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This Article is From Jan 26, 2022

Ground Report: मुजफ्फरनगर में सपा-आरएलडी गठबंधन के एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट न देने से मुस्लिम नेता नाराज

गठबंधन की रणनीति मुस्लिम वोटों को बांटने से रोकने की है, लेकिन इस फैसले ने यहां के सपा और आरएलडी के कई स्थानीय मुस्लिम नेताओं और समर्थकों को नाराज कर दिया है.

Ground Report: मुजफ्फरनगर में सपा-आरएलडी गठबंधन के एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट न देने से मुस्लिम नेता नाराज
आरएलडी के मुस्लिम नेता नूर सलीम ने खुल कर अपनी नाराजगी जताई. (प्र​तीकात्मक फोटो)
लखनऊ:

मुजफ्फरनगर की सभी छह विधानसभा सीटों पर चुनावी सरगर्मी तेज हो रही है. पहली बार सपा-आरएलडी गठबंधन ने बीजेपी को चुनौती देने के लिए इस मुस्लिम-बाहुल्य इलाके में एक भी मुस्लिम उमीदवार को टिकट नहीं दिया है. गठबंधन की रणनीति मुस्लिम वोटों को बांटने से रोकने की है, लेकिन इस फैसले ने यहां के सपा और आरएलडी के कई स्थानीय मुस्लिम नेताओं और समर्थकों को नाराज कर दिया है. मेरठ इलाके में जाट नेताओं को टिकट बंटवारे में ज्यादा तवज्जो नहीं मिलने से जहां सपा-आरएलडी गठबंधन को जाट नेताओं और समुदाय की नाराजगी झेलनी पड़ रही है, वहीं मुस्लिम-बाहुल्य मुजफ्फरनगर जिले में गठबंधन के मुस्लिम समुदाय के नेता और कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं.

यहां की 6 असेंबली सीट पर 2022 के चुनावों में इस बार सपा-आरएलडी गठबंधन ने एक भी मुस्लिम उमीदवार नहीं उतारा है. आरएलडी के मुस्लिम नेता नूर सलीम ने एनडीटीवी से बातचीत में कैमरा पर खुल कर अपनी नाराजगी जताई. एनडीटीवी से बातचीत में नूर सलीम ने कहा, "हां, मैं भी टिकट का दावेदार था. मुझे टिकट नहीं दिया गया. पहली बार सपा और आरएलडी ने इस मुस्लिम बाहुल्य सीट पर एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. मैं बहुत मायूस हूं. हमारे पार्टी के समर्थक भी बहुत दुखी हैं".  

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खबरों के मुताबिक मुजफ्फरनगर में समाजवादी पार्टी के कई बड़े मुस्लिम नेता जैसे लिआकत अली और कादिर राणा टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं. एक अनुमान के मुताबिक मुजफ्फरनगर में करीब 40% मतदाता मुस्लिम हैं, यहां बीजेपी और सपा-आरएलडी गठबंधन में सीधी टक्कर है. मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारने के पीछे गठबंधन की रणनीति मुस्लिम वोट बैंक को बंटने से रोकने की है, लेकिन इस फैसले के खिलाफ नाराजगी मुजफ्फरनगर के मुस्लिम लोकैलिटी में कई जगह दिखती है. मुस्लिम वोटरों का एक तबका नाराज है कि सपा-आरएलडी गठबंधन उनका वोट मांग रहा है, लेकिन उनके एक भी नेता को विधानसभा नहीं भेजना चाहता जहां वो उनके मुद्दों को उठा सकें.

मुजफ्फरनगर में सभासद रह चुके शमीम कहते हैं, "सपा-आरएलडी गठबंधन ने मुस्लिम समुदाय की मांग को दरकिनार कर दिया है. कम से कम एक मुस्लिम नेता को यहां से टिकट दिया जाना चाहिए था". डॉ. मुहम्मद कुर्रम ने एनडीटीवी से कहा, "सपा-आरएलडी गठबंधन मुस्लिम वोटरों का समर्थन चाहता है, लेकिन हमारे नेता को यहां से नहीं चुनना चाहता जो विधानसभा में हमारी मांगों और समस्याओं को सीधे उठा सकें". यहां के आम मुस्लिम वोटरों का एक तबका भी नाराज है.  

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उधर मुजफ्फरनगर इलाके में 2017 के विधानसभा चुनावों में सभी 6 सीट जीतने वाली बीजेपी इस बार भी सपा-आरएलडी गठबंधन की चुनौती को खारिज कर रही है.

मुजफ्फरनगर सदर सीट से बीजेपी के उमीदवार और मौजूदा योगी सरकार में राज्य मंत्री कपिल देव अग्रवाल ने एनडीटीवी से कहा, "लोग सपा के कार्यकाल को नहीं भूले हैं जब लोग अपने घर की लड़कियों को कॉलेज भेजने से डरते थे. पिछले 5 साल में योगी सरकार ने इलाके को बेहतर विकास और सुशासन दिया है".

मुजफ्फरनगर इलाके में इस बार चुनाव पहले ही चरण में 10 फरवरी को होंगे. यहां बीजेपी और सपा-आरएलडी गठबंधन दोनों के लिए इस बार काफी कुछ दांव पर है.

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