मुंबई:
बंबई उच्च न्यायालय ने सितम्बर 2008 में मालेगांव विस्फोट मामले में एक आरोपी की याचिका पर महाराष्ट्र सरकार, राष्ट्रीय जांच एजेंसी और राज्य आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) को नोटिस जारी किया है। आरोपी व्यक्ति का कहना है कि एटीएस के अधिकारियों ने मामले में कुछ लोगों को फंसाने के लिए मनगढ़ंत साक्ष्य लगाए थे।
न्यायमूर्ति पीवी हरदास और न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर की खंडपीठ ने मुंबई एवं नासिक के पुलिस महानिदेशक एवं पुलिस आयुक्तों को भी नोटिस जारी किया।
विस्फोट मामले में एक आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी ने मांग की कि 2008 के मालेगांव विस्फोट की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए क्योंकि एपीआई बागाडे, पीआई अरुण खानविलकर और सुनील यादव जैसे एटीएस अधिकारियों ने उन्हें एवं लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित जैसे दूसरे आरोपियों को गलत तरीके से फंसाया था।
चतुर्वेदी के वकीलों सुभाष झा एवं संजीव पुनालेकर ने अदालत से कहा कि चतुर्वेदी ने आरटीआई के माध्यम से कई दस्तावेज जुटाए जो दर्शाते हैं कि 23 अक्तूबर 2008 को एपीआई बागाडे ने चतुर्वेदी का ‘अपहरण’ किया।
झा ने कहा, ‘इसके बाद उन्हें (चतुर्वेदी) संग्राम सिंह के गलत पहचान के माध्यम से निजी विमान से भोपाल ले जाया गया।’ चतुर्वेदी ने अपनी याचिका में दावा किया है कि जब वह अवैध रूप से एटीएस की हिरासत में थे तो एपीआई बागाडे ने उनके घर की चाबी छीन ली थी और पुरोहित को फंसाने के लिए देवलाली के उनके किराये के घर में आरडीएक्स के कण बिखेर दिए। चतुर्वेदी ने दावा किया कि वह पुरोहित के साथ ‘सेना गुप्तचर दल’ के हिस्सा के रूप में काम कर रहे थे।
याचिका में पुरोहित के कोर्ट मार्शल से संबंधित दस्तावेज भी हैं जो दर्शाते हैं कि सेना के अधिकारियों की गवाही के आधार पर पुरोहित को ससम्मान बरी कर दिया गया। सेना के अधिकारियों ने एपीआई बागाडे की अवैध गतिविधियों के बारे में गवाही दी। उच्च न्यायालय ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे 26 जून तक जवाब दाखिल करें।
मालेगांव में 29 सितम्बर 2008 की रात को एक बम विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई थी और सौ से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित 12 लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया और उन पर मकोका के तहत मामला दर्ज किया गया।
न्यायमूर्ति पीवी हरदास और न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर की खंडपीठ ने मुंबई एवं नासिक के पुलिस महानिदेशक एवं पुलिस आयुक्तों को भी नोटिस जारी किया।
विस्फोट मामले में एक आरोपी सुधाकर चतुर्वेदी ने मांग की कि 2008 के मालेगांव विस्फोट की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए क्योंकि एपीआई बागाडे, पीआई अरुण खानविलकर और सुनील यादव जैसे एटीएस अधिकारियों ने उन्हें एवं लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित जैसे दूसरे आरोपियों को गलत तरीके से फंसाया था।
चतुर्वेदी के वकीलों सुभाष झा एवं संजीव पुनालेकर ने अदालत से कहा कि चतुर्वेदी ने आरटीआई के माध्यम से कई दस्तावेज जुटाए जो दर्शाते हैं कि 23 अक्तूबर 2008 को एपीआई बागाडे ने चतुर्वेदी का ‘अपहरण’ किया।
झा ने कहा, ‘इसके बाद उन्हें (चतुर्वेदी) संग्राम सिंह के गलत पहचान के माध्यम से निजी विमान से भोपाल ले जाया गया।’ चतुर्वेदी ने अपनी याचिका में दावा किया है कि जब वह अवैध रूप से एटीएस की हिरासत में थे तो एपीआई बागाडे ने उनके घर की चाबी छीन ली थी और पुरोहित को फंसाने के लिए देवलाली के उनके किराये के घर में आरडीएक्स के कण बिखेर दिए। चतुर्वेदी ने दावा किया कि वह पुरोहित के साथ ‘सेना गुप्तचर दल’ के हिस्सा के रूप में काम कर रहे थे।
याचिका में पुरोहित के कोर्ट मार्शल से संबंधित दस्तावेज भी हैं जो दर्शाते हैं कि सेना के अधिकारियों की गवाही के आधार पर पुरोहित को ससम्मान बरी कर दिया गया। सेना के अधिकारियों ने एपीआई बागाडे की अवैध गतिविधियों के बारे में गवाही दी। उच्च न्यायालय ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे 26 जून तक जवाब दाखिल करें।
मालेगांव में 29 सितम्बर 2008 की रात को एक बम विस्फोट में छह लोगों की मौत हो गई थी और सौ से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर सहित 12 लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया और उन पर मकोका के तहत मामला दर्ज किया गया।
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महाराष्ट्र, मालेगांव धमाका, सितंबर 2008, एटीएस, एनआईए, Maharashtra, Malegaon Blasts, September 2008, ATS, NIA