सिंधु जल संधि पर भारत-पाकिस्तान के बीच वार्ता
नई दिल्ली:
सिंधु जल समझौता अथवा सिंधु जल संधि पर काफी लंबे समय से भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद जारी है. इसके लिए कई बैठकों का दौर चल चुका है. एक बार फिर से पाकिस्तान में नई सरकार बनने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच पहली द्विपक्षीय वार्ता के रूप में सिंधु जल संधि को ही चुना गया है. हालांकि, पाकिस्तान का आतंकवाद को लेकर जिस तरह का रवैया रहा है, उससे लग नहीं रहा है कि इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच फिलहाल कोई आम सहमति बन पाएगी. भारतीय जल आयोग का एक प्रतिनिधिमंडल सिंधु जल संधि के विभिन्न पहलुओं पर अपने समकक्षों से महत्वपूर्ण बातचीत करने के लिए पाकिस्तान पहुंचा है. इमरान खान के 18 अगस्त को प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच यह पहली अधिकारिक वार्ता है. पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री बनने पर खान को लिखे पत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोनों देशों के बीच अच्छे पड़ोसियों के संबंध बनाने का भारत का संकल्प व्यक्त किया था.
भारत-पाकिस्तान सिंधु जल विवाद समाधान की उम्मीद बन रही है : इंटरनेशनल एक्सपर्ट
दरअसल, पाकिस्तान की इमरान सरकार भी समझ रही है कि उसके मुल्क के लिए सिंधु समझौता कश्मीर समझौते से भी काफी अहम है. क्योंकि कश्मीर के तो त्वरित दुष्परिणाम सामने नहीं आएंगे, मगर सिंधु समझौते पर अगर भारत सरकार का रुख कड़ा हुआ और वैश्विक दबावों को दरकिनार कर सिंधु के पानी को रोक देती है, तो पाकिस्तान को इसके त्वरित प्रभाव से गुजरना पड़ेगा और यह उसकी अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरे की घंटी साबित होगी. भारत अगर इस समझौते को तोड़ देता है तो पाकिस्तान की हलक सूख जाएगी. हालांकि, विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं हैं कि सिंधु नदी समझौते को तोड़ देना चाहिए या नहीं. मगर इतना तय है कि अगर भारत यह फैसला लेता है तो पाकिस्तान के लिए बड़ी मुसीबत हो जाएगी. मगर वर्तमान हालातों को देखते हुए ऐसा लग नहीं रहा है कि भारत सरकार कोई ऐसा फैसला लेगी.
सिंधु जल संधि पर अब तक नहीं लिया गया कोई फैसला: विश्व बैंक
यही वजह है कि इमरान सरकार के लिए सिंधु जल समझौता कश्मीर मुद्दे से भी काफी अहम है. इसका मतलब यह नहीं, कि इमरान सरकार कश्मीर मुद्दे को छोड़ देगा. मगर इतना तय है कि इमरान सरकार ने पहली बातचीत के लिए सिंधु जल संधि के मुद्दे को चुना है. 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने सिंधु को लेकर जो बातें कहीं थीं, वह भी इमरान खान को याद ही होगा. पीएम मोदी ने 25 नवंबर को बठिंडा में कहा था, "सिंधु नदी का पानी भारतीय किसानों का है. हमारे किसानों को पर्याप्त पानी मुहैया कराने के लिए हम कुछ भी करेंगे." हालांकि, 2016 में ही पीएम नरेंद्र मोदी ने सिंधु जल संधि पर हुई बैठक के दौरान कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं. इस बयान को पाकिस्तान के लिए कड़े संदेश के तौर पर रेखांकित किया था.
क्या है सिंधु जल संधि:
भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के बीच ये संधि 1960 में हुई. इसमें सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया. पूर्वी हिस्से में बहने वाली नदियों सतलज, रावी और ब्यास के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार है, लेकिन पश्चिमी हिस्से में बह रही सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है. संधि के मुताबिक भारत इन नदियों के पानी का कुल 20 प्रतिशत पानी ही रोक सकता है. भारत अपनी 6 नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को देता है. वह चाहे तो इन नदियों पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना सकता है, लेकिन उसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे, जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता. भारत कृषि के लिए इन नदियों का इस्तेमाल कर सकता है.
