कर्नाटक : जूनियर विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करने के खिलाफ याचिका दाखिल, सुनवाई आज

सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस और जेडीएस ने वरिष्ठतम विधायक के बजाय जूनियर विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करने का विरोध किया

कर्नाटक : जूनियर विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करने के खिलाफ याचिका दाखिल, सुनवाई आज

सुप्रीम कोर्ट.

खास बातें

  • कहा, जूनियर को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करना संसदीय परम्परा के खिलाफ
  • नियुक्ति फ्लोर टेस्ट को सीज करने और प्रभावित करने के लिए की गई
  • प्रोटेम स्पीकर सिर्फ विधायकों को शपथ दिलाए और फ्लोर टेस्ट कराए
नई दिल्ली:

कांग्रेस और जेडीएस ने कर्नाटक में वरिष्ठतम विधायक के बजाय जूनियर विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की  सुनवाई शनिवार को सुबह साढ़े दस बजे करेगा. कर्नाटक में मुख्यमंत्री व बीजेपी नेता येदियुरप्पा को शनिवार को बहुमत साबित करने के निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं.

कांग्रेस और जेडीएस ने याचिका में कहा है कि जूनियर विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करना संसदीय परम्परा के खिलाफ है. अब तक की परंपरा के मुताबिक पार्टीलाइन से ऊपर उठकर वरिष्ठतम विधायक को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है. प्रोटेम स्पीकर सभी विधायकों को शपथ दिलाता है और स्पीकर का चुनाव करवाता है. इनकी नियुक्ति फ्लोर टेस्ट को सीज करने और प्रभावित करने के लिए की गई है, जिस फ्लोर टेस्ट का निर्देश खुद सुप्रीम कोर्ट ने दिए है.

येदुरप्पा केंद्र के साथ मिलकर गवर्नर के जरिए प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं. बीजेपी जिस तरफ से फ्लोर टेस्ट की तैयारी कर रही है इस तरह 2008 में येदुरप्पा के बहुमत करने के लिए की गई थी जिसे ऑपरेशन लोट्स कहते हैं.

याचिका में कहा गया है कि पूरे प्रक्रिया की वीडियोग्राफी हो. वीडियोग्राफी नहीं होगी तो अगर कुछ गलत होगा तो याचिकाकर्ता कोर्ट में साबित नहीं कर पाएंगे.

प्रोटेम स्पीकर विधायकों को शपथ दिलाने और फ्लोर टेस्ट कराने के अलावा किसी दूसरे अधिकार का इस्तेमाल न करे. समर्थन करने वाले विधायकों और विरोध करने वाले विधायकों को अलग-अलग बैठाया जाए.

कांग्रेस और जेडीएस ने अपनी याचिका में कहा है कि याचिकाकर्ता को एक बार फिर विवश होना पड़ा क्योंकि कानून के शासन को स्थापित करना है और दूसरे पक्ष ने एक जूनियर एमएलए को प्रोटेम स्पीकर बनाया है. फ्लोर टेस्ट सही और पारदर्शी तरीके से हो इसलिए सुप्रीम कोर्ट को तुरंत निर्देश देने चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट के पहले के दो फैसलों में केजी बोपाइया की आलोचना की गई है और उनके फैसले को रद्द किया गया है.


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