देवेंद्र फडनवीस सरकार के लिए निकाय चुनाव में जातीय ध्रुवीकरण चिंता का विषय बन गया है(फाइल फोटो).
मुंबई:
प्रभावशाली मराठाओं समेत विभिन्न समुदायों द्वारा अपनी-अपनी मांगों को लेकर चलाए गए अभियानों के कारण शुरू हुए जातीय ध्रुवीकरण की पृष्ठभूमि में महाराष्ट्र की नगर परिषदों और नगर पंचायतों के आगामी चुनाव देवेंद्र फडणवीस की दो साल पुरानी सरकार के लिए एक बड़ी परीक्षा होंगे.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि सभी दल नौकरियों एवं शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर चलाए गए मराठाओं के अभियान और जवाब में राज्य के दलितों, ओबीसी और मुसलिमों द्वारा चलाए गए आंदोलनों की आंच महसूस कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि हालांकि ये अभियान अब तक एक-दूसरे को निशाना बनाने से बचते रहे हैं लेकिन जातीय तनाव अंदर ही अंदर सुलगता रहा है. इनमें से कुछ का मानना है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने इन मोचरें को गंभीरता से नहीं लिया है और धीरे-धीरे पैदा हो रहे जातीय तनाव को खत्म करने की कोशिशें की हैं.
उन्होंने कहा कि इस बात की संभावना है कि राज्य के मतदाता, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में, निकाय चुनाव फडणवीस शासन के प्रदर्शन पर एक तरह से जनमत संग्रह होगा. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में कानून-व्यवस्था का मुद्दा, महिलाओं के खिलाफ अपराध में इजाफा और किसानों की परेशानी और आत्महत्याएं भी अहम मुद्दा बनने वाले हैं.
सत्ताधारी सहयोगियों भाजपा और शिवसेना ने जहां एकसाथ चुनाव लड़ने की संधि की है, वहीं निकाय संस्थाओं में बहुमत रखने वाली कांग्रेस और राकांपा ने गठबंधन का फैसला अपने स्थानीय नेतृत्व पर छोड़ दिया है.
भाजपा के पार्टी प्रवक्ता माधव भंडारी ने इस बात को खारिज कर दिया कि मराठा अभियान भाजपा को प्रभावित कर सकता है. उन्होंने कहा कि जातीय ध्रुवीकरण का दोष कांग्रेस और राकांपा पर लगाया जाना चाहिए.
भंडारी ने कहा, ‘‘इन दोनों दलों के मराठा नेतृत्व ने पूरे राज्य पर राज किया है. उन्होंने समुदाय के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया. जब देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब समुदाय को लगने लगा है कि वह पिछड़ा हुआ है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘यदि प्रभावशाली समुदाय द्वारा बड़े मोर्चे निकाले जाते हैं तो निश्चित तौर पर गैर-मराठी असुरक्षित महसूस करेंगे और उनके द्वारा निकाले गए मोर्चे इस असुरक्षा का परिणाम हैं.’’ कांग्रेस और राकांपा ने भाजपा पर आरोप लगाया कि उसने चुनाव से पहले बाहुबल का प्रयोग करने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को भर्ती किया है. भगवा दल ने इस आरोप को आधारहीन बताकर खारिज कर दिया.
राकांपा के प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र की राजनीति में इससे पहले कभी बाहुबल का इस्तेमाल नहीं किया गया.’’ कांग्रेस के प्रवक्ता रत्नाकर महाजन ने कहा कि बाहरी इलाकों की तालुकाओं के कस्बों और बड़े गांव मतदाताओं की पसंद का निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा को यह नहीं सोचना चाहिए कि चूंकि वह केंद्र और राज्य में सत्ता में है तो वह निकाय स्तर पर भी जीत जाएगी. इसका तालुका स्तर पर होने वाले मतदान पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’’ महाराष्ट्र में 212 नगर परिषदों और नगर पंचायतों के चुनाव 27 नवंबर से आठ जनवरी तक चार चरणों में होंगे.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि सभी दल नौकरियों एवं शिक्षा में आरक्षण की मांग को लेकर चलाए गए मराठाओं के अभियान और जवाब में राज्य के दलितों, ओबीसी और मुसलिमों द्वारा चलाए गए आंदोलनों की आंच महसूस कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि हालांकि ये अभियान अब तक एक-दूसरे को निशाना बनाने से बचते रहे हैं लेकिन जातीय तनाव अंदर ही अंदर सुलगता रहा है. इनमें से कुछ का मानना है कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने इन मोचरें को गंभीरता से नहीं लिया है और धीरे-धीरे पैदा हो रहे जातीय तनाव को खत्म करने की कोशिशें की हैं.
उन्होंने कहा कि इस बात की संभावना है कि राज्य के मतदाता, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में, निकाय चुनाव फडणवीस शासन के प्रदर्शन पर एक तरह से जनमत संग्रह होगा. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में कानून-व्यवस्था का मुद्दा, महिलाओं के खिलाफ अपराध में इजाफा और किसानों की परेशानी और आत्महत्याएं भी अहम मुद्दा बनने वाले हैं.
सत्ताधारी सहयोगियों भाजपा और शिवसेना ने जहां एकसाथ चुनाव लड़ने की संधि की है, वहीं निकाय संस्थाओं में बहुमत रखने वाली कांग्रेस और राकांपा ने गठबंधन का फैसला अपने स्थानीय नेतृत्व पर छोड़ दिया है.
भाजपा के पार्टी प्रवक्ता माधव भंडारी ने इस बात को खारिज कर दिया कि मराठा अभियान भाजपा को प्रभावित कर सकता है. उन्होंने कहा कि जातीय ध्रुवीकरण का दोष कांग्रेस और राकांपा पर लगाया जाना चाहिए.
भंडारी ने कहा, ‘‘इन दोनों दलों के मराठा नेतृत्व ने पूरे राज्य पर राज किया है. उन्होंने समुदाय के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया. जब देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद अब समुदाय को लगने लगा है कि वह पिछड़ा हुआ है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘यदि प्रभावशाली समुदाय द्वारा बड़े मोर्चे निकाले जाते हैं तो निश्चित तौर पर गैर-मराठी असुरक्षित महसूस करेंगे और उनके द्वारा निकाले गए मोर्चे इस असुरक्षा का परिणाम हैं.’’ कांग्रेस और राकांपा ने भाजपा पर आरोप लगाया कि उसने चुनाव से पहले बाहुबल का प्रयोग करने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को भर्ती किया है. भगवा दल ने इस आरोप को आधारहीन बताकर खारिज कर दिया.
राकांपा के प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र की राजनीति में इससे पहले कभी बाहुबल का इस्तेमाल नहीं किया गया.’’ कांग्रेस के प्रवक्ता रत्नाकर महाजन ने कहा कि बाहरी इलाकों की तालुकाओं के कस्बों और बड़े गांव मतदाताओं की पसंद का निर्धारण करने में अहम भूमिका निभाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘भाजपा को यह नहीं सोचना चाहिए कि चूंकि वह केंद्र और राज्य में सत्ता में है तो वह निकाय स्तर पर भी जीत जाएगी. इसका तालुका स्तर पर होने वाले मतदान पर कोई असर नहीं पड़ेगा.’’ महाराष्ट्र में 212 नगर परिषदों और नगर पंचायतों के चुनाव 27 नवंबर से आठ जनवरी तक चार चरणों में होंगे.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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