प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
देश के 50 करोड़ नागरिकों को हेल्थ इंश्योरेन्स की सुविधा देने के लिए तैयार मोदीकेयर के एलान के बाद अब मोदी सरकार ने 10 करोड़ गरीब मज़दूरों तक सामाजिक सुरक्षा की सुविधा पहुंचाने की तैयारी शुरू कर दी है. इस पर सालाना एक लाख करोड़ से ज़्यादा के खर्च का प्रस्ताव है. गरीबी रेखा से नीचे के तकरीबन 10 करोड़ गरीब मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा की सुविधा पहुंचाने के लिए नई सामाजिक सुरक्षा योजना लाने की तैयारी हो रही है. एनडीटीवी के पास नई पॉलिसी का ड्राफ्ट है जिसमें 10 करोड़ गरीब मज़दूरों को पेंशन, बेरोज़गारी भत्ता, मैटरनिटी बेनिफिट से लेकर मेडिकल और ग्रुप इन्श्योरेंस की सुविधा देने का प्रस्ताव है. इसे 'लेबर कोड ऑन सोशल सिक्यूरिटी' नाम के कानून के ज़रिये पूरे देश में लागू करने की तैयारी है.
श्रम मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने पिछले हफ्ते भारतीय मज़दूर संघ के पदाधिकारियों के साथ एक बैठक की जिसमें इस महात्वाकांक्षी योजना के प्रारूप पर विस्तार से चर्चा हुई. भारतीय मज़दूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने एनडीटीवी से कहा, "हमारी चिंता इस योजना के कार्यान्वयन को लेकर है. मौजूदा सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं को लागू करने के दौरान सवाल उठते हैं. इसे ज़मीन पर सही तरीके से लागू करने बेहद ज़रूरी होगा."
श्रम मंत्रालय की इस नई पॉलिसी के तहत हर राज्य में सोशल सिक्योरिटी फंड बनेगा. इसके ज़रिए पेंशन, मेडिकल सुविधा, मैटरनिटी सुविधा, बेरोज़गारी भत्ता, सिक्नेस बेनेफिट, डिसेबलमेन्ट बेनेफिट, इनवेलेडिटी बेनेफिट, डिपेनडेन्ट्स बेनेफिट, प्रोविडेन्ट फंड की सुविधा और ग्रुप इंश्योरेन्स बेनेफिट जैसी 10 बुनियादी सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं की योजना हर BPL मज़दूर और उसके परिवार तक पहुंचाने का प्रस्ताव है.
इसमें एक ग्रेच्युटी फंड भी बनाया जाएगा. इस नई सामाजिक सुरक्षा योजना का फायदा दस करोड़ गरीब मज़दूरों तक पहुंचाने पर हर साल 1 लाख 20 हज़ार करोड़ तक के खर्च का अनुमान है.
सीपीएम के मज़दूर संघ CITU ने इस नई सामाजिक सुरक्षा योजना पर कई सवाल उठाए हैं. CITU के महासचिव और राज्यसभा सदस्य तपन सेन ने एनडीटीवी से कहा कि ये एक राजनीतिक जुमला है. इसके ज़रिये मोदी सरकार मौजूदा 15 अलग-अलग सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं को मिलाकर एक योजना लागू करना चाहती है जिससे आम मज़दूरों तक सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी सुविधाएं पहुंचाना और मुश्किल हो जाएगा.
VIDEO: मोदी सरकार की 10 करोड़ गरीबों के लिए योजना
तपन सेन ने कहा, "सरकार सारी बड़ी सामाजिक योजनाओं के पास मौजूद फंड्स को एक साथ मिलाकर एक सोशल सिक्यूरिटी फंड बनाना चाहती है जो केन्द्र सरकार के नियंत्रण में रहेगा. इससे राज्यों को बार-बार केन्द्र सरकार को फंड मुहैया कराने के लिए गुज़ारिश करना होगा. इससे मज़दूरों तक ज़रूरी सुविधाएं पहुंचाना और मुश्किल हो जाएगा."
दरअसल सरकार की नज़र 2019 के चुनावों पर है. वो इस योजना के सहारे 10 करोड़ मज़दूरों और उनके परिवारों तक पहुंचना चाहती है. तैयारी इस पॉलिसी पर राजनीतिक सहमति बनाकर इसे इसी साल लागू करने की है.
श्रम मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने पिछले हफ्ते भारतीय मज़दूर संघ के पदाधिकारियों के साथ एक बैठक की जिसमें इस महात्वाकांक्षी योजना के प्रारूप पर विस्तार से चर्चा हुई. भारतीय मज़दूर संघ के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने एनडीटीवी से कहा, "हमारी चिंता इस योजना के कार्यान्वयन को लेकर है. मौजूदा सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं को लागू करने के दौरान सवाल उठते हैं. इसे ज़मीन पर सही तरीके से लागू करने बेहद ज़रूरी होगा."
श्रम मंत्रालय की इस नई पॉलिसी के तहत हर राज्य में सोशल सिक्योरिटी फंड बनेगा. इसके ज़रिए पेंशन, मेडिकल सुविधा, मैटरनिटी सुविधा, बेरोज़गारी भत्ता, सिक्नेस बेनेफिट, डिसेबलमेन्ट बेनेफिट, इनवेलेडिटी बेनेफिट, डिपेनडेन्ट्स बेनेफिट, प्रोविडेन्ट फंड की सुविधा और ग्रुप इंश्योरेन्स बेनेफिट जैसी 10 बुनियादी सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं की योजना हर BPL मज़दूर और उसके परिवार तक पहुंचाने का प्रस्ताव है.
इसमें एक ग्रेच्युटी फंड भी बनाया जाएगा. इस नई सामाजिक सुरक्षा योजना का फायदा दस करोड़ गरीब मज़दूरों तक पहुंचाने पर हर साल 1 लाख 20 हज़ार करोड़ तक के खर्च का अनुमान है.
सीपीएम के मज़दूर संघ CITU ने इस नई सामाजिक सुरक्षा योजना पर कई सवाल उठाए हैं. CITU के महासचिव और राज्यसभा सदस्य तपन सेन ने एनडीटीवी से कहा कि ये एक राजनीतिक जुमला है. इसके ज़रिये मोदी सरकार मौजूदा 15 अलग-अलग सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं को मिलाकर एक योजना लागू करना चाहती है जिससे आम मज़दूरों तक सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी सुविधाएं पहुंचाना और मुश्किल हो जाएगा.
VIDEO: मोदी सरकार की 10 करोड़ गरीबों के लिए योजना
तपन सेन ने कहा, "सरकार सारी बड़ी सामाजिक योजनाओं के पास मौजूद फंड्स को एक साथ मिलाकर एक सोशल सिक्यूरिटी फंड बनाना चाहती है जो केन्द्र सरकार के नियंत्रण में रहेगा. इससे राज्यों को बार-बार केन्द्र सरकार को फंड मुहैया कराने के लिए गुज़ारिश करना होगा. इससे मज़दूरों तक ज़रूरी सुविधाएं पहुंचाना और मुश्किल हो जाएगा."
दरअसल सरकार की नज़र 2019 के चुनावों पर है. वो इस योजना के सहारे 10 करोड़ मज़दूरों और उनके परिवारों तक पहुंचना चाहती है. तैयारी इस पॉलिसी पर राजनीतिक सहमति बनाकर इसे इसी साल लागू करने की है.
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