प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में निष्क्रिय इच्छामृत्यु (passive euthanasia) को इजाजत दे दी. कोर्ट ने कहा कि मनुष्य को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है. यह फैसला कानून और नैतिकता के बीच कई वर्षों की कशमकश के बाद आया. सवाल था कि क्या उन बीमार मरीजों पर विचार किया जाए जिनकी चिकित्सा विज्ञान भी मदद नहीं की कर सकता. यदि वे चाहें तो क्या मर सकते हैं?
इच्छामृत्यु के दो प्रकार हैं जिनमें से पहला सक्रिय इच्छामृत्यु ( एक्टिव यूथेनेशिया) है और दूसरा निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पेसिव यूथेनेशिया)है. इन दोनों में बहुत अंतर है. सक्रिय इच्छामृत्यु वह है जिसमें चिकित्सा पेशेवर, या कोई अन्य व्यक्ति कुछ जानबूझकर ऐसा करते हैं जो मरीज के मरने का कारण बनता है. निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive euthanasia) तब होती है जब गंभीर लाइलाज बीमारी से ग्रस्त रोगी के लिए मौत के अलावा और कोई विकल्प शेष नहीं रह जाता और मरीज की मर्जी से से ही उसे मौत दी जाती है.
यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन : इच्छा मृत्यु चाहने वालों के लिए यह होगी प्रक्रिया
निष्क्रिय इच्छामृत्यु के मामलों में मरीज की लाइफ सपोर्टिंग मशीनें बंद कर दी जाती हैं. जीवन को विस्तारित करने वाली दवाएं बंद कर दी जाती हैं. भारत में अब निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दे दी गई है.
सक्रिय इच्छामृत्यु भारत समेत दुनिया के अधिकांश हिस्सों में नहीं है. सिर्फ कुछ देशों में यह प्रचलन में है. इसमें रोगियों को घातक इंजेक्शन देकर मौत दे दी जाती है. सक्रिय इच्छामृत्यु को लेकर नैतिकता का मुद्दा दुनिया भर में बहस का विषय है.
VIDEO : सुप्रीम कोर्ट ने दी निष्क्रिय इच्छामृत्यु की इजाजत
सरल शब्दों में निष्क्रिय और सक्रिय इच्छा मृत्यु के बीच अंतर को 'मरने' और 'हत्या' के बीच अंतर के रूप में भी देखा जाता है. बेल्जियम, नीदरलैंड्स, कोलम्बिया और जापान जैसे देशों में इच्छामृत्यु की दोनों रूपों की अनुमति दी जाती है. जर्मनी, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका और काउंटी के बाद भारत भी अब केवल निष्क्रिय इच्छामृत्यु की इजाजत देने वाले देशों में शामिल हो गया है.
इच्छामृत्यु के दो प्रकार हैं जिनमें से पहला सक्रिय इच्छामृत्यु ( एक्टिव यूथेनेशिया) है और दूसरा निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पेसिव यूथेनेशिया)है. इन दोनों में बहुत अंतर है. सक्रिय इच्छामृत्यु वह है जिसमें चिकित्सा पेशेवर, या कोई अन्य व्यक्ति कुछ जानबूझकर ऐसा करते हैं जो मरीज के मरने का कारण बनता है. निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive euthanasia) तब होती है जब गंभीर लाइलाज बीमारी से ग्रस्त रोगी के लिए मौत के अलावा और कोई विकल्प शेष नहीं रह जाता और मरीज की मर्जी से से ही उसे मौत दी जाती है.
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निष्क्रिय इच्छामृत्यु के मामलों में मरीज की लाइफ सपोर्टिंग मशीनें बंद कर दी जाती हैं. जीवन को विस्तारित करने वाली दवाएं बंद कर दी जाती हैं. भारत में अब निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दे दी गई है.
सक्रिय इच्छामृत्यु भारत समेत दुनिया के अधिकांश हिस्सों में नहीं है. सिर्फ कुछ देशों में यह प्रचलन में है. इसमें रोगियों को घातक इंजेक्शन देकर मौत दे दी जाती है. सक्रिय इच्छामृत्यु को लेकर नैतिकता का मुद्दा दुनिया भर में बहस का विषय है.
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सरल शब्दों में निष्क्रिय और सक्रिय इच्छा मृत्यु के बीच अंतर को 'मरने' और 'हत्या' के बीच अंतर के रूप में भी देखा जाता है. बेल्जियम, नीदरलैंड्स, कोलम्बिया और जापान जैसे देशों में इच्छामृत्यु की दोनों रूपों की अनुमति दी जाती है. जर्मनी, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका और काउंटी के बाद भारत भी अब केवल निष्क्रिय इच्छामृत्यु की इजाजत देने वाले देशों में शामिल हो गया है.
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