सुब्रमण्यम स्वामी ने चेन्नई की अदालत में 1996 में एक शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके चलते तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के खिलाफ जांच हुई और बाद में जांच में सामने आया कि यह 'आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति' का मामला था, जिसमें शनिवार को बेंगलुरु की एक अदालत ने उन्हें दोषी करार दिया।
14 जून, 1996 को तत्कालीन जनता पार्टी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने यहां प्रधान सत्र न्यायाधीश के समक्ष एक शिकायत दाखिल की और आरोप लगाया कि जयललिता के पास उनके ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति है। स्वामी उस समय जनता पार्टी के अध्यक्ष थे, जिसका बीजेपी में विलय हो चुका है।
अदालत ने सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक शाखा निदेशालय को शिकायत की जांच करने का निर्देश दिया। इसके बाद 18 सितंबर, 1996 को पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की और जांच की गई, जिसमें हैदराबाद सहित विभिन्न स्थानों पर छापेमारी की कार्रवाई भी की गई। इसके बाद मामले में आरोपपत्र दाखिल किया गया तथा गवाहों से पूछताछ हुई।
ऐसे आरोप लगाए गए थे कि पांच साल तक सत्ता में रहने के बाद 1996 में जब जयललिता ने पद छोड़ा तो उनकी संपत्ति बढ़कर 66.65 करोड़ रुपये हो गई थी। आरोप लगाया गया था कि 1 जुलाई, 1991 को मुख्यमंत्री का पद संभालने से पूर्व उनके पास 2.01 करोड़ रुपये की संपत्ति थी। जयललिता ने उस समय घोषणा की थी कि वह केवल एक रुपया वेतन ले रही हैं।
1997 में अदालत ने जयललिता, वीएन सुधाकरन, शशिकला और इल्लारासी के खिलाफ आरोप तय किए। 2003 में डीएमके नेता अनबाजगन ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि मामला तमिलनाडु से बाहर स्थानांतरित किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मामला कर्नाटक के बेंगलुरु स्थानांतरित करने के आदेश दिए, जहां विशेष अदालत गठित की गई।
2010 में आय से अधिक संपत्ति का मामला गंभीर तरीके से शुरू हुआ। 2011 में अन्नाद्रमुक सत्ता में वापस आई और जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं। जयललिता अदालत के सामने पेश हुईं और 1,300 सवालों के जवाब दिए। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष सरकारी वकील जी भवानी सिंह को नियुक्त किया। जॉन माइकल कुन्हा को विशेष न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 2014 में 20 सितंबर का दिन फैसले के लिए तय किया गया। जयललिता की ओर से सुरक्षा कारणों का हवाला देने पर तिथि 27 सितंबर कर दी गई और आज उन्हें दोषी करार दिया गया।
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