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This Article is From Nov 30, 2021

मायावती ने शुरू किया दलित वोटों के लिए अभियान

मायाव​ती अब इन 86 ​आर​क्षित सीटों पर जीत के लिए लखनऊ में सम्मेलन कर रही हैं. काफी दिनों तक मायावती ने पार्टी महासचिव सतीश मिश्रा से सूबे भर में ब्राह्मण सम्मेलन करवाए, लखनऊ के ब्राह्मण सम्मेलन में वह खुद मुख्य अतिथि थीं.

मायाव​ती अब इन 86 ​आर​क्षित सीटों पर जीत के लिए लखनऊ में सम्मेलन कर रही हैं.

लखनऊ:

पूरे यूपी में ब्राह्मण सम्मेलन करने के बाद मायावती की नजर अब दलित वोटों पर है. उत्तरप्रदेश में अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए सुरक्षित 86 सीटों में से बसपा पिछली बार सिर्फ दो ही सीटें जीत पाई थी. मायाव​ती अब इन 86 ​आर​क्षित सीटों पर जीत के लिए लखनऊ में सम्मेलन कर रही हैं. काफी दिनों तक मायावती ने पार्टी महासचिव सतीश मिश्रा से सूबे भर में ब्राह्मण सम्मेलन करवाए, लखनऊ के ब्राह्मण सम्मेलन में वह खुद मुख्य अतिथि थीं. इनमें शंख बजे, मंत्रोच्चारण हुआ और जय श्री राम के नारे भी लगाए गए. अब मायाव​ती अपने कोर वोट बैंक यानी कि दलितों की तरफ आई हैं. उन्होंने प्रदेश की 86 आरक्षित सीटों के अध्यक्षों का सम्मेलन किया और उन्हें जीत की रणनीति समझाई.

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मायावती ने कहा, "इस खास बैठक में प्रदेश की प्रत्येक एससी विधान सभा सीट पर पार्टी संगठन की सभी स्तर की कमेटियों के कार्यों, खासकर पोलिंग बूथ की कमेटियों के जरिए कैडर बैठकों तथा सर्वसमाज में पार्टी के जनाधार को बढ़ाने के मिशनरी कार्य की प्रगति आदि की भी गहन समीक्षा की जाएगी."

यूपी में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए 86 सीटे हैं. 2007 के चुनाव में बसपा ने 63 सीटें जीतीं और भाजपा ने 7, जबकि 2017 के चुनाव में बसपा को केवल दो सीटें आईं और भाजपा को 67. जानकार इसकी एक वजह दलित वोटों का बंटवारा भी मानते हैं. पिछले दो साल में करीब 20 बसपा नेता समाजवादी पार्टी में जा चुके हैं. बसपा के कुल 18 विधायकों में से 11 निकाले जा चुके हैं. इनमें बसपा के विधायक दल नेता लालजी वर्मा और प्रदेश अध्यक्ष रामचल राजभर भी शामिल हैं. यह अक्सर पार्टी में दलितों की उपेक्षा के इल्जाम लगाते रहे हैं.

पूर्व बसपा विधायक रामचल राजभर ने कहा, "मेरे दोस्तों, मेरे निकाले जाने के बाद थोक के भाव में बड़े पैमाने पे चाहे वो जौनपुर हो, ​बलिया हो, चंदौली हो, आजमगढ़ हो, महुआ हो, देवरिया हो, और मेरे दोस्तों अयोध्या हो, सुल्तानपुर हो, संत कबीर नगर हो, तमाम जिलों के लोगों ने, बाहराइच के लोग हैं उन्होंने मेरे दोस्तों रिजाइन देने का काम किया है बसपा से.''

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आरक्षित सीटों पर क्योंकि हर दल के उम्मीदवार अनुसूचित जाति, जनजाति के ही होते हैं, ऐसे में दलित वोटों का बंटवारा हो जाता है. बसपा ने सभी आरक्षित 86 सीटों पर जातियों की पहचान की है. अब मायावती सुरक्षित सीटों पर सवर्ण हिंदू, ओबीसी और मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए हर सीट पर उन जातियों के लोगों को जिम्मेदारी दे रही हैं.

मायावती ने कहा, "इन सब के बारे में प्रदेश में पार्टी के ओबीसी व जाट समाज व मुस्लिम समाज के आए हुए सभी पदाधिकारी अपने अपने समाज की छोटी छोटी बैठकों के जरिए यह सब बातें काफी कुछ बता रहे हैं. जिसके कारण इन वर्गों के एक लोग काफी संख्या में पार्टी से जुड़े हैं."

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पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के 86 आरक्षित सीटों में से 67 जीत लेने की यही वजह थी कि इन सीटों पर सारे दलित उम्मीदवार होने की वजह से उनका वोट तो बंट गया, लेकिन भाजपा की लहर में गैर दलित वोट का बड़ा हिस्सा उसे मिल गया. आरक्षित सीटों पर ब्राह्मण वोट हासिल करने के लिए मायावती ने सतीश मिश्रा की ब्राह्मण टीम को जिम्मेदारी दी है.

उधर कांग्रेस कैम्पेन कमेटी के चेयरमैन पीएल पूणिया ने कहा, "आरक्षित सीट पर हार और जीत अपर कास्ट या ओबीसी या मुस्लिम उनका जब वोट मिलता है तभी वो जीतते हें, क्योंकि आरक्षित सीट पर आरक्षित कैंडिडेट रहता है. तो आरक्षित वोटर आपस में बंट जाते हैं और जिसको सपोर्ट बाहर से मिल जाए व अन्य बिरादरियों का मिल जाए, वो जीत जाता है.''

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