लिए कॉमन टेस्ट का प्रावधान किया गया। प्राइवेट कालेजों और अल्पसंख्यक कालेजों ने सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी और इसे अपने अधिकारों का हनन बताया। सन 2013 में तत्कालीन चीफ जस्टिस अल्तमश कबीर की बेंच ने एनईईटी को रद्द कर दिया और कहा कि प्राइवेट कालेज अपना टेस्ट ले सकते हैं।
एमसीआई के रिव्यू पर सुनवाई में आदेश वापस
एमसीआई और केंद्र ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू दाखिल किया और कहा कि देश के नागरिकों को यह अधिकार है कि उन्हें सही इलाज मिले, इसलिए यह कदम उठाया गया है। अगर मेरिट से डाक्टरी के लिए छात्र चुने जाएंगे तो बेहतर लोग इस क्षेत्र में आएंगे। इसी मामले में पांच जजों के संविधान पीठ ने 2013 के उस आदेश को वापस ले लिया। पीठ ने कहा कि वह इस मामले की फिर से सुनवाई करेगी और यह तय करेगी कि एनईईटी का नोटिफिकेशन कानूनी रूप से वैध है या नहीं। हालांकि प्राइवेट कालेजों की मांग थी कि फिलहाल एनईईटी पर स्टे लगाया जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्टे देने से इनकार कर दिया।
अंतरिम राहत मांग सकते हैं कालेज
इस आदेश के बाद एनईईटी दोबारा प्रभावी हो गया है और यह एमसीआई पर निर्भर है कि वह इसे कब से लागू करे। अगर इस बार से लागू होता है तो प्राइवेट कालेज खुद टेस्ट नहीं ले पाएंगे। माना जा रहा है कि एनईईटी की वैधता को लेकर जब संविधान पीठ में सुनवाई होगी तब कालेज अंतरिम राहत मांग सकते हैं। खास बात यह है कि 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द किया था तब जस्टिस एआर दवे शामिल थे और इस बार वे संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे हैं। उस समय भी उन्होंने अपने आदेश में एनईईटी को सही ठहराया था। उधर एमसीआई के अफसरों का कहना है कि कोर्ट का आदेश मिलने के बाद ही वे फैसला करेंगे कि आगे क्या करना है।
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