पाकिस्तान के लिए क्या है इस समझौते का महत्व:
यहां यह समझना ज़रूरी है कि आखिर सिंधु नदी का इतना महत्व क्यों है. सिंधु दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है. इसकी लंबाई 3000 किलोमीटर से अधिक है यानी ये गंगा नदी से भी बड़ी नदी है. सहायक नदियों चिनाब, झेलम, सतलज, राबी और ब्यास के साथ इसका संगम पाकिस्तान में होता है. पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां आती हैं. इसके अलावा, पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है. अगर भारत पानी रोक दे तो पाक में पानी संकट पैदा हो जाएगा, खेती और जल विद्युत बुरी तरह प्रभावित होंगे. सिंधु नदी बेसिन करीब साढ़े ग्यारह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है. यानी उत्तर प्रदेश जैसे 4 राज्य इसमें समा सकते हैं. सिंधु और सतलज नदी का उद्गम चीन में है, जबकि बाकी चार नदियां भारत में ही निकलती हैं. सभी नदियों के साथ मिलते हुए विराट सिंधु नदी कराची के पास अरब सागर में गिरती है.
पाकिस्तान को ऐतराज:
भारत की सिंधु नदी बेसिन से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स पर नजर है. जिनमें पाकल दुल (1,000 मेगावॉट) , रातले (850 MW), किशनगंगा (330 मेगावॉट), मियार (120 मेगावॉट) और लोअर कालनई (48 मेगावॉट) परियोजनाएं आदि हैं. पाकिस्तान को भारत के इन प्रोजेक्ट्स पर भी एतराज है. पाकिस्तान का स्टैंड है कि भारत के ये सारे प्रोजेक्ट्स संधि का उल्लंघन है. मगर भारत अब सिंधु के ज्यादा से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करना चाहता है.
पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर सिंधु का प्रभाव:
भारत को सिंधु नदी घाटी में ये फायदा मिलता है कि इन नदियों के उद्गम के पास वाले इलाके भारत में पड़ते हैं. यानी नदियां भारत से पाकिस्तान में जा रही हैं और भारत चाहे तो सिंधु के पानी को रोक सकता है. पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां बहती हैं, यानी उसका करीब 65 प्रतिशत भूभाग सिंधु रिवर बेसिन पर है. पाकिस्तान ने इस पर कई बांध बनाए हैं, जिससे वह बिजली बनाता है और खेती के लिए इस नदी के पानी का इस्तेमाल होता है. यानी पाकिस्तान के लिए इस नदी के महत्व को कतई नकारा नहीं जा सकता.
क्या है सिंधु समझौते तोड़ने में परेशानी:
मौजूदा हालात में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जिस तरह से सिंधु के पानी को रोकने की बात की जा रही है वह कहने को तो मुमकिन है, लेकिन व्यवहारिक कठिनाईयां और उसके नतीजे भारत के पक्ष में भी नहीं जाते. अगर संधि तोड़ने से पाकिस्तान को घाटा हो रहा है, तो एक तरह से भारत को भी इसका त्वरित तौर पर बहुत ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा है. कहना गलत नहीं होगा कि इन नदियों के बीच पानी का समंदर है जिसे रोक पाना कोई आसान काम नहीं. इसके लिए भारत को बांध और कई नहरें बनानी होंगे, जिसके लिए बहुत पैसे और वक्त की ज़रूरत होगी. इससे विस्थापन की समस्या का समाना भी करना पड़ सकता है और इसके पर्यावरणीय प्रभाव भी होंगे. साथ ही वैश्विक मंच पर भी भारत की जगहंसाई होगी.
सिंधु संधि तोड़ने पर भारत को क्या होगा:
दूसरी ओर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी बट्टा लगेगा. अब तक भारत ने इस इंटरनेशनल ट्रीटी का कभी भी उल्लंघन नहीं किया. अगर भारत अब पानी रोकता है तो पाकिस्तान को हर मंच पर भारत के खिलाफ बोलने का एक मौका मिलेगा और वह इसे मानवाधिकारों से जोड़ेगा. चीन से कई नदियां भारत में आती हैं और आने वाले दिनों में चीन इस मुद्दा बनाते हुए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल के साथ भारत की नदी जल संधियां हैं और इन पर भी इसका असर पड़ सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है. ऐसे में भारत इसे अकेले खत्म नहीं कर सकता. अगर ऐसा हुआ तो इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा. साथ ही यह संदेश भी साफ साफ जाएगा कि हम कानूनी रूप से लागू संधि का उल्लंघन कर रहे हैं.
VIDEO: क्या होगा सिंधु समझौते पर भारत का एक्शन प्लान?
भारत-पाकिस्तान सिंधु जल विवाद समाधान की उम्मीद बन रही है : इंटरनेशनल एक्सपर्ट
दरअसल, पाकिस्तान की इमरान सरकार भी समझ रही है कि उसके मुल्क के लिए सिंधु समझौता कश्मीर समझौते से भी काफी अहम है. क्योंकि कश्मीर के तो त्वरित दुष्परिणाम सामने नहीं आएंगे, मगर सिंधु समझौते पर अगर भारत सरकार का रुख कड़ा हुआ और वैश्विक दबावों को दरकिनार कर सिंधु के पानी को रोक देती है, तो पाकिस्तान को इसके त्वरित प्रभाव से गुजरना पड़ेगा और यह उसकी अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरे की घंटी साबित होगी. भारत अगर इस समझौते को तोड़ देता है तो पाकिस्तान की हलक सूख जाएगी. हालांकि, विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं हैं कि सिंधु नदी समझौते को तोड़ देना चाहिए या नहीं. मगर इतना तय है कि अगर भारत यह फैसला लेता है तो पाकिस्तान के लिए बड़ी मुसीबत हो जाएगी. मगर वर्तमान हालातों को देखते हुए ऐसा लग नहीं रहा है कि भारत सरकार कोई ऐसा फैसला लेगी.
सिंधु जल संधि पर अब तक नहीं लिया गया कोई फैसला: विश्व बैंक
यही वजह है कि इमरान सरकार के लिए सिंधु जल समझौता कश्मीर मुद्दे से भी काफी अहम है. इसका मतलब यह नहीं, कि इमरान सरकार कश्मीर मुद्दे को छोड़ देगा. मगर इतना तय है कि इमरान सरकार ने पहली बातचीत के लिए सिंधु जल संधि के मुद्दे को चुना है. 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने सिंधु को लेकर जो बातें कहीं थीं, वह भी इमरान खान को याद ही होगा. पीएम मोदी ने 25 नवंबर को बठिंडा में कहा था, "सिंधु नदी का पानी भारतीय किसानों का है. हमारे किसानों को पर्याप्त पानी मुहैया कराने के लिए हम कुछ भी करेंगे." हालांकि, 2016 में ही पीएम नरेंद्र मोदी ने सिंधु जल संधि पर हुई बैठक के दौरान कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं. इस बयान को पाकिस्तान के लिए कड़े संदेश के तौर पर रेखांकित किया था.
क्या है सिंधु जल संधि:
भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के बीच ये संधि 1960 में हुई. इसमें सिंधु नदी बेसिन में बहने वाली 6 नदियों को पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में बांटा गया. पूर्वी हिस्से में बहने वाली नदियों सतलज, रावी और ब्यास के पानी पर भारत का पूर्ण अधिकार है, लेकिन पश्चिमी हिस्से में बह रही सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी का भारत सीमित इस्तेमाल कर सकता है. संधि के मुताबिक भारत इन नदियों के पानी का कुल 20 प्रतिशत पानी ही रोक सकता है. भारत अपनी 6 नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को देता है. वह चाहे तो इन नदियों पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना सकता है, लेकिन उसे रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाने होंगे, जिनके तहत पानी को रोका नहीं जाता. भारत कृषि के लिए इन नदियों का इस्तेमाल कर सकता है.
पाकिस्तान के लिए क्या है इस समझौते का महत्व:
यहां यह समझना ज़रूरी है कि आखिर सिंधु नदी का इतना महत्व क्यों है. सिंधु दुनिया की सबसे बड़ी नदियों में से एक है. इसकी लंबाई 3000 किलोमीटर से अधिक है यानी ये गंगा नदी से भी बड़ी नदी है. सहायक नदियों चिनाब, झेलम, सतलज, राबी और ब्यास के साथ इसका संगम पाकिस्तान में होता है. पाकिस्तान के दो-तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां आती हैं. इसके अलावा, पाकिस्तान की 2.6 करोड़ एकड़ ज़मीन की सिंचाई इन नदियों पर निर्भर है. अगर भारत पानी रोक दे तो पाक में पानी संकट पैदा हो जाएगा, खेती और जल विद्युत बुरी तरह प्रभावित होंगे. सिंधु नदी बेसिन करीब साढ़े ग्यारह लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है. यानी उत्तर प्रदेश जैसे 4 राज्य इसमें समा सकते हैं. सिंधु और सतलज नदी का उद्गम चीन में है, जबकि बाकी चार नदियां भारत में ही निकलती हैं. सभी नदियों के साथ मिलते हुए विराट सिंधु नदी कराची के पास अरब सागर में गिरती है.
पाकिस्तान को ऐतराज:
भारत की सिंधु नदी बेसिन से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स पर नजर है. जिनमें पाकल दुल (1,000 मेगावॉट) , रातले (850 MW), किशनगंगा (330 मेगावॉट), मियार (120 मेगावॉट) और लोअर कालनई (48 मेगावॉट) परियोजनाएं आदि हैं. पाकिस्तान को भारत के इन प्रोजेक्ट्स पर भी एतराज है. पाकिस्तान का स्टैंड है कि भारत के ये सारे प्रोजेक्ट्स संधि का उल्लंघन है. मगर भारत अब सिंधु के ज्यादा से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करना चाहता है.
पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से पर सिंधु का प्रभाव:
भारत को सिंधु नदी घाटी में ये फायदा मिलता है कि इन नदियों के उद्गम के पास वाले इलाके भारत में पड़ते हैं. यानी नदियां भारत से पाकिस्तान में जा रही हैं और भारत चाहे तो सिंधु के पानी को रोक सकता है. पाकिस्तान के दो तिहाई हिस्से में सिंधु और उसकी सहायक नदियां बहती हैं, यानी उसका करीब 65 प्रतिशत भूभाग सिंधु रिवर बेसिन पर है. पाकिस्तान ने इस पर कई बांध बनाए हैं, जिससे वह बिजली बनाता है और खेती के लिए इस नदी के पानी का इस्तेमाल होता है. यानी पाकिस्तान के लिए इस नदी के महत्व को कतई नकारा नहीं जा सकता.
क्या है सिंधु समझौते तोड़ने में परेशानी:
मौजूदा हालात में पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए जिस तरह से सिंधु के पानी को रोकने की बात की जा रही है वह कहने को तो मुमकिन है, लेकिन व्यवहारिक कठिनाईयां और उसके नतीजे भारत के पक्ष में भी नहीं जाते. अगर संधि तोड़ने से पाकिस्तान को घाटा हो रहा है, तो एक तरह से भारत को भी इसका त्वरित तौर पर बहुत ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा है. कहना गलत नहीं होगा कि इन नदियों के बीच पानी का समंदर है जिसे रोक पाना कोई आसान काम नहीं. इसके लिए भारत को बांध और कई नहरें बनानी होंगे, जिसके लिए बहुत पैसे और वक्त की ज़रूरत होगी. इससे विस्थापन की समस्या का समाना भी करना पड़ सकता है और इसके पर्यावरणीय प्रभाव भी होंगे. साथ ही वैश्विक मंच पर भी भारत की जगहंसाई होगी.
सिंधु संधि तोड़ने पर भारत को क्या होगा:
दूसरी ओर भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी बट्टा लगेगा. अब तक भारत ने इस इंटरनेशनल ट्रीटी का कभी भी उल्लंघन नहीं किया. अगर भारत अब पानी रोकता है तो पाकिस्तान को हर मंच पर भारत के खिलाफ बोलने का एक मौका मिलेगा और वह इसे मानवाधिकारों से जोड़ेगा. चीन से कई नदियां भारत में आती हैं और आने वाले दिनों में चीन इस मुद्दा बनाते हुए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल के साथ भारत की नदी जल संधियां हैं और इन पर भी इसका असर पड़ सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है. ऐसे में भारत इसे अकेले खत्म नहीं कर सकता. अगर ऐसा हुआ तो इससे भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा. साथ ही यह संदेश भी साफ साफ जाएगा कि हम कानूनी रूप से लागू संधि का उल्लंघन कर रहे हैं.
VIDEO: क्या होगा सिंधु समझौते पर भारत का एक्शन प्लान?
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं