नई दिल्ली:
कुडनकुलम परमाणु परियोजना में अब एक नई समस्या आ गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अब पूछा है कि परियोजना में किसी दुर्घटना के बाद नुकसान की भरपाई किसकी जिम्मेदारी होगी। प्रधानमंत्री ने परमाणु ऊर्जा विभाग को पत्र लिखकर इस आशय की जानकारी मांगी है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जो की अणु ऊर्जा मंत्रालय के मंत्री बी ने विभाग से पूछा कि आखिर दुर्घटना में पुनर्वास की जिम्मेदारी किसकी होगी।
जानकारी के मुताबिक यह परियोजना रूस के साथ सहयोग के करार पर बनाई जा रही है और रूस ने साफ कर दिया है कि पुनर्वास जैसी किसी योजना में वह साथ में नहीं है। पीएम ने पूछा है कि अगर रूस को ऐसी कोई छूट दी गई तब अन्य तमाम देश जो भारत में ऐसे प्रोजेक्ट लगाने के तैयार हैं, भी ऐसी ही मांग करेंगे।
परमाणु ऊर्जा विभाग का तर्क है कि परमाणु ऊर्जा कॉर्पोरेशन को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह प्रावधान रूस के साथ अंतरराष्ट्रीय समझौते में है,लेकिन अमेरिका और फ्रांस की सरकारों के साथ हुए समझौतों में यह प्रावधान नहीं है।
इस बात से सहमत नहीं प्रधानमंत्री ने विदेश मंत्रालय और कानून मंत्रालय से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा है। वर्ष 2008 में रूस के साथ जब समझौता हुआ था तब न्यूक्लियर लाइबिलिटी बिल नहीं था और उस समय यब जिम्मेदारी पूरी तरह से भारत पर ही डाली गई थी। जबकि बिल के अनुसार परियोजना में लगाए गए उपकरण की जिम्मेदारी भी उपकरण के आपूर्तिकर्ता की होगी। किसी दुर्घटना की स्थिति में पीड़ित आपूर्तिकर्ता से मुआवजा मांग सकता है।
इस परियोजना के दो चरण के बाद अब तीसरे और चौथे चरण पर भी रूस भारत से वैसी ही छूट की अपेक्षा कर रहा है। इस वजह से दोनों देशों में इस मुद्दे पर तमाम बैठकें हो चुकी हैं। पिछले साल सितंबर में परियोजना के विरोध के बाद काम में काफी दिक्कतें आ रही हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जो की अणु ऊर्जा मंत्रालय के मंत्री बी ने विभाग से पूछा कि आखिर दुर्घटना में पुनर्वास की जिम्मेदारी किसकी होगी।
जानकारी के मुताबिक यह परियोजना रूस के साथ सहयोग के करार पर बनाई जा रही है और रूस ने साफ कर दिया है कि पुनर्वास जैसी किसी योजना में वह साथ में नहीं है। पीएम ने पूछा है कि अगर रूस को ऐसी कोई छूट दी गई तब अन्य तमाम देश जो भारत में ऐसे प्रोजेक्ट लगाने के तैयार हैं, भी ऐसी ही मांग करेंगे।
परमाणु ऊर्जा विभाग का तर्क है कि परमाणु ऊर्जा कॉर्पोरेशन को इस बात की चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह प्रावधान रूस के साथ अंतरराष्ट्रीय समझौते में है,लेकिन अमेरिका और फ्रांस की सरकारों के साथ हुए समझौतों में यह प्रावधान नहीं है।
इस बात से सहमत नहीं प्रधानमंत्री ने विदेश मंत्रालय और कानून मंत्रालय से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगा है। वर्ष 2008 में रूस के साथ जब समझौता हुआ था तब न्यूक्लियर लाइबिलिटी बिल नहीं था और उस समय यब जिम्मेदारी पूरी तरह से भारत पर ही डाली गई थी। जबकि बिल के अनुसार परियोजना में लगाए गए उपकरण की जिम्मेदारी भी उपकरण के आपूर्तिकर्ता की होगी। किसी दुर्घटना की स्थिति में पीड़ित आपूर्तिकर्ता से मुआवजा मांग सकता है।
इस परियोजना के दो चरण के बाद अब तीसरे और चौथे चरण पर भी रूस भारत से वैसी ही छूट की अपेक्षा कर रहा है। इस वजह से दोनों देशों में इस मुद्दे पर तमाम बैठकें हो चुकी हैं। पिछले साल सितंबर में परियोजना के विरोध के बाद काम में काफी दिक्कतें आ रही हैं।
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