केंद्र की कोयला ब्लॉकों की वर्चुअल नीलामी (Jharkhand Coal Block Auctioning) की परियोजना के खिलाफ झारखंड सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि वो देशभर के लिए आदेश जारी करने पर विचार करेगा कि अगर कोई खदान इको सेंसेटिव ज़ोन के 50 किलोमीटर के दायरे में आती है तो खनन की इजाजत नहीं होगी. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एस ए बोबडे ने कहा, 'हम देश के विकास को रोकना नहीं चाहते हैं, लेकिन हम नहीं चाहते कि किसी भी तरह प्राकृतिक संपदा का क्षय हो.' CJI ने कहा कि 'जंगल को देखने का पूरा तरीका गलत है. केंद्र सरकार ने जंगल पर नहीं लकड़ी पर आर्थिक मूल्य डाला. हम नहीं चाहते कि खनन के कारण वन नष्ट हों.'
झारखंड में कोयला खदानों की नीलामी के खिलाफ झारखंड की याचिका पर सुनवाई के दौरान SC ने कहा कि वह यह जांचने के लिए एक विशेषज्ञ पैनल नियुक्त करना चाहता है कि क्या झारखंड में खदानों की नीलामी इको जोन के अंतर्गत हो रही है. SC ने कहा कि वह नीलामी पर रोक लगा सकता है जब तक कि विशेषज्ञ पैनल अपनी रिपोर्ट को प्रस्तुत नहीं कर देता, हालांकि केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने इसका विरोध किया.
SC ने मांगे तथ्य
CJI ने AG से कहा कि 'हम पर्यावरण पर अपने विवेक को संतुष्ट करना चाहते हैं. आप समिति की मदद करें और वे एक महीने के भीतर रिपोर्ट करेंगे और हम इस बीच नीलामी को रोक सकते हैं.' AG ने नीलामी पर रोक का विरोध करते हुए कहा कि यह पहले से ही चल रही है और आर्थिक क्षेत्र से खदानें 20 किलोमीटर से अधिक दूर हैं. उन्होंने कहा कि 'SC के किसी के भी आदेश का पूरे देश में असर होगा. हम अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण कर रहे हैं.'
इसपर CJI ने जवाब दिया कि 'हम केवल झारखंड के लिए कह रहे हैं और यदि तथ्य हमारे संज्ञान में लाए जाते हैं, तो हम इसे अन्य क्षेत्रों में भी रोकेंगे. हम पहले तथ्यों को जानना चाहते हैं और हम कोई आदेश पारित नहीं कर रहे हैं.' केके वेणुगोपाल ने कहा कि झारखंड के मुख्यमंत्री ने नीलामी का समर्थन करते हुए पहले पत्र लिखा, फिर बाद में अदालत में मुकदमा दायर कर दिया. पहले शीर्ष अदालत ने इस संबंध में फैसले पारित किए हैं.
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CJI ने कहा कि 'झारखंड के सीएम का पत्र नीलाम करने को लेकर उत्साहित दिख रहा है. ऐसे में कोर्ट झारखंड के इरादे और स्टैंड के बारे में निश्चित नहीं है. हम तथ्यों का पता लगाना चाहते हैं और हम चाहते हैं कि तब तक आप रुकें. आपकी समस्या क्या है?' AG ने जवाब में कहा कि मूल रूप से झारखंड नीलामी को टालना चाहता था. इसपर CJI ने कहा कि 'यह आपके लिए या झारखंड के लिए कोई बात नहीं है. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि खनन के कारण जंगल नष्ट न हों.'
AG ने अदालत से एक दिन का समय मांगा, जिसके बाद शीर्ष अदालत ने 6 नवंबर तक के लिए सुनवाई टाल दी है और कोई आदेश पारित नहीं किया है.
क्या है मामला?
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 18 जून को शुरू की गई 41 कोयला खदानों में से झारखंड में 9 को नीलामी करने की केंद्र की परियोजना को झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. यह केंद सरकार की वाणिज्यिक खनन के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना है. अगले 5-7 वर्षों में देश में पूंजी निवेश के 33,000 करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद के साथ नीलामी प्रक्रिया शुरू करते हुए मोदी ने कहा था कि यह आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में एक बड़ा कदम है.
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लेकिन झारखंड सरकार का कहना है कि यह जंगलों और आदिवासी संस्कृति और रीति-रिवाजों को नष्ट कर देगा. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से केंद्रीय कोयला मंत्रालय द्वारा कोयला खदानों की प्रस्तावित नीलामी पर फिलहाल रोक लगाने की मांग की है
झारखंड सरकार ने कहा है कि कोयला खनन का झारखंड और उसके निवासियों की विशाल ट्राइबल आबादी और वन भूमि पर सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव के निष्पक्ष मूल्यांकन की आवश्यकता है. केंद्र के नीलामी के फैसले से इन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है. याचिका में कहा गया है कि COVID-19 के कारण नकारात्मक 'वैश्विक निवेश के लिए वैसे ही माहौल नहीं हैं.- इसी कारण कोयला खनन के लिए की जा रही नीलामी से दुर्लभ प्राकृतिक संसाधन का उचित रिटर्न प्राप्त करने की संभावना नहीं है. झारखंड सरकार ने इस संबंध में ओरिजनल सूट भी दाखिल किया है.
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