सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड की पीड़िता के घर जा रहे केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन की गिरफ्तारी (Siddique Kappan) के केस में केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्टस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. शुक्रवार को उत्तर प्रदेश की सरकार ने हलफनामा दाखिल किया है. इसमें सरकार ने कप्पन पर हाथरस जातीय विभाजन पैदा करने के इरादे के साथ आने का आरोप लगाया है. सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जेल में बंद आरोपी पत्रकार से हस्ताक्षर लेने के लिए किसी वकील के मिलने पर उसे कोई आपत्ति नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई अगले हफ्ते तक के लिए टाल दी है.
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'हमारे पहले के आदेश के बारे में बहुत गलत रिपोर्टिंग हुई. यह कहा गया था कि हमने आपको राहत से इनकार किया.' इस पर कप्पन का पक्ष रखे रहे वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 'इसका मुझसे कोई लेना-देना नहीं है, ग़लत रिपोर्टिंग हर रोज होती है.'
यूपी सरकार ने हलफनामे में क्या कहा है?
बता दें कि यूपी सरकार ने कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि कि कप्पन के परिवार के सदस्यों को उनकी गिरफ्तारी के बारे में तुरंत सूचित किया गया था, लेकिन आज तक उनके परिवार का कोई भी व्यक्ति जेल में उनसे मिलने नहीं आया है. पत्रकार संघ के लोकस स्टैंडी पर सवाल उठाते हुए, यूपी ने न्यायिक हिरासत के दौरान कहा कि कप्पन ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ तीन बार फोन पर बातचीत की है- 2, 10 और 17 नवंबर को. उन्होंने कभी किसी रिश्तेदार या वकील से मिलने का अनुरोध नहीं किया और न ही इस उद्देश्य के लिए कोई आवेदन दिया है.
यूपी सरकार ने कहा कि पत्रकार संघ को वकालतनामे पर कप्पन के हस्ताक्षर प्राप्त करने के लिए एक वकील को जेल भेजने में न तो कभी कोई आपत्ति थी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने SC को बताया कि कप्पन को ट्रायल कोर्ट के सामने ही वकीलों द्वारा प्रतिनिधित्व दिया गया है. वह गैरकानूनी हिरासत में नहीं है बल्कि अदालत ने न्यायिक हिरासत में भेजा है.
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यूपी सरकार ने हलफनामे में कहा है कि केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की सिद्दीकी कप्पन की रिहाई के लिए याचिका सुनवाई योग्य नहीं है क्योंकि वह वकीलों के संपर्क में हैं. यूपी सरकार का कहना है कि वह पीएफआई के सचिव हैं और एक पत्रकार के रूप में हाथरस जा रहे थे, जबकि जिस अखबार का प्रतिनिधित्व होने का दावा उन्होंने किया था वह 2018 में बंद हो गया था. सरकार का कहना है कि कप्पन लगातार इस मामले में झूठे बयान दे रहे हैं.
हलफनामे में कहा गया है कि कप्पन, जो पीएफआई के ऑफिस सेक्रेटरी हैं, एक पत्रकार कवर का इस्तेमाल कर रहे थे, जो 'तेजस' नाम से केरल आधारित अखबार का पहचान पत्र दिखा रहे थे, जो 2018 में बंद हो गया था. यूपी ने कहा जांच में पता चला है कि कप्पन अन्य पीएसआई कार्यकर्ताओं और उनके छात्र विंग (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) के नेताओं के साथ जातिवाद विभाजन और कानून व्यवस्था की स्थिति को बिगाड़ने के लिए पत्रकारिता की आड़ में हाथरस जा रहे थे.
सिब्बल ने पत्रकार से मिलने की अनुमति मांगी थी
पिछली सुनवाई में अदालत ने यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सिद्दीकी की ओर से बहस करते हुए कहा कि 'प्राथमिकी में उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं बताया गया है लेकिन वह पांच अक्तूबर से जेल में हैं. जब हम मजिस्ट्रेट से पत्रकार से मिलने की अनुमति मांगने गए, तो उन्होंने कहा कि जेल जाओ.'
बता दें कि हाथरस में एक दलित लड़की से कथित सामूहिक बलात्कार की घटना हुई थी और बाद में उसकी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मृत्यु हो गई थी. पत्रकार सिद्दीकी कप्पन और तीन अन्य को मथुरा पुलिस ने पांच अक्तूबर को उस वक्त गिरफ्तार कर लिया था, जब वे दलित लड़की के परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए हाथरस जिले में स्थित उसके गांव जा रहे थे.
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