बातचीत में रुकावट के पीछे 'भरोसे की कमी': कृषि कानूनों पर NDTV से बोले अभिजीत बनर्जी

अभिजीत बनर्जी ने केंद्र को सलाह दी है कि जब तक अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत न दिखें और "संसदीय चर्चा" न हो, तब तक कृषि कानूनों को अस्थायी रूप से वापस लिया जाए

बातचीत में रुकावट के पीछे 'भरोसे की कमी': कृषि कानूनों पर NDTV से बोले अभिजीत बनर्जी

कृषि कानूनों को लेकर बने हालात पर नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने एनडीटीवी से बातचीत की.

नई दिल्ली:

कोरोनो वायरस महामारी का दौर कृषि कानूनों (Farm Laws) पर बातचीत करने के लिए बेहतर समय नहीं है. नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी (Abhijeet Banerjee) ने सोमवार को NDTV से यह बात कही. उन्होंने किसानों और केंद्र सरकार के बीच "भरोसे की गहरी कमी" को रेखांकित किया, जो कि वार्ता टूटने का एक कारण था. बनर्जी ने केंद्र को सलाह दी कि जब तक अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत नहीं दिखते तब तक कृषि कानूनों को अस्थायी रूप से वापस ले लें. इस पर और "संसदीय चर्चा" की व्यवस्था की जा सकती है, खास तौर पर किसानों के साथ, जो नए कानूनों से डरते हैं कि उन्हें कॉर्पोरेट हितों की दया पर छोड़ दिया जाएगा.

उन्होंने कहा कि "मैं कहूंगा कि महामारी इस बातचीत (कृषि कानूनों के बारे में) के लिए अच्छा समय नहीं है. अर्थव्यवस्था करमजोर है. लोग नहीं जानते कि विशेष रूप से भारत में या फिर दुनिया में अगले कुछ सालों में कृषि कीमतों का क्या होगा...इसका अर्थ है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट है. इन सभी वृहद आर्थिक चिंताओं से लोगों में असुरक्षा की भावना है." 

किसानों और केंद्र के बीच वार्ता अब तक विफल रहने (केंद्र द्वारा किसानों की कानून वापस लेने की मांग को स्वीकार करने की अनिच्छा के साथ) के सवाल पर प्रोफेसर बनर्जी ने दो कारण बताए. प्रोफेसर बनर्जी ने कहा कि "समस्या का एक पक्ष यह है कि सरकार का प्रस्ताव पूरी तरह से समझाया नहीं गया है. किसान एक ऐसे हालात के बारे में सोचते हैं जिसमें एक या एक से अधिक कॉर्पोरेट द्वारा उनसे वसूली की जाएगी. ऐसा होगा या नहीं, लेकिन यह सभी का अनुमान है... लेकिन प्रस्ताव को विस्तार से समझाने की आवश्यकता है कि सरकार इस तरह की घटनाओं से कैसे निपटेगी. क्या वे कुछ विशेष परिस्थितियों में कदम उठाने का वादा करेंगे? ”

"दूसरा पक्ष कहीं अधिक गंभीर है. सामान्य रूप से मुझे लगता है कि विश्वास की गहरी कमी है, और यही बात साफ तौर पर सामने आ रही है. ऐसा नहीं है कि वे सोचते हैं कि 'ठीक है, सरकार आखिरकार हमारे लिए अच्छा करेगी." उन्होंने कहा कि, "और यह अनुचित नहीं है."

प्रोफेसर बनर्जी ने जीएसटी मुआवजे के भुगतान को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच गतिरोध की ओर इशारा करते हुए कहा कि केंद्र का अपनी देनदारियों को "अचानक रद्द करने" का प्रयास सफल नहीं हुआ.

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उन्होंने NDTV से यह भी कहा कि कोविड की महामारी के कारण अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए केंद्र को अस्थायी रूप से कृषि कानूनों को वापस लेने पर विचार करना चाहिए. उन्होंने कहा कि "लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं... और भरपूर फसल आने और मांग में कमी के हालत में सरकार के लिए यह कहने का अच्छा समय हो सकता है, 'हम आपको सुनते हैं. हम सहमत नहीं हैं, लेकिन हम आपको सुनते हैं और हम इसे तब तक के लिए वापस लेने जा रहे हैं जब तक कि इस पर संसदीय चर्चा नहीं हो जाती.''