मराठा आरक्षण मामले (Maratha Reservation Issue) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि राज्यों को शिक्षा को बढ़ावा देने और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए संस्थानों की स्थापना के लिए और कदम उठाने चाहिए क्योंकि "सकारात्मक कार्रवाई" सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं है. जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाले पांच जजों के संविधान पीठ ने सोमवार को कहा कि इस उद्देश्य के लिए राज्यों द्वारा कई अन्य काम किए जा सकते हैं तो अन्य चीजें क्यों नहीं की जा सकतीं, शिक्षा को बढ़ावा देने और अधिक संस्थानों की स्थापना क्यों नहीं हो सकती?कहीं न कहीं इस मैट्रिक्स को आरक्षण से आगे बढ़ना चाहिए. सकारात्मक कार्रवाई सिर्फ आरक्षण नहीं है.' झारखंड सरकार की ओर से पेश हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि इसमें राज्य के वित्तीय संसाधन, स्कूल और शिक्षकों की संख्या सहित कई मुद्दे शामिल होंगे. देश में जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की सीमा अलग-अलग होगी और इस प्रकार, इसके लिए "स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूला" नहीं हो सकता है.
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गौरतलब है कि शुक्रवार को SC ने पूछाथा कि कितनी पीढ़ियों तक आरक्षण जारी रहेगा? सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत की सीमा हटाए जाने की स्थिति में पैदा होने वाली असमानता को लेकर भी चिंता प्रकट की.महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से कहा कि कोटा की सीमा तय करने पर मंडल मामले में फैसले पर बदली हुई परिस्थितियों में पुनर्विचार करने की जरूरत है.
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उन्होंने कहा कि न्यायालयों को बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर आरक्षण कोटा तय करने की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ देनी चाहिए और मंडल मामले से संबंधित फैसला 1931 की जनगणना पर आधारित था. मराठा समुदाय को आरक्षण प्रदान करने वाले महाराष्ट्र के कानून के पक्ष में दलील देते हुए रोहतगी ने मंडल मामले में फैसले के विभिन्न पहलुओं का हवाला दिया. इस फैसले को इंदिरा साहनी मामले के रूप में भी जाना जाता है, उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का केंद्र सरकार का फैसला भी 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन करता हैसुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी
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