कोरोना की तीसरी लहर का प्रकोप जैसे जैसे बढ़ रहा है, एक बार फिर से लॉकडाउन लगने की आशंका बढ़ गई है. मुम्बई में हालांकि अभी लॉकडाउन लगा नहीं है, लेकिन उसके खौफ का असर लघु उद्योगों पर दिखने लगा है. मुंबई का धारावी इलाका जहां लगभग हर घर में एक लघु उद्योग चलता है, वहां के मजदूरों में एक बार फिर से बेरोजगार होने का डर सताने लगा है. कारखाना मालिक भी डरे हुए हैं, क्योंकि अभी लॉकडाउन लगा नहीं है, लेकिन मजदूर और काम दोनों कम होने लगे हैं. मुम्बई में प्रवासी मजदूरों का पलायन अभी शुरू नहीं हुआ है, लेकिन अनिश्चितता बनी हुई है.
धारावी में एक छोटे से कारखाने में ऑप्टिकल ट्रे बनाने का काम करने वाली संगीता कोरी कभी घर में ही सिलाई कर अपना घर चलाती थीं, लेकिन साल 2020 में लगे लॉकडाउन में सब छोड़ कर उत्तर प्रदेश में अपने गांव जाना पड़ा था. अब एक बार फिर से बेरोजगार होने के डर से परेशान है. संगीता की तरह ही शीला देवी बिहार से हैं, ड्राइवर पति के पास भी काम नहीं है उपर से लॉकडाउन का डर.
धारावी में 20 हजार से ज्यादा छोटे बड़े कारखाने हैं, जिनमें रेडीमेड गारमेंट और चमड़ा उद्योग प्रमुख है. दो लहर के झटके के बाद उबर रहे यहां के रोजगार पर अब तीसरी लहर का असर दिखने लगा है. लॉकडाउन की आशंका भर से ही काम और मजदूर दोनों की कमी होनी शुरू हो गई है.
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प्रवासी मजदूरों की समस्या है कि मुम्बई में काम बंद होने पर वो अपने गांव में चले तो जाते हैं लेकिन वहां कोई काम नहीं मिलने से फिर भाग कर मुम्बई आना होता है. इसलिए सब की यही इच्छा है कि लॉकडाउन ना लगे.
प्रवासी मजदूरों में एक तरफ कोरोना से बीमारी का डर है तो दूसरी तरफ बेरोजगार होने का भय. कहते हैं जान है तो जहान है लेकिन मजदूरों का कहना है काम भी जरूरी है.
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