मुंबई:
केंद्रीय कानूनमंत्री अश्विनी कुमार ने शनिवार को कहा कि हालिया अध्यादेश में वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं बनाने के कारणों में से एक यह है कि भारत में विवाह को अनुबंध नहीं समझा जाता है, जैसा अन्य लोकतांत्रिक देशों में होता है।
इंडियन मर्चेंट्स चैंबर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मंत्री ने कहा कि कानून को हमेशा समसामयिक हकीकतों को परिलक्षित करना चाहिए।
कुमार ने कहा, ‘‘सिर्फ एक मामले को ध्यान में रखकर कानून न तो बनाया जा सकता है न उसमें संशोधन किया जा सकता है। कानून को इस तरीके से बनाया जाना चाहिए कि यह दशकों के लिए हर मामले में टिका रह सके। कानून को समाज की समसामयिक हकीकतों को अवश्य परिलक्षित करना चाहिए और देश की प्रगति में मदद करनी चाहिए।’’
यौन अपराधों से जुड़े कानूनों में संशोधन के लिए हाल में जारी अपराध कानून (संशोधन) अध्यादेश के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘हमने विभिन्न कारणों से अध्यादेश में वैवाहिक बलात्कार को शामिल नहीं किया। उनमें से एक यह है कि हमारे देश में विवाह को अन्य लोकतांत्रिक देशों की तरह अनुबंध नहीं माना जाता है। जब पत्नी अपने पति से अलग होती है और तब उसका यौन उत्पीड़न किया जाता है तो उसके खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा।’’
अध्यादेश को अगले हफ्ते मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘दिसंबर 2012 (दिल्ली) सामूहिक बलात्कार मामले के बाद सरकार ने रिकार्ड समय में विधेयक को तैयार किया। उस मामले ने समाज के सामूहिक अंत:करण को झकझोर दिया था।’’ कुमार ने कहा, ‘‘इस बात का आत्ममंथन किए जाने की जरूरत है और इस बात को सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि कानून दुरुपयोग किए जाने में सक्षम न हों। अगर कानून में कमी रही तो यह गंभीर उल्लंघन की ओर ले जा सकता है।’’
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 (ए) का उदाहरण देते हुए कुमार ने कहा, ‘‘इस धारा का काफी दुरुपयोग किया जा रहा है। लेकिन मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता क्योंकि मैं कुछ करूंगा तो कई महिला संगठन इसके खिलाफ खड़े होंगे। लेकिन जो देखने की आवश्यकता है वह यह है कि महिलाओं को 498 (ए) के तहत आरोपी बनाया जा रहा है।’’
इंडियन मर्चेंट्स चैंबर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मंत्री ने कहा कि कानून को हमेशा समसामयिक हकीकतों को परिलक्षित करना चाहिए।
कुमार ने कहा, ‘‘सिर्फ एक मामले को ध्यान में रखकर कानून न तो बनाया जा सकता है न उसमें संशोधन किया जा सकता है। कानून को इस तरीके से बनाया जाना चाहिए कि यह दशकों के लिए हर मामले में टिका रह सके। कानून को समाज की समसामयिक हकीकतों को अवश्य परिलक्षित करना चाहिए और देश की प्रगति में मदद करनी चाहिए।’’
यौन अपराधों से जुड़े कानूनों में संशोधन के लिए हाल में जारी अपराध कानून (संशोधन) अध्यादेश के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘हमने विभिन्न कारणों से अध्यादेश में वैवाहिक बलात्कार को शामिल नहीं किया। उनमें से एक यह है कि हमारे देश में विवाह को अन्य लोकतांत्रिक देशों की तरह अनुबंध नहीं माना जाता है। जब पत्नी अपने पति से अलग होती है और तब उसका यौन उत्पीड़न किया जाता है तो उसके खिलाफ मामला दर्ज किया जाएगा।’’
अध्यादेश को अगले हफ्ते मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जाएगा। उन्होंने कहा, ‘‘दिसंबर 2012 (दिल्ली) सामूहिक बलात्कार मामले के बाद सरकार ने रिकार्ड समय में विधेयक को तैयार किया। उस मामले ने समाज के सामूहिक अंत:करण को झकझोर दिया था।’’ कुमार ने कहा, ‘‘इस बात का आत्ममंथन किए जाने की जरूरत है और इस बात को सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि कानून दुरुपयोग किए जाने में सक्षम न हों। अगर कानून में कमी रही तो यह गंभीर उल्लंघन की ओर ले जा सकता है।’’
भारतीय दंड संहिता की धारा 498 (ए) का उदाहरण देते हुए कुमार ने कहा, ‘‘इस धारा का काफी दुरुपयोग किया जा रहा है। लेकिन मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता क्योंकि मैं कुछ करूंगा तो कई महिला संगठन इसके खिलाफ खड़े होंगे। लेकिन जो देखने की आवश्यकता है वह यह है कि महिलाओं को 498 (ए) के तहत आरोपी बनाया जा रहा है।’’
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