जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में 13 जुलाई को मनाए जाने वाले ‘शहीद दिवस' (Martyrs' Day In J&K) के उपलक्ष्य में इस बार कोई आधिकारिक कार्यक्रम नहीं हुआ. साल 1931 में डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह के सैनिकों की गोलीबारी में मारे जाने वालों की याद में हर साल इस दिवस का आयोजन किया जाता है. अधिकारियों ने बताया कि राजपत्रित अवकाश से 13 जुलाई को हटा दिए जाने के कारण शहीदों के कब्रिस्तान में कोई समारोह नहीं हुआ. पिछले साल पांच अगस्त को केंद्र द्वारा धारा 370 (Article 370) के ज्यादातर प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की 5 दिसंबर को जयंती के साथ ही 13 जुलाई की छुट्टियों को इससे हटा दिया गया था. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने 1948 में 13 जुलाई को छुट्टी का प्रावधान किया था.
शहीदों के कब्रिस्तान में आधिकारिक कार्यक्रम के अलावा मुख्य धारा के राजनीतिक दलों के नेता भी श्रद्धांजलि देने के लिए वहां जाते थे। महाराजा हरि सिंह के निरंकुश शासन के विरोध के दौरान डोगरा सेना की गोलीबारी में 22 कश्मीरी मारे गए थे. अधिकारियों ने बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए कश्मीर के अधिकतर हिस्से में लागू कड़े पावधानों के चलते सोमवार को मुख्यधारा का कोई भी नेता वहां नहीं पहुंचा. मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाले अलगाववादी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने सोमवार को हड़ताल का आह्वान किया था.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक नेता ने कहा कि शहीदों के कब्रिस्तान जाने की अनुमति मांगी गयी थी लेकिन जिला प्रशासन से कोई जवाब नहीं मिला. बहरहाल, जम्मू कश्मीर में क्षेत्रीय शक्तियों- नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी ने शहीदों को श्रद्धांजलि दी. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और श्रीनगर लोकसभा क्षेत्र से संसद सदस्य फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि यह दिन जम्मू कश्मीर की पहचान और यहां के लोगों के अधिकार को मनाने का दिन है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि ‘‘यह दिन दमन करने वालों के खिलाफ सामूहिक प्रतिकार का दिन है.''PDP ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर की आजादी के संघर्ष में शहीदों की भूमिका को कभी नहीं भुलाया जा सकता.
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