सीएम अरविंद केजरीवाल का फाइल फोटो...
नई दिल्ली:
पहले हुई नियुक्तियों के उदाहरण देते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को अपने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति का पुरजोर बचाव किया और हैरत जताई कि कांग्रेस और भाजपा के शासनकाल में ऐसे ही पदों को 'असंवैधानिक' कैसे नहीं करार दिया गया। उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधा।
मुख्यमंत्री ने दिल्ली की कांग्रेस और भाजपा सरकारों के समय हुई संसदीय सचिवों की नियुक्तियों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अजय माकन सहित कई लोग इस पद पर थे और उनके पास अपने कर्मी भी थे और अहम आधिकारिक फाइलों तक उनकी पहुंच थी।
केजरीवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'मैं मोदीजी से हाथ जोड़कर अनुरोध करना चाहता हूं कि दिल्ली के लोगों के लिए मुश्किल न खड़ी करें। आपकी लड़ाई मुझसे है। मुझसे जितना बदला लेना चाहते हैं लीजिए, लेकिन दिल्ली में अच्छे काम रोकने की कोशिश मत कीजिए, जिसकी तारीफ संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया की कई संस्थाओं ने की है।' मुख्यमंत्री ने कहा कि साल 1953 में दिल्ली में तीन संसदीय सचिव- एचकेएल भगत, कुमारी शांता वशिष्ठ और शिवचरण दासगुप्ता- थे। जबकि साहिब सिंह वर्मा की अगुवाई वाली भाजपा सरकार और कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने कई विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया।
केजरीवाल ने सवाल किया, 'उस वक्त यह संवैधानिक था और जब हम करते हैं तो यह असंवैधानिक हो जाता है। यह क्या है, क्या दोहरा मानदंड नहीं है?' उन्होंने कहा कि 21 संसदीय सचिव 'आप' सरकार की 'आंख, कान और हाथ' हैं, जिन्हें अहम ड्यूटी सौंपी गई है।
सीएम केजरीवाल द्वारा कही गई मुख्य बातें...
मुख्यमंत्री ने दिल्ली की कांग्रेस और भाजपा सरकारों के समय हुई संसदीय सचिवों की नियुक्तियों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अजय माकन सहित कई लोग इस पद पर थे और उनके पास अपने कर्मी भी थे और अहम आधिकारिक फाइलों तक उनकी पहुंच थी।
केजरीवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'मैं मोदीजी से हाथ जोड़कर अनुरोध करना चाहता हूं कि दिल्ली के लोगों के लिए मुश्किल न खड़ी करें। आपकी लड़ाई मुझसे है। मुझसे जितना बदला लेना चाहते हैं लीजिए, लेकिन दिल्ली में अच्छे काम रोकने की कोशिश मत कीजिए, जिसकी तारीफ संयुक्त राष्ट्र सहित दुनिया की कई संस्थाओं ने की है।' मुख्यमंत्री ने कहा कि साल 1953 में दिल्ली में तीन संसदीय सचिव- एचकेएल भगत, कुमारी शांता वशिष्ठ और शिवचरण दासगुप्ता- थे। जबकि साहिब सिंह वर्मा की अगुवाई वाली भाजपा सरकार और कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने कई विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया।
केजरीवाल ने सवाल किया, 'उस वक्त यह संवैधानिक था और जब हम करते हैं तो यह असंवैधानिक हो जाता है। यह क्या है, क्या दोहरा मानदंड नहीं है?' उन्होंने कहा कि 21 संसदीय सचिव 'आप' सरकार की 'आंख, कान और हाथ' हैं, जिन्हें अहम ड्यूटी सौंपी गई है।
सीएम केजरीवाल द्वारा कही गई मुख्य बातें...
- भाजपा नेता साहिब सिंह वर्मा ने भी 1997 में एक विधायक को अपना संसदीय सचिव नियुक्त किया था।
- पूर्ववर्ती शीला दीक्षित भी जब मुख्यमंत्री थी, तब उन्होंने भी अजय माकन को अपना संसदीय सचिव नियुक्त किया था।
- तुम संसदीय सचिव बनाओ तो संवैधानिक, हम बनाए तो असंवैधानिक।
- दिल्ली में वर्ष 1953 में तीन संसदीय सचिव थे। यह क्रम तो 1953 से चला आ रहा है।
- 2015 तक संसदीय सचिव बनते थे तो संवैधानिक थे, हम बनाए तो असंवैधानिक। यह दोहरा मापदंड नहीं चलेगा।
- दिल्ली में स्कूलों के अंदर 8,000 क्लास रूम बनकर तैयार हो रहे हैं। इन सभी विधायकों ने एक-एक स्कूल में जाकर निरीक्षण किया है। ये दूसरी पार्टियों के अनपढ़ों की तरह नहीं है।
- हमारे संसदीय सचिवों ने घूम-घूमकर मोहल्ला क्लीनिकों के लिए जमीनें चिन्हित की हैं।
- हम इन्हीं संसदीय सचिवों की बदौलत सरकार चला रहे हैं। ये हमारे हाथ, पैर, आंख और कान हैं।
- मैं मोदी जी से हाथ जोड़कर विनती करना चाहता हूं... मोदी जी आपकी लड़ाई मुझसे है, लेकिन दिल्लीवालों को परेशान मत कीजिए। आपको बदला लेना है तो मुझसे लीजिए। (इनपुट एजेंसी से भी)
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