मुंबई : लॉकडाउन में कैंसर इलाज पर ब्रेक लगा, अब बड़ी संख्या में अस्पताल पहुंच रहे हैं कैंसर मरीज़

मुंबई के बड़े कैंसर अस्पतालों में करीब 50-60% मरीज़ दूसरे शहरों राज्यों  के होते हैं, लॉकडाउन के दौरान कैंसर के इलाज पर पूरी तरह से ब्रेक लगा.

मुंबई : लॉकडाउन में कैंसर इलाज पर ब्रेक लगा, अब बड़ी संख्या में अस्पताल पहुंच रहे हैं कैंसर मरीज़

प्रतीकात्मक तस्वीर

मुंबई:

मुंबई के बड़े कैंसर अस्पतालों में करीब 50-60% मरीज़ दूसरे शहरों राज्यों  के होते हैं, लॉकडाउन के दौरान कैंसर के इलाज पर पूरी तरह से ब्रेक लगा और अब मुंबई के अस्पतालों में करीब 40% मरीज़, आख़िरी स्टेज के कैंसर के साथ पहुंच रहे हैं, जिनके बचने की उम्मीद बेहद कम या ना के बराबर होती है.

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57 साल की मीना शाह ओवेरीयन कैंसर से पीड़ित हैं. 2013 में कैंसर डिटेक्ट हुआ था, लॉकडाउन में इलाज रुकने पर अब इनकी बीमारी स्टेज 4 में पहुंच चुकी हैं. यानी वो पड़ाव जब कैंसर से निकलने की जंग बेहद मुश्किल होती है.

कैंसर के मरीज मीना शाह ने कहा, ''मुझे कैंसर डिटेक्ट हुआ 2013 में, 2 सर्जरी हुई, 12 किमो, चार साल तक मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. लास्ट ईयर रिलेप्स हुआ, 12 किमो का ट्रीटमेंट है लेकिन 8 में रुक गया क्योंकि लॉकडाउन शुरू हो गया, हॉस्पिटल बंद थे, मोड ऑफ़ ट्रांसपोर्ट नहीं था, इसलिए मैं ट्रीटमेंट नहीं ले पायी. अभी फिर से मेरा रिलैप्स डीटेक्ट हुआ है.''

मुंबई के कैंसर स्पेशलिस्ट बताते हैं कि लॉकडाउन में समय पर जांच ना करवाने के कारण क़रीब 40% मरीज़ लास्ट स्टेज का कैंसर लेकर अस्पतालों में पहुंच रहे हैं जहां उनके बचने जी उम्मीद बेहद कम रह जाती है. Wockhardt हॉस्पिटल में GI कैंसर के सर्जन डॉ. इमरान शेख़ ने कहा, ''लॉकडाउन की वजह से काफ़ी मरीज हॉस्पिटल नहीं पहुंच पा रहे थे, उनके मन में डर था की कहीं हॉस्पिटल जाने से कोरोना ना हो जाए. इसलिए काफ़ी मरीज़ कैंसर का प्रॉपर इलाज नहीं ले पाए. अभी लॉकडाउन खुल रहा है तो काफ़ी मरीज आ रहे हैं और इनमें से तक़रीबन 40% जो इनिशियली ऑपरबल थे, जो अरली स्टेज पर थे, अब अडवांस स्टेज या इनऑपरबल स्टेज पर पहुंच गए हैं.''

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एशियन कैंसर इंस्टिट्युट के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. दीपक पारिख ने कहा, ''थर्ड, फोर्थ स्टेज 40-50%, सेकंड स्टेज 30% और फर्स्ट स्टेज कैंसर 20% के क़रीब है. दुर्भाग्यवश ऐसे कई थे जिनका किमो बीच में रुका इससे उनका ट्रीटमेंट बेकार हो गया और ये फिर शुरू करना होगा, और जो लेट स्टेज में देरी से आ रहे हैं उनको किमो ज़्यादा देना होगा.''

लॉकडाउन के दौरान भी कैंसर का इलाज चलता रहे इसलिए कुछ डॉक्टरों की टीम ज़मीन पर काम करती रही. कैंसर जल्दी पकड़ में आए इसलिए स्क्रीनिंग कैम्प फिर शुरू हो रहे हैं.

मेडिकल ओंकोलोजिस्ट डॉ. उदीप महेश्वरी ने कहा, ''अस्पताल पहले छह महीने बंद थीं, तो ये अस्पताल के मरीज़ और शहर से बाहर के मरीज़ इन सभी को किमो थेरेपी के विकल्प नहीं मिल रहे थे, हमारा डीके सेंटर चालू होने के कारण हमें कमी खली नहीं, ओपीडी कम हो गयी थीं, किमो नहीं रोका क्योंकि वो बेहद ज़रूरी था, तो हम कैसे भी फंड इकट्ठा करके किमो किया. हां मोटा-मोटा किमो में 30% की कटौती हुई तो ओपीडी में लगभग 50%-60% की कमी पहले 6 महीने में दिखी थी.''

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फ़ोर्टिस हॉस्पिटल में हेड-सर्जिकल ऑकॉलॉजी डॉ. अनिल हेरूर ने कहा, ''मैं प्रार्थना करता हूं कि महामारी ख़त्म होते ही हम स्क्रीनिंग शुरू करें, अवेर्नेस कैम्प स्क्रीनिंग कैम्प फिर शुरू हो जाएं, ताकि ये बीमारी जल्दी ड़ायग्नोस हो.'

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कैंसर मरीज़ों में किमो के दौरान इम्प्यूनिटी कम होने से उन्हें संक्रमण का खतरा ज़्यादा रहता है, इस कारण से लोगों के कैंसर के इलाज पर ब्रेक लगा लेकिन ये ब्रेक भी मरीज़ों के लिए घातक साबित होता दिख रहा है.