नई दिल्ली:
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम पर बेइमानी से सांसद बनने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की मांग की और कहा कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद में उनकी उपस्थिति अस्वीकार्य है। राजधानी में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए जयललिता ने कहा, हमारी पार्टी ने हमेशा कहा है कि चिदंबरम ने बेइमानी से अपनी जीत सुनिश्चित की है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद में उनकी उपस्थिति अस्वीकार्य है। साल 2009 में चिदंबरम संसद के लिए कभी निर्वाचित ही नहीं हुए थे। उन्होंने देश के साल छल किया है। उस चुनाव में हमारे पार्टी के प्रत्याशी की जीत हुई थी। चिदंबरम की जीत पर प्रश्नचिह्न खड़ा करते हुए जयललिता ने आरोप लगाया कि चिदंबरम को सफल प्रत्याशी इसलिए घोषित किया गया क्योंकि आंकड़ों का हिसाब-किताब रखने वाले संचालक ने धोखाधड़ी की थी। दूसरी तरफ उन्होंने केंद्रीय कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन पर हमला बोलते हुए कहा कि टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले के आरोपों के बाद उन्हें केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और अगर वह स्वयं ऐसा नहीं करते हैं तो प्रधानमंत्री को उन्हें हटा देना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस और अन्नाद्रमुक एक साथ आ रहे हैं, जयललिता ने कहा कि द्रमुक और कांग्रेस गठबंधन सहयोगी बने हुए हैं और दोनों दलों ने गठजोड़ को बनाये रखा है। यह पूछे जाने पर कि द्रमुक के कांग्रेस का साथ छोड़ देने की स्थिति में क्या वह केंद्र सरकार का नेतृत्व करने वाले दल से गठजोड़ करेंगी, उन्होंने कहा, मैं काल्पनिक प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकती। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अभी तक द्रमुक और कांग्रेस का गठबंधन जारी है और दोनों केंद्र सरकार में सहयोगी के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ऐसी स्थिति में मेरे लिए सोनिया गांधी से मुलाकात करना उपयुक्त नहीं होगा। नवंबर 2010 में उनकी ओर से केन्द्र में कांग्रेस को समर्थन दिए जाने की पेशकश के आलोक में कांग्रेस और अन्नाद्रमुक के बीच गठजोड़ के विषय में पूछे गए अनेक प्रश्नों पर जयललिता ने केवल इतना कहा कि तब से अब तक स्थितियां काफी बदल गई हैं। उन्होंने कहा, समय के साथ स्थिति काफी बदल गई हैं। वह पेशकश एक अलग स्थिति में की गई थी। इससे पहले, प्रधानमंत्री के साथ बैठक के दौरान उन्होंने तमिलनाडु के विधायकों के एक दल को श्रीलंका भेजने संबंधी प्रस्ताव रखा था ताकि वे खुद श्रीलंका में विस्थापित तमिलों की स्थिति देख सके।