प्रतीकात्मक फोटो
मराठवाड़ा:
मराठवाड़ा का सोना जल चुका है, ये सोना है, मौसंबी, जो मराठवाड़ा में किसानों की आमदनी का मुख्य जरिया था, लेकिन 3-4 सालों के सूखे ने इस सोने को खत्म कर दिया है। किसान अपने हाथों से मौसंबी के पेड़ काटने को मजबूर हैं।
30 साल के विजय भाऊसाहेब गोगडे के लिए मौसंबी के पेड़ अपने सगों जैसे हैं, लेकिन अब पिता के साथ मिलकर वह इन पेड़ों को अपने हाथों से काट रहे हैं, ताकि खेत में कोई और फसल लगा सकें। 10 एकड़ के खेत में मौसंबी के 500 पेड़ लगाए थे, 10 लोगों का परिवार इन्हीं पेड़ों के आसरे था, अलग-अलग बैंकों से 5 लाख रुपये का कर्ज ले रखा है।
साल दर साल पड़ रहे सूखे से अब ये पेड़ विजय का साथ छोड़ चुके हैं। विजय का कहना है कि 3 साल से सूखा है। कुंआ खोदा, बावड़ी लगाई, लाखों रुपये टैंकर पर खर्च कर दिए और कितना पानी देंगे, हमारे पिता ने इन्हें हमारे जैसा ही पाला-पोसा है, लेकिन अब कोई चारा नहीं है। संभाजी की कहानी भी ऐसी ही है, एक हैक्टेयर में खेती थी, मौसंबी जल गई, कपास फ्लॉप हो गया, कर्ज पर ट्रैक्टर लिया था, अब फाइनेंस कंपनी वाले नोटिस भेज रहे हैं।
मराठवाड़ा के लगभग 10 फीसदी किसान मौसंबी की खेती करते थे, किसी वक्त उनके घर बेटी देना लोग शान समझते थे, जिसके घर में ज्यादा मौसंबी के पेड़ होते थे। 5-6 साल में बड़ा होने के बाद इस पेड़ से 20-25 साल तक फल मिलता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से पड़ रहे सूखे से लगभग ढाई लाख हैक्टेयर में मौसंबी की खेती प्रभावित हुई है, किसानों को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ है। मौसंबी उत्पादक संघटन के अध्यक्ष जयाजीराव सूर्यवंशी पाटिल का कहना है कि अकेले औरंगाबाद में हजारों हैक्टेयर में मौसंबी की फसल बर्बाद हुई है। हर साल किसानों को लगभग 2000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, सरकार को इसकी कोई फिक्र नहीं है।
मराठवाड़ा के कई किसानों की आत्महत्या की बड़ी वजह है, मौसंबी के खेतों की तबाही, खेत तबाह होने पर किसान लोन नहीं चुका पा रहे, बैंक उन्हें धड़ाधड़ नोटिस भेज रहे हैं, लेकिन सरकार इस मसले पर अभी भी बहुत ज्यादा तवज्जो देती दिख नहीं रही है।
30 साल के विजय भाऊसाहेब गोगडे के लिए मौसंबी के पेड़ अपने सगों जैसे हैं, लेकिन अब पिता के साथ मिलकर वह इन पेड़ों को अपने हाथों से काट रहे हैं, ताकि खेत में कोई और फसल लगा सकें। 10 एकड़ के खेत में मौसंबी के 500 पेड़ लगाए थे, 10 लोगों का परिवार इन्हीं पेड़ों के आसरे था, अलग-अलग बैंकों से 5 लाख रुपये का कर्ज ले रखा है।
साल दर साल पड़ रहे सूखे से अब ये पेड़ विजय का साथ छोड़ चुके हैं। विजय का कहना है कि 3 साल से सूखा है। कुंआ खोदा, बावड़ी लगाई, लाखों रुपये टैंकर पर खर्च कर दिए और कितना पानी देंगे, हमारे पिता ने इन्हें हमारे जैसा ही पाला-पोसा है, लेकिन अब कोई चारा नहीं है। संभाजी की कहानी भी ऐसी ही है, एक हैक्टेयर में खेती थी, मौसंबी जल गई, कपास फ्लॉप हो गया, कर्ज पर ट्रैक्टर लिया था, अब फाइनेंस कंपनी वाले नोटिस भेज रहे हैं।
मराठवाड़ा के लगभग 10 फीसदी किसान मौसंबी की खेती करते थे, किसी वक्त उनके घर बेटी देना लोग शान समझते थे, जिसके घर में ज्यादा मौसंबी के पेड़ होते थे। 5-6 साल में बड़ा होने के बाद इस पेड़ से 20-25 साल तक फल मिलता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से पड़ रहे सूखे से लगभग ढाई लाख हैक्टेयर में मौसंबी की खेती प्रभावित हुई है, किसानों को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ है। मौसंबी उत्पादक संघटन के अध्यक्ष जयाजीराव सूर्यवंशी पाटिल का कहना है कि अकेले औरंगाबाद में हजारों हैक्टेयर में मौसंबी की फसल बर्बाद हुई है। हर साल किसानों को लगभग 2000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है, सरकार को इसकी कोई फिक्र नहीं है।
मराठवाड़ा के कई किसानों की आत्महत्या की बड़ी वजह है, मौसंबी के खेतों की तबाही, खेत तबाह होने पर किसान लोन नहीं चुका पा रहे, बैंक उन्हें धड़ाधड़ नोटिस भेज रहे हैं, लेकिन सरकार इस मसले पर अभी भी बहुत ज्यादा तवज्जो देती दिख नहीं रही है।
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