बाबा की कलम से : क्या राहुल ने सरकार की दुखती रग पकड़ ली है?

नई दिल्ली:

राहुल के बदले-बदले तेवर से लोकसभा में मजा आ रहा है। अभी तक चुपचाप संसद आने वाले और चुपचाप पीछे बैंच पर बैठ कर चले जाने वाले राहुल अब सरकार पर तीखे प्रहार कर रहे हैं। मुद्दा भी ऐसा चुना है, जो आज कल सुर्खियों में है यानी किसानों की समस्या का।

बेमौसम बारिश और ओले की वजह से किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचा है और मंडियों में उन्हें सही कीमत नहीं मिल रही। किसानों से सरकार फसल सीधे नहीं खरीदती है। किसानों को पहले आढ़तियों के पास जाना पड़ता है वे सरकार की तरफ से फसल खरीदते हैं, चुंकि फसल खराब है इसलिए आढ़ती किसान को सरकार द्वारा तय कीमत की पर्ची नहीं दे रहे हैं।

किसानों को पता ही नहीं है कि उन्हें क्या कीमत मिलने वाली है। पंजाब में तमाम मंडियों में फसल भरी पड़ी है। खबरें इस पर लगातार दिखाई जा रही हैं इसी को लपक लिया टीम राहुल ने और वह निकल चले पंजाब की ओर रेल की जनरल बोगी में बैठ कर।

मीडिया को देर से बताया गया केवल एजेंसी को मालूम था, लेकिन राहुल की लोगों के साथ ट्रेन में बैठे हुए तस्वीरें हर अखबार में छपी। कांग्रेस का मिशन कामयाब रहा। फिर राहुल गांधी ने उसी तेवर में लोकसभा में प्रधानमंत्री को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि आज कल वो देश के दौरे पर हैं, उन्हें किसानों का हाल देखने पंजाब जाना चाहिए।

जाहिर है उस दिन राहुल ने सूट-बूट की सरकार कहा और आज प्रधानमंत्री को अप्रवासी करार दे दिया। बीजेपी तिलमिला गई और राहुल पर वार किया। वेंकैया से लेकर हरसिमरत कौर तक ने राहुल की बातों का जबाब दिया। राहुल ने एक बार फिर कॉरपोरेट घरानों को घेरा कि मेक इन इंडिया केवल उद्योगपतियों से ही होगा? क्या इसमें किसानों और मजदूरों का कोई योगदान नहीं?

राहुल ने हाल के दिनों की नब्ज को पकड़ लिया है, क्योंकि उन्हें मालूम है कि इन्हीं किसानों के ऋण माफ करके और मनरेगा में मजदूरों का ख्याल रखकर कांग्रेस 2009 में सत्ता पर आई थी। अब एक और मौका है मौजूदा सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल को पास कराने की जिद की वजह से सरकार के लिए यह धारणा जरूर बन गई है कि जब सब दल इसका विरोध कर रहे हैं तो सरकार इसे पास कराने के लिए उतावली क्यों है?

इसी से सरकार असहज हो गई है कि जितना सरकार इसे पास कराने की कोशिश करेगी, राहुल को उतना मौका मिलेगा। अब राहुल नागपुर और विदर्भ का दौरा करेंगे यानी नितिन गडकरी के गढ़ में, क्योंकि इस सरकार में भूमि अधिग्रहण बिल के सबसे बड़े पैरोकार गडकरी ही हैं। इन्हीं पर चुटकी लेते हुए राहुल ने कहा था कि गडकरी जी ने सही कहा है कि किसान को सरकार और भगवान पर भरोसा नहीं करना चाहिए। बेचारा किसान करे तो क्या करे।

सिंचाई के लिए भगवान पर और जब भगवान धोखा दे दे तो मुआवजे के लिए सरकार पर ही निर्भर हैं। दरअसल, चुनाव प्रचार में बीजेपी ने लोगों की उम्मीदों को इतनी हवा दे दी कि लोगों को लगा अब सब ठीक हो जाएगा। मगर इतने बड़े देश में यह कहां संभव है?

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राजनैतिक दल हैं, कोई साधु की जमात तो नहीं, मुद्दा मिलेगा तो राजनीति करेंगे ही। सवाल सत्ता का है और जिनके पास सत्ता होती है वो कहां दूसरों की सुनता है। आगे-आगे देखिए होता है क्या? 2019 बहुत दूर है, एक नया जनता परिवार बन रहा है और सीताराम येचुरी सीपीएम के नए महासचिव बने हैं। अभी राहुल से निबटने में ही परेशानी हो रही है, जब ये भी मैदान में कूदेंगे तो राजनीतिक खेल का मजा आएगा।