एमजे अकबर मानहानि मामले में प्रिया रमानी को कोर्ट ने नहीं माना दोषी
पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्वारा पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ दायर किए गए मुकदमे में दिल्ली की अदालत ने प्रिया को बरी करते हुए कहा है कि उनके खिलाफ पूर्व केंद्रीय मंत्री की शिकायत साबित नहीं होती है. इसी संदर्भ में कोर्ट ने भारतीय कानून एवं व्यवस्था और उसमें महिलाओं की स्थिति का भी ज़िक्र किया, और प्राचीन कथाओं का भी.
कोर्ट ने इस केस में कई अहम टिप्पणियां कीं, आप भी पढ़ें
- पत्रकार प्रिया रमानी (Priya Ramani) ने सोशल मीडिया पर कुछ साल पहले चले #MeToo अभियान के तहत पूर्व केंद्रीय मंत्री (MJ Akbar) पर यौन शोषण का आरोप लगाया था, जिसके जवाब में प्रिया के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया गया था. कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, "इसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि यौन शौषण अक्सर बंद दरवाज़ों के पीछे ही होता है..."
- अदालत ने इस संदर्भ में महाभारत और रामायण का भी ज़िक्र किया और कहा कि राजकुमारी सीता को बचाने के लिए जटायु आए थे. कोर्ट के मुताबिक, शोषण की शिकार अधिकतर महिलाएं कलंक लगने और चरित्रहनन के डर से अक्सर आवाज़ भी नहीं उठा पाती हैं.
- कोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि यौन शोषण की शिकायतें करने के लिए हमारे देश में मैकेनिज़्म की कमी है, और भारतीय महिलाओं को आज सिर्फ समानता की दरकार है.
- कोर्ट ने महिला पत्रकार के आर्टिकल और ट्वीट के कुछ कंटेंट को मानिहानीकारक माना है, लेकिन ये भी कहा है कि संविधान महिला को ये अधिकार देता है कि वो कभी भी किसी भी प्लेटफार्म पर अपनी शिकायत कर सकती है. मानिहानि कहकर किसी महिला को शिकायत करने से रोका नहीं जा सकता है और सज़ा नहीं दी जा सकती. महिला अक्सर सामाजिक दबाब में शिकायत नहीं कर पाती. कोर्ट ने महाभारत और रामायण का ज़िक्र किया
- लक्ष्मण से जब सीता का वर्णन करने के लिए कहा गया तो उन्होने कहा कि मां सीता के पैरों के अलावा उनका ध्यान कहीं और नहीं था.कोर्ट ने ये भी कहा कि महिलाओं को दशकों के बाद भी अपनी शिकायत रखने का अधिकार है . सोशल स्टेटस का व्यक्ति भी यौन उत्पीड़न कर सकता है . यौन शोषण गरिमा और आत्मविश्वास से दूर ले जाता है. प्रतिष्ठा का अधिकार गरिमा के अधिकार की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता. समाज को अपने पीड़ितों पर यौन शोषण और उत्पीड़न के प्रभाव को समझना चाहिए.
- संविधान के तहत यानी जीने के अधिकार और समानता के अधिकार की गारंटी है.महिला अपनी पसंद के प्लेटफॉर्म पर अपना मामला डालने का पूरा अधिकार है . हमारे समाज को यह समझने में समय लगता है कि कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात के कारण वर्षों तक नहीं बोल पाता. महिला को यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता.