पिछले साल भी टीपू सुल्तान की जयंती मनाने को लेकर विवाद हुआ था....
बेंगलुरु:
कर्नाटक में इस साल भी टीपू सुल्तान जयंती मनाने को लेकर विवाद हो रहा है. कर्नाटक में विपक्ष की भूमिका निभा रही बीजेपी और आरएसएस ने आयोजन न होने देने की बात कही है. पिछले साल जयंती मनाने को लेकर कुर्ग में भड़की हिंसा में दो लोगों की मौत हुई थी.
पिछले साल की तरह इस साल भी 10 नवंबर को सिद्धारमैया सरकार 18वीं सदी में मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की जयंती मनाने जा रही है, लेकिन आरएसएस पिछली बार की तरह इस बार भी अड़ा हुआ है कि वह इसका विरोध करेगा. उसकी दलील है कि टीपू सुल्तान ने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया.
कन्नड़ और कल्चर डिपार्टमेंट ने इसके आयोजन पर 69 लाख के खर्च की बात कही है और इससे जुड़ा सर्कुलर हर जिले के स्थानीय प्रशासन को भेज दिया गया है.
वैसे, कोडगु जिले को अपने खूबरसूरत दृश्यों और ठंडे मौसम की वजह से जाना जाता है, लेकिन पिछले साल इस आयोजन के चलते यह इलाका हिंसा का गवाह बना और झड़पों में दो लोगों की जान चली गई.
विपक्ष में काबिज बीजेपी टीपू सुल्तान को एक कट्टर और हिंसक राजा के रूप में पेश करती आई है, जिसने बड़ी संख्या में हिन्दुओं और ईसाइयों को धर्मांतरण करवाया. इस मामले को लेकर आरएसएस और इससे जुड़े संगठनों राज्यभर में इसके विरोध में आंदोलन का फैसला लिया है. इसके लिए बेंगलुरु में 8 नवंबर को बड़ी रैली भी होने जा रही है.
आरएसएस के कार्यकर्ता वी नागराज ने कहा कि 1886 में टीपू सुल्तान के पोते गुलाम मोहम्मद ने हैदर अली खान बहादुर और टीपू सुल्तान के जीवन पर एक किताब लिखी थी. यह 1886 में छपी थी और इसे दोबारा 1976 में छापा गया. इसमें उनके पोते ने बताया कि टीपू सुल्तान के इस्लाम के लिए क्या नहीं किया. उन्होंने 70 हजार इसाइयों और 1 लाख हिन्दुओं का जबरदस्ती धर्मांतरण करवा दिया.
बहुत-सी ईसाई संस्थाओं और खासतौर पर कर्नाटक के तटीय इलाकों में इस आयोजन को लेकर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुकी हैं. वैसे, पिछले साल खराब कानून-व्यवस्था को लेकर आलोचना झेल चुकी राज्य सरकार इस बार पूरी तरह से तैयार दिख रही है.
वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि पिछले साल की तरह इस साल भी जयंती मनाई जाएगी. हम कानून और व्यवस्था का ध्यान रखेंगे. उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस सांप्रदायिक है और वे नफरत फैलाने की कोशिश करेंगे.
उधर, लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी आरएसएस पर निशाना साधा है. उन्होंने पूछा है कि जब वे नाथू राम गोडसे की जयंती मना सकते हैं तो क्या हम टीपू सुल्तान की नहीं.
पिछले साल की तरह इस साल भी 10 नवंबर को सिद्धारमैया सरकार 18वीं सदी में मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की जयंती मनाने जा रही है, लेकिन आरएसएस पिछली बार की तरह इस बार भी अड़ा हुआ है कि वह इसका विरोध करेगा. उसकी दलील है कि टीपू सुल्तान ने बड़े पैमाने पर धर्मांतरण कराया.
कन्नड़ और कल्चर डिपार्टमेंट ने इसके आयोजन पर 69 लाख के खर्च की बात कही है और इससे जुड़ा सर्कुलर हर जिले के स्थानीय प्रशासन को भेज दिया गया है.
वैसे, कोडगु जिले को अपने खूबरसूरत दृश्यों और ठंडे मौसम की वजह से जाना जाता है, लेकिन पिछले साल इस आयोजन के चलते यह इलाका हिंसा का गवाह बना और झड़पों में दो लोगों की जान चली गई.
विपक्ष में काबिज बीजेपी टीपू सुल्तान को एक कट्टर और हिंसक राजा के रूप में पेश करती आई है, जिसने बड़ी संख्या में हिन्दुओं और ईसाइयों को धर्मांतरण करवाया. इस मामले को लेकर आरएसएस और इससे जुड़े संगठनों राज्यभर में इसके विरोध में आंदोलन का फैसला लिया है. इसके लिए बेंगलुरु में 8 नवंबर को बड़ी रैली भी होने जा रही है.
आरएसएस के कार्यकर्ता वी नागराज ने कहा कि 1886 में टीपू सुल्तान के पोते गुलाम मोहम्मद ने हैदर अली खान बहादुर और टीपू सुल्तान के जीवन पर एक किताब लिखी थी. यह 1886 में छपी थी और इसे दोबारा 1976 में छापा गया. इसमें उनके पोते ने बताया कि टीपू सुल्तान के इस्लाम के लिए क्या नहीं किया. उन्होंने 70 हजार इसाइयों और 1 लाख हिन्दुओं का जबरदस्ती धर्मांतरण करवा दिया.
बहुत-सी ईसाई संस्थाओं और खासतौर पर कर्नाटक के तटीय इलाकों में इस आयोजन को लेकर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुकी हैं. वैसे, पिछले साल खराब कानून-व्यवस्था को लेकर आलोचना झेल चुकी राज्य सरकार इस बार पूरी तरह से तैयार दिख रही है.
वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि पिछले साल की तरह इस साल भी जयंती मनाई जाएगी. हम कानून और व्यवस्था का ध्यान रखेंगे. उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस सांप्रदायिक है और वे नफरत फैलाने की कोशिश करेंगे.
उधर, लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी आरएसएस पर निशाना साधा है. उन्होंने पूछा है कि जब वे नाथू राम गोडसे की जयंती मना सकते हैं तो क्या हम टीपू सुल्तान की नहीं.
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