विज्ञापन
This Article is From Nov 06, 2021

नहीं रहे दिल्ली क्रिकेट जगत के ‘गुरू द्रोण’ तारक सिन्हा, लंबी बीमारी के बाद निधन

भारतीय क्रिकेट को कई अंतरराष्ट्रीय और प्रथम श्रेणी क्रिकेटर देने वाले मशहूर कोच तारक सिन्हा का लंबी बीमारी के बाद शनिवार की सुबह निधन हो गया . वह 71 वर्ष के थे .

नहीं रहे दिल्ली क्रिकेट जगत के ‘गुरू द्रोण’ तारक सिन्हा, लंबी बीमारी के बाद निधन
देश के कई प्रतिभाशाली क्रिकेटरों को तलाशने वाले सोनेट क्लब की स्थापना सिन्हा ने ही की थी
नई दिल्ली:

भारतीय क्रिकेट को कई अंतरराष्ट्रीय और प्रथम श्रेणी क्रिकेटर देने वाले मशहूर कोच तारक सिन्हा का लंबी बीमारी के बाद शनिवार की सुबह निधन हो गया . वह 71 वर्ष के थे . सिन्हा अविवाहित थे और उनके परिवार में बहन और सैकड़ों छात्र हैं. देश के कई प्रतिभाशाली क्रिकेटरों को तलाशने वाले सोनेट क्लब की स्थापना सिन्हा ने ही की थी. क्लब ने एक बयान में कहा, ‘भारी मन से यह सूचना देनी है कि दो महीने से कैंसर से लड़ रहे सोनेट क्लब के संस्थापक श्री तारक सिन्हा का शनिवार को तड़के तीन बजे निधन हो गया .'

अपने छात्रों के बीच ‘उस्ताद जी' के नाम से मशहूर थे. पांच दशक में उन्होंने कोरी प्रतिभाओं को तलाशा और फिर उनके हुनर को निखारकर क्लब के जरिये खेलने के लिए मंच दिया . यही वजह है कि उनके नामी गिरामी छात्र (जो अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते) अंतिम समय तक उनकी कुशलक्षेम लेते रहे और जरूरी इंतजाम किये. ऋषभ पंत जैसों को कोचिंग देने वाले उनके सहायक देवेंदर शर्मा भी उनके साथ थे . उनके शुरूआती छात्रों में दिल्ली क्रिकेट के दिग्गज सुरिंदर खन्ना, मनोज प्रभाकर, दिवंगत रमन लांबा, अजय शर्मा, अतुल वासन, संजीव शर्मा शामिल थे . घरेलू क्रिकेट के धुरंधरों में के पी भास्कर उनके शिष्य रहे . 

बैग पैक करेंगे और...': अफगानिस्तान के नहीं जीतने वाले सवाल पर बोले रविंद्र जडेजा, देखें VIDEO

नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में उन्होंने आकाश चोपड़ा, अंजुम चोपड़ा, रूमेली धर, आशीष नेहरा, शिखर धवन और ऋषभ पंत जैसे क्रिकेटर दिये . बीसीसीआई ने प्रतिभाओं को तलाशने के उनके हुनर का कभी इस्तेमाल नहीं किया . सिर्फ एक बार उन्हें महिला टीम का कोच बनाया गया, जब झूलन गोस्वामी और मिताली राज जैसे क्रिकेटरों के कैरियर की शुरूआत ही थी . सिन्हा के लिए सोनेट ही उनका परिवार था और क्रिकेट के लिये उनका समर्पण ऐसा था कि उन्होंने कभी विवाह नहीं किया . उनकी कोचिंग का एक और पहलू यह था कि वह अपने छात्रों की पढाई को हाशिये पर नहीं रखते थे . स्कूल या कॉलेज के इम्तिहान के दौरान अभ्यास के लिए आने वाले छात्रों को वह तुरंत वापिस भेज देते और परीक्षा पूरी होने तक आने नहीं देते थे .

T20 WC: धमाकेदार जीत के बाद कोहली गए विरोधी खेमे में, स्कॉटलैंड के खिलाड़ियों का बढ़ाया हौसला- Video

अपनी मां के साथ आने वाले पंत की प्रतिभा को देवेंदर ने पहचाना . सिन्हा ने उन्हें कुछ सप्ताह इस लड़के पर नजर रखने के लिए कहा था . गुरूद्वारे में रहने की पंत की कहानी क्रिकेट की किवदंती बन चुकी है लेकिन सिन्हा ने दिल्ली के एक स्कूल में पंत की पढाई का इंतजाम किया, जहां से उसने दसवीं और बारहवीं बोर्ड की परीक्षा दी. एक बार पीटीआई से बातचीत में पंत ने कहा था ,‘ तारक सर पितातुल्य नहीं हैं. वह मेरे पिता ही हैं.' सिन्हा व्यवसायी या कारपोरेट क्रिकेट कोच नहीं थे, बल्कि वह ऐसे उस्ताद जी थे जो गलती होने पर छात्र को तमाचा रसीद करने से भी नहीं चूकते . उनका सम्मान ऐसा था कि आज भी उनका नाम सुनकर उनके छात्रों की आंख में पानी और होंठों पर मुस्कान आ जाती है .

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com