कर्नाटक के मंड्या और बेंगलुरु से दो ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें उन बच्चों को परेशान किया गया जिनके माता-पिता पूरी फीस जमा नहीं करवा पाए. ये दोनों घटनाएं ऐसे समय सामने आई हैं जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में आदेश जारी किया था कि स्कूल फीस को लेकर सख़्ती न बरती जाए. आरोप है कि राज्य के मंड्या के एक स्कूल में 16 तारीख को उन छात्रों को बीच इम्तेहान से हटाकर परीक्षा हॉल के बाहर खड़ा किया गया क्योंकि उनके माता-पिता कोरोना महामारी की वजह से पूरी फीस नही दे पाए थे.बाद में कन्नड़ संगठनों के दबाव में स्कूल प्रबंधन ने उनकी परीक्षा ली. मामला सामने आने के बाद राज्य के शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार की तरफ से एक बयान जारी किया गया.
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शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार ने कहा, 'ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि बेंगलुरु और मंड्या के एक स्कूल में छात्रों के साथ भेदभाव किया गया क्योंकि उनकी पूरी फीस स्कूल को नही दी गई थी. ऐसी घटना देश के भविष्य के लिहाज से अच्छी नहीं है और इससे छात्रों के आत्मविश्वास को ठेस पहुंचेगी.' दरअसल, राज्य सरकार की तरफ से हाल ही में एक फैसला लिया गया था कि कोरोना के मद्देनजर फीस 30 फीसदी फीस कम की जाएगी. अभिभावकों की ओर से इस बारे में राज्य सरकार पर दबाव बनाया गया था. हालांकि 30 फीसदी फीस कम करने के विरोध में स्कूल संगठनों ने एक बड़ी रैली बेंगलुरु में निकाली थी, इसमें शिक्षकों, स्कूल प्रबंधन के साथ-साथ स्टाफ के अन्य सदस्य भी शामिल हुए थे.
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शहर के मैजेस्टिक से शरू हुई ये महारैली फ्रीडम पार्क पर खत्म हुई और एक आवाज़ में 30 फीसदी फीस कम करने के सरकार के फैसले का विरोध हुआ था. बताया जाता है कि इस रैली से सरकार दबाव में आ गई है और 30 फीसदी फीस काम करने के फैसले को लागू करने का आदेश नही निकल पाई30 फीसदी फीस कम करने का फैसला राज्य के शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार का था. माना जा रहा है कि इस फैसले को लेने के बाद वह अलग-थलग पड़ गए हैं क्योंकि स्कूल चलाने वालों की अपनी दलील है. इन लोगों का सरोकार सभी राजनीतिक दलों से हैं फिर चाहे वह बीजेपी हो कांग्रेस या फिर जेडीएस.
